# उनका ख़त
# उनका ख़त
मोतियों जैसा हर्फ है सुंदर
शब्द शब्द हैं छंद अलंकार
कविता सा लगता है ये ख़त
पढूं इसे मैं या गुनगुनाऊं ?
बताऊं सभी को , दिखाऊं सभी को
या चूम कर सबसे छुपा लूं
तिज़ोरी में अपने इसे बंद कर दूं
या अखबार में इसको छपवा दूं ?
मुद्दत बाद आया है पैगाम
छुपे रुस्तम निकले जनाब
उनको भी है जरा सा "वो सब "
जो मुझको हुआ है बेहद बेइंतहा ।
प्रेम पाक में डूबी है पंक्तियां
मुखर हुआ दिल का अरमान
देखा नहीं कभी नजरें उठाकर
लिखते हैं ख़त में, जज़्बात बेहिसाब ।
अधुरी सी कुछ , मीठी सी
बेहद , बेइंतहा मोहब्बत की बातें...
सदियों से इंतजार था मुझको
इस ख़त में है वो बातें तमाम ......!