टूटे आस
टूटे आस
मैं इस छोर से थामे हुए एक आस का धागा,
तू उस छोर बैठा रात की चादर में लिपटा
वो बस इक रात के पहलू में सिमटे दो अजनबी ही सही,
मेरा दावा है खुदा ने इस कदर किसी को मिलाया नहीं होगा।
कहा तूने की मुझसे इश्क करना चाहता तो है,
मगर मिलने की दूरी तू नही सह पाएगा शायद,
तू मेरे पास आया ही था मुझसे दूर जाने को,
तेरे महज़ कह देने से मेरे लिए तू पराया नहीं होगा।
ना बीते चंद पल की तूने फिर एक बार डोर खींची,
जो मैंने थी पकड़ी कसकर वो तो टूटनी ही थी,
तू कहकर तो गया था की मुझको भूल जाएगा,
पर मुझे यकीं है तूने मुझे भुलाया नहीं होगा।
वो दो पल में जो नगमे सुनाए थे मुझे तूने,
वो जो मैंने तुझे लफ्जों में बांधने की चाहत की,
लिखा तो था की पढ़कर फेक दूंगी याद हर तेरी,
मगर बिछड़े हुए को इस तरह किसी ने सजाया नही होगा।