लगता है ,फागुन आ रहा है धीरे धीरे है, अंबर सजा हुआ सतरंगी बहारों से लगता है ,फागुन आ रहा है धीरे धीरे है, अंबर सजा हुआ सतरंगी बहारों से
तो कभी पुष्प बनकर यहां से वहां। राह पर भारती के बिखरती रही ।। नारियाँ हैं नहीं आज सुरक्षित यहां।... तो कभी पुष्प बनकर यहां से वहां। राह पर भारती के बिखरती रही ।। नारियाँ हैं नह...
मैं भटकता रहा पागलों की तरहबिन तेरे मैं जियूँ ये तो संभव नहींहँस के मैं मर सकूँ प्राण लो इस तरह मैं भटकता रहा पागलों की तरहबिन तेरे मैं जियूँ ये तो संभव नहींहँस के मैं मर सकूँ ...
पुष्प की पंखुरी अधखुले युग अधर मंद मुसकान को अब दबाओ न तुम पुष्प की पंखुरी अधखुले युग अधर मंद मुसकान को अब दबाओ न तुम
अभी छोडूंगा कई हज़ार मैं । कई बंदिशें मेरे पैर खींचती हैं, अभी छोडूंगा कई हज़ार मैं । कई बंदिशें मेरे पैर खींचती हैं,
समाजिक सरोकार की संस्कार है स्त्री। समाजिक सरोकार की संस्कार है स्त्री।