पतझड़ के बाद बसंत हमेशा सबके आँगन खिलते हैं ! पतझड़ के बाद बसंत हमेशा सबके आँगन खिलते हैं !
फिर ना देखा उसने, कभी भी दर्पण। फिर ना देखा उसने, कभी भी दर्पण।
फर्क इस बात से पड़ जाता है कि, अपना कोई विदा ले, जा रहा है दूर, बैठ उस जहाज़ में, या कोई प्रिय, आ ... फर्क इस बात से पड़ जाता है कि, अपना कोई विदा ले, जा रहा है दूर, बैठ उस जहाज़ मे...
पहन कर पीले-पीले वस्त्र खुशी लाये ऋतुराज बसंत। पहन कर पीले-पीले वस्त्र खुशी लाये ऋतुराज बसंत।
कहां खो गया वो लड़कपन जो मैं नहीं भूला। कहां खो गया वो लड़कपन जो मैं नहीं भूला।
बन राधा अपने मोहन की, नाम जपूँ शुचि यमुना कूले। बन राधा अपने मोहन की, नाम जपूँ शुचि यमुना कूले।