अबोध कलंकिता
अबोध कलंकिता
माधुरी आज कोर्ट रूम में दर्शक दीघा में आपने बेटे मोहित के साथ बैठी थी। उसकी धड़कन तेज थी क्योंकि उसको आज तक यह नहीं मालूम था कि उसके बेटे का असली बाप कौन है। दुनिया कुछ भी कहे लेकिन औरत को तो अपनी संतान के बाप का नाम मालूम ही होता है - भले ही वह अवैध संतान ही क्यों ना हो।
दूसरी तरफ छब्बीस वर्षीय मोहित की अपने जैविक बाप की तलाश पूरी होने वाली थी जिससे वह अपनी माँ के अपमान का बदला लेना चाहता था। माँ के माथे पर लगे कलंक को मिटाना चाहता था।
दोनो को एक ही परिणाम की प्रतीक्षा थी लेकिन बेचैनी का आयाम अलग था, बेचैनी की तीव्रता अलग थी। माँ की आँखों में पश्चाताप के आँसू और पुत्र की आँखों में प्रतिशोध की ज्वालामुखी थी।
जज साहिबा सील पैक लिफाफे से निकालकर रिपोर्ट पढ़ना शुरू की और माधुरी अपने अपमानित और व्यथित जीवन का छोर पकड़े बचपन में लौट गयी जब वो ग्यारह बरस की अबोध मासूम बच्ची थी। रोड एक्सीडेंट में अचानक उसके माता पिता की मृत्यु हो गयी थी। उसकी बड़ी बहन जिसकी शादी अभी मात्र दो साल पहले हुई थी अपने साथ लेकर गाजियाबाद आ गयी थी।
वह माता - पिता का साया सर से उठने का दर्द अभी महसूस करने के काबिल नहीं थी। वैसे भी यह उम्र तो खेलने खाने और मस्ती का होता है। दुख होता भी है तो परिवार के बड़े झेलते हैं बच्चे को उससे यथा संभव दूर ही रखते हैं।
माधुरी के दीदी ने भी पूरी कोशिश की। जीजा जी सरकारी बैंक में क्लर्क थे और दीदी एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी। गाजियाबाद के MIG कॉलोनी में उनका किराए का घर था। दोनो काम पर चले जाते थे और माधुरी स्कूल से आने के बाद दिन भर अकेले घर में रहती थी।
एक रोज माधुरी के पेट मे दर्द हुआ तो उसकी बहन उसको लेकर नजदीक के डॉक्टर के पास गयी। वो लेडी डॉक्टर थी। उसने जाँच किया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि इतनी छोटी बच्ची प्रेग्नेंट है। डॉक्टर ने जब उसकी बहन को बताया तो उसके होश उड़ गए। उसको समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी बहन से क्या बात करे ,कैसे बात करे। आखिर किसने यह कुकृत्य उसके साथ किया होगा। दीदी के हाथ पैर फूल गए जब डॉक्टर ने यह बताया कि काफी समय निकाल चुका है शायद गर्भपात नहीं हो सकता है। फिर भी उसने एक बड़े लेडी डॉक्टर को केस रेफर कर दिया।
शाम को जब दीदी ने अपने हसबैंड को यह बात बताई तो उनको भी घोर आश्चर्य हुआ। उनको इस बात का दुख था इस मासूम बच्ची से यह बात पूछी कैसे जाए की आखिर में वो गुनाहगार कौन है।
खैर अगले रोज बड़े डॉक्टर ने एबॉर्शन करने से इनकार कर दिया और बोली कि यह तो वैसे पुलिस केस बनता है लेकिन आपका फैमिली मैटर है आप देखो क्या करना है। लड़की की जान बचाने के लिए बच्चा के जन्म के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
घर आने के बाद माधुरी की दीदी ने प्यार से पूछा कि तुम्हारे साथ सेक्स किसने किया था। उस मासूम ने दीदी से पूछा सेक्स क्या होता है ?
जब दीदी ने उसे सब समझाया तो उसने बताया कि नदीम और रफीक उसके साथ ऐसा करते थे और कहते थे यह नया तरह का खेल है। शुरू में दर्द हुआ बाद में अच्छा लगने लगा। दोनों भाई मेरे साथ यह खेल खेलते थे और कहते इस खेल का नाम "डॉक्टर-डॉक्टर" है। वो लोग मुझे पेशेंट बनाकर इंजेक्शन लगाते और कहते कि इंजेक्शन लेने में हल्का सा दर्द होगा फिर सब ठीक हो जाएगा।
दीदी को अब समझ में नहीं आ रहा था क्या करे? नदीम और रफीक जिनकी उम्र 19 और 17 साल की है पड़ोस में ही रहते हैं। उसके घर पर अक्सर आते भैया-भाभी कहते रहते थे। कभी कभी सब्जेक्ट का आंसर भी पूछने के लिए आ जाते क्योंकि दीदी हाई स्कूल की टीचर थी।
चाहकर भी दीदी और जीजा कुछ नहीं कर पाते क्योंकि उनका बाप दबंग आदमी था और सिटींग कॉर्पोरेटर था। माधुरी को लेकर दीदी नाना के पास पटना गयी। नाना- नानी को सारी बात बतायी। नाना का अभी हाल ही में पटना ट्रांसफर हुआ था अतः बहुत कम लोग उनके बारे में व्यक्तिगत रूप से जानते थे।आखिर अपनी नवासी का मामला था साथ में खानदान की इज्जत का भी प्रश्न था। दोनों ने माधुरी को अपने पास रख लिया। नियत समय पर तेरह वर्षीय माधुरी ने एक स्वस्थ बेटा को जन्म दिया। उस समय माधुरी के मामा को शादी के छह साल बीत चुके थे लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं थी। समझा बुझाकर नानी ने उस लड़के को मामी को गोद लेने के लिए राजी कर लिया। एक तो मामी की जरूरत और दूसरी यह भय की यदि इनकार किया तो हो सकता है अगले साल रिटायरमेंट फण्ड में से उनको कुछ भी ना दें। आशंका, लोभ और जरूरत के वशीभूत मामी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
नानी के पास मोहित का पालन पोषण होने लगा। इधर जीजा जी ने अठारह साल की उम्र होने पर माधुरी की शादी करा दी। वह अपने ससुराल रहने लगी।लेकिन दस साल बाद किसी ने उसके पति को उसके कलंकित अतीत और कुँवारी माँ होने की बात बता दी। उसके पति ने उसको छोड़ दिया। अब दीदी का भी अपना परिवार था उसमें बड़े हो रहे बेटा-बेटी थे। अतः जीजा जी ने परित्यक्ता माधुरी को अपने पास रखने से माना कर दिया। अब लाचार माधुरी दीदी की सलाह पर अपने पैतृक गाँव विश्रामपुर में रहने लगी। गाँव में घर था ही और चार बीघा जमीन भी था जिसका बंदोबस्त चाचा देखते थे। गाँव में उसका जीवन किसी तरह कटने लगा, एक जिंदा लाश की तरह।
इस बीच नाना-नानी गुजर गए और मामी का व्यवहार भी मोहित के प्रति बदल गया। क्योंकि उनके अपने तन से भी एक बेटा पैदा हो गया था जो मोहित से पांच साल छोटा था। नानी के जिंदा रहते तो मोहित को कोई कठिनाई नहीं हुई क्योंकि वह अपनी दादी का लाडला बड़ा पोता बना रहा। जब मोहित पच्चीस साल का हुआ तो उसकी दादी और माधुरी की नानी गुजर गई।
एक रोज मोहित का अपने छोटे भाई राहुल से किसी बात पर झगड़ा हो गया बात हाथा पाई तक पहुँच गयी। गुस्से में माधुरी की मामी ने मोहित को उसके कड़वे अतीत के सत्य को बता दिया। साथ में यह भी कह दिया कि तुम्हारी माँ को भी तुम्हारे बाप का नाम मालूम नहीं है।
मोहित सुशिक्षित लॉ ग्रेजुएट बन चुका था। इस रहस्योद्घाटन से उसके अहम को ठेस पहुँची और उसका वजूद ही पहचान रहित हो गया। वह सीधा अपनी जैविक माँ माधुरी के पास विश्रामपुर पहुँचा।
उसने माधुरी को सत्य बताने का आग्रह किया। वह जानना चाहता था कि वो कौन है जिसने उसके माँ के साथ यह अत्याचार किया और आज उसका अपना अस्तित्व भी एक सामाजिक कलंक बन गया है। उसने माधुरी को धमकी दिया कि यदि उसने चौबीस घंटे के अंदर उस आदमी का नाम नहीं बताया तो वह आत्म हत्या कर लेगा।
माधुरी बिलख कर रो रही थी और मोहित उसको चुप करा रहा था। उसने कहा माँ केवल तुम उसका नाम बता दो अब रोना तो उसको पड़ेगा। माधुरी ने कहा "मैं कैसी अभागन हूँ जो अपने बेटे को उसके बाप नाम भी नहीं बता सकती।"
फिर उसने उसको आपबीती बात दी। मोहित ने कहा माँ तुम बिल्कुल चिंता मत करो तुम्हारे अपमान का बदला मैं लूँगा। तुमको थोड़ा हिम्मत से काम लेना पड़ेगा।
अगले रोज वह माँ को लेकर पुलिस स्टेशन पहुँचा सत्ताईस साल पहले हुए बलात्कार का कंप्लेंट लिखवाने। पुलिस ने केस दर्ज करने से मना कर दिया। वह सीधा कोर्ट पहुँचा और वहां से रिपोर्ट दर्ज करने का आर्डर लेकर आया।
मामला दर्ज हुआ ,अन्वेषण हुआ तो पता चला कि नदीम अपने बाप की जगह कॉर्पोरेटर बन गया है और रफीक एक बड़े बेकरी का मालिक है। दोनों का अपना भरा पूरा हर तरह से खुशहाल परिवार है। वो लोग तो इतनी पुरानी बात को भूल चुके थे। उनको तो माधुरी का नाम तक याद नहीं था। इस घटना के बाद माधुरी के जीजा जी ने मुहल्ला छोड़ दिया था। बाद में उनका ट्रांसफर गोरखपुर हो गया था।
बेटे के अथक प्रयास से केस शुरू हुआ और आज सेशन कोर्ट में उसपर फैसला आना था। DNA रिपोर्ट के अलावा कुछ भी ठोस सबूत नहीं था जो यह साबित कर सके कि बारह साल की अबोध बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था। धारा 375 का यह एसिड टेस्ट था। इसमें दोषियों पर निर्भया कांड के बाद हुए संशोधन नहीं लागू होंगे क्योंकि यह घटना उससे पहले की है। इसमें भी एक अभियुक्त उस समय नाबालिक था।
जज के सख्त रुख और मोहित के शानदार दलील के चलते अभियुक्त का पोलिटिकल रसूख और केस का पुराना होना कुछ भी काम नहीं आया। रिपोर्ट के अनुसार मोहित का जैविक पिता नदीम था। उसको आजीवन कारावास और रफीक को दस साल की सजा सुनाई गयी।
माँ बेटे की मनोदशा को कोर्ट में उपस्थित कोई भी व्यक्ति नहीं समझ सकता था। अभियुक्त के वकील केस को हाइकोर्ट में ले जाने की तैयारी में जुट गए।
अबोध कलंकिता अब अर्ध कलंकिता बनी अपने जीवन का भार उठाए कोर्ट रूम से बाहर निकली तो उसको अपने बेटे का सहारा और साथ था।
इस केस में माधुरी से ज्यादा वो समाज कटघरे में खड़ा है जिसमें अबोध बेटियाँ भी असुरक्षित हैं और 80% दर्ज मुकदमे में भी अभियुक्त बाइज्जत बरी हो जाते हैं।