"'समझौता""
"'समझौता""
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जीवन से समझौता कैसे ,
हम सबको जीना यही हैं ,
प्रकृति ने हमें जन्म दिया ,
और हमें करना ही क्या ?
दोस्त दोस्त कब कैसे ,
हम सब एक जन्म के मीत ,
क्यों कब नहीं बनते ,
हम राही हैं वैसे।
ज़िन्दगी ज़िन्दा है कैसे ,
कोई यहाँ जीता है कैसे ,
हम सब एक जन्म के गीत ,
हम राही तू मेरी मीत कैसे !