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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

"राजे-रजवाड़े"

"राजे-रजवाड़े"

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279


ये राजे और ये रजवाड़े

अब बस यादों के हवाले

जर्जर हुई, अब ये इमारतें

बताती, इतिहास की बातें

एक दिन यहां पर मिटती

सबकी ही दोस्त हस्ती

क्या राजा, क्या गरीब

सबकी ही डूबती कश्ती

लगती थी जहां महफिलें

वहां पर लगे, आज ताले

ये राजे और ये रजवाड़े

अब बस यादों के हवाले

हम कितने समृद्ध थे,

बताते, ये महल-माले

हमारे विज्ञान को तो

आज का वक्त भी माने

पर बिना रखरखाव के

मिटे रहे है, ये हिमाले

आओ सरंक्षण करे,

ये पुराने राजे-रजवाड़े

आज जो हमारे हवाले

हम इनका ध्यान रखकर

बने संस्कृति के रखवाले

रहते, साखी वही दिलों में

जो लोग है, बड़े दिलवाले

बाकी जिंदा तो बहुत है,

बहुत कम जिंदादिल वाले

सबके लिए ही सोचनेवाले

कहलाते सच में हिम्मतवाले

बहुत कम ऐसे जो कहते है

सबका भला कर, ऊपरवाले

ये राजे और ये रजवाड़े

बताते, कर्म करो, तुम आले

मरने के बाद भी जिंदा रहोगे

कर्म करो, बस परोपकार वाले



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