“
ये जो हवायें बहती है मंद-मंद,
ठीक वैसे हीं, जैसे तू- मुस्कुराती है मंद-मंद!
ये जो मौसम है,अंगड़ाईयाँ लेती है-फिर,
सावन की रिमझिम बरसात, करती है मंद-मंद!
इस रिमझिम फ़ुहार कि ये जो बूंदे है-
तुझे निहारती है मंद-मंद-
फिर तू अपने प्यार से, इस तपन को,
ठंढक पहुँचाती है मंद-मंद!
- प्रियम श्रीवास्तव
”