वो अजनबी शख़्स
वो अजनबी शख़्स
वो शख़्स जिसका अक्स तक न देखा मैने
एक नक्श से बना गया ज़हन में मेरे।
खामोशी की चादर ओढ़े दस्तक दी थी उसने दिल पे
जलतरंग बज उठी हो जैसे शान्त झील में कंकड़ से।
न नाम कोई,पहचान कोई, आभासी था एहसास उसका
इंतेज़ार पर रहता हर पल न जाने क्यूं मुझको उसका।
गढ़ रही थी नियति एक कहानी आभासी इस दुनिया में
कुछ न हो कर भी वो शख़्स, ज़िंदा रह गया इस मन में।