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Chandra Prabha

Romance

3.3  

Chandra Prabha

Romance

याद तुम्हारी आए

याद तुम्हारी आए

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    रात अन्धेरी घिरती आए,

    मुझको याद तुम्हारी आए। 


    पानी अभी बरस रहा था,

   घुमड़ घुमड़ घन गरज रहा था,

    भीग गयी है धरती सारी,

    फूलों की महकी है क्यारी। 


    हवा में नई सुवास भरी है,

    रजनीगंधा बहुत खिली है,

    दूर पेड़ पर चिड़िया चहकी,

    मानों बनी निशि की प्रहरी।

 

    एकाकी यामा के ये क्षण,

    आतुर बना रहें हैं प्रतिक्षण। 

    पास हमारे यदि तुम रहते ,

    तुममें घुल मिलकर हम रहते। 


    वसुधा का यह भीगा अंचल,

    छेड़ रहा है पवन चंचल। 

     तरु पातों से बूँदें झरतीं,

     मर्मर रव दिशि में भरतीं। 


    यह स्वर,यह छवि, यह सोंधापन,

     बना रहा है मुझको उन्मन। 

    रात अँधेरी घिरती आए,

    मुझको याद तुम्हारी आए।


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