शतरंज की बाजी
शतरंज की बाजी
सतरंगी दुनिया के बहुआयामी मोहरें हम
जीवन भर चाल चलकर केवल लड़ते हैं हम
ज़िन्दगी क्या है अपनी, एक खेल ही समझो
सिर्फ शतरंज की तरह, ज़िन्दगी की बाज़ी खेलते हैं हम ।
मैं कौन हूँ किस लिये आया हूँ यहाँ
भूलकर इंसान सब
बस, एक दूसरे को मात देने में जुटे हैं ।
किस तरह मारकर तुझे हम जीत लें
छोड़कर नेक अपनी दरिया-दिली
खुरपेंच में सब लगे हैं यहाँ..
शतरंज की इस बाज़ी में
खड़ा है हर इंसान यहाँ, अपना मुखौटा सजाये
संभल कर जी लो तुम भी पंडा !
खेल है जो तेरा यह चार दिन का..
ले लो तुम भी मज़े बस विनय से यहाँ
ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं
भ्रम है बस सिर्फ, यह तेरे मन का...!!