स्थिरता
स्थिरता
मुझे अपनी राह में
उस दिन सुहानी सुबह
उस सुन्दर बगीचे
के बियाबान पिछवाड़े
सड़क पर गुजरते
सड़क मिल गई,
पूछा मैंने
हो कैसी, कहाँ चली?
सुनते ही मुझसे यह
वह लपक मेरे पास आई,
हँसकर धीमे से फरमााई
इतने दिनों की यारी
फिर भी भूलते हो भाई,
मैं कहाँ कभी कहीं जाती हूँ
बस रूक कर अपने
जगह पर स्थिर
तुम पथिकों को मंजिल
तक लेकर आती हूँ,
स्थित प्रज्ञ हो कर्म के मर्म को
स्थिरता से समझा जाती हूँ।।