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HARISH KANDWAL

Romance

4  

HARISH KANDWAL

Romance

समझौता कर लेते हैं

समझौता कर लेते हैं

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आओ अब छोड़ो झगड़ना समझौता कर लेते हैंं

हम तुम एक हैं मिलकर इस बात को समझ लेते हैं।।


क्या रखा हैं बहस करने में आओ बैठकर बात करते हैं

चार दिन की हैं ये ज़िन्दगी,आओ हँसकर जी लेते हैं।।


एक दूसरे को गले मिलकर गिले शिकवे मिटा लेते हैं

आओ छोड़ो अब रूठना, एक दूसरे को मना लेते हैं।।


फिक्रो से दूर हो कुछ पल के लिए बेफिक्र हो जाते हैं

आओ मिलकर उन यादों के हसीन पलो में खो जाते हैं।


मन मे उपजे अनचाहे घास फूस को बीन लेते हैं

आओ मिलकर हम दिल में प्यार के बीज बो लेते हैं।।


बहुत हो गया बंधन, अब खुले आसमा में जीते हैंं

आओ मिलकर हम, फिर से नये सपने संजोते हैं।।


चाँद से मुखड़े पर जो अमावस की परछाई हैं

आओ मिलकर फिर से शरद का चांद बनाते हैंं।।


छोड़ो अब सब रुसवाइया, आओ समझौता करते हैं

चुप रहने में क्या रखा हैं,आओ खिलखिलाकर हंसते हैं।।



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