सिंचित
सिंचित
जल की बूंदों से बहा रक्त, मेरा जीवन सिंचित है किया,
दुःख दुर्घटना या व्याधि से, मेरा बचपन वंचित है किया।
जितना जग को अब जान रहा, उतना तुमको मैं मान रहा,
जितने पौधे तुम किये वृक्ष, वन कहलाए संख्या समस्त।
अब सुख जो सब ही भोगे हैं, तेरे श्रम का उपभोग ही है,
ये छाया फल और फूल सभी, बिन तेरे सम्भव न था कुछ भी।
इस हेतु करता मैं वंदन हूँ, तुम शिव हो और मैं एक गण हूँ।