Madhu Vashishta

Inspirational

4.7  

Madhu Vashishta

Inspirational

अगर खुद खुश तो दुनिया सुखी।

अगर खुद खुश तो दुनिया सुखी।

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यह उन दिनों की बात है जब नीता की नई-नई शादी हुई थी। वह मायके से बहुत सी सीख और बहुत से संस्कार साथ लेकर गई थी। उसे लगता था कि ससुराल में उसे हर दिन अपने संस्कारों की परीक्षा देनी है।

सुबह सवेरे उठ के घर के कामों में लग जाती थी। उसके संयुक्त परिवार में 8 लोग थे जिनमें दादी सास सासू मां ससुर जी के अलावा दो ननद और एक देवर था।

पढ़ाई खत्म होते ही विनय जैसा सरकारी नौकरी वाला दामाद मिलने की खुशी में माता पिता ने यह भी ना सोचा उसका आगे पढ़ाई करके नौकरी करने का भी एक सपना है।

 नीता के पिता का ख्याल था कि वह सपना भी वह अपने ससुराल में जाकर ही पूरा कर लेगी। ससुराल में उसके लिए पढ़ने का बिल्कुल माहौल नहीं था। 

सासू मां का ख्याल था कि सिर्फ घर का ही तो काम है वह तो बेटियां और बहू रानी मिलकर पूरा कर ही सकते हैं। कब सुबह होती थी और कब रात, पूरा दिन घर का काम, दादी मां के लिए अलग तरह का खाना बनेगा सासू मां के लिए अलग पतिदेव की अलग ही फरमाइश होती थी और देवर की अलग।

         घर में सुबह उठने के साथ झाड़ू पोछा, कपड़े ,खाना बनाना इसके अतिरिक्त और भी कुछ काम जो उसके कमरे से और उससे ही संबंधित होते थे वह भी उसे ही करने होते थे। उसने संस्कार तो सीखे थे इसलिए वह मना भी नहीं कर पाती थी। क्योंकि वह सारा काम कर लेती थी इसलिए ननदों ने भी धीरे-धीरे सारा काम नीता पर ही छोड़ना शुरू कर दिया था।

हालांकि नीता अच्छी तरह से काम करना तो जानती थी लेकिन इतना बड़ा घर और सबका ख्याल रखना इसके अतिरिक्त पतिदेव की भी रोज की रोज नई फरमाइशें, इन सब कामों को करते हुए वह रात तक भी हद तक जाती थी और सुबह भी उसे जल्दी ही उठना होता था।

   

 वह सबका काम करने में तो रात तक सफल हो जाती थी लेकिन  अपने शरीर और अपने आराम का भी ख्याल रखना चाहिए, यह उसे समझ ही नहीं आता था। सारा दिन काम करने थकान परेशानी और सब को खुश रखने की चाह में कुछ महीने में ही वह बेहद कमजोर और बीमार से ही हो गई थी।

सासू मां के पास उसकी जानकार सहेलियां और रिश्तेदार आते और बहू के बारे में बातें होती की बहू घर में सारा काम समझ गई और सबसे घुल मिल गई। तो सासू मां हमेशा एक ही जवाब देतीं कि घर का काम करना सीख रही है अभी तो इसे इतना कुछ आता नहीं, आ जाएगा धीरे-धीरे। वह हैरान हो जाती सारा दिन तो उसने काम किया था लेकिन फिर भी।

उसकी बीमारी में जब अत्यंत कमजोरी और थकान होने के कारण उसने बिस्तर पकड़ लिया तो वह घर में कोई भी काम नहीं कर पा रही थी।

ससुराल में उसका काम करने में सब परेशान हो रहे थे। क्योंकि वीकनेस और एनीमिया के कारण वह अधिकतर लेटी ही रहती थी तो पतिदेव ने उसे कुछ दिनों के लिए उसके मायके छोड़ दिया।वहां उसने अपनी भाभी से बात करते हुए भाभी को बताया कि मैं तुम्हारे ही जैसे घर में सब काम करते हुए सबको खुश रखना चाहती हूं लेकिन -----! मैं इतना काम भी करती हूं लेकिन फिर भी कोई मेरे करे हुए काम को ना तो अहमियत देता और ना ही कोई मेरे काम की तारीफ करता है।

भाभी ने उसे केवल एक ही सीख दी कि सबको खुश रखना है तो पहले खुद स्वस्थ और खुश रहना सीखो तभी तो सब तुम्हारी तारीफ ही करेंगे। जब तुम अपना ही ख्याल नहीं कर सकती तो तुम सब का ख्याल कैसे रख सकती हो।उसे भाभी की बातों से कुछ समझ में आया और कुछ नहीं।

अब के ससुराल जाने के बाद उसने सुबह सवेरे उठते ही घबराहट में रसोई का काम करने की बजाय पहले खुद नहा धोकर तैयार होकर फिर अपनी चाय बनाने के लिए रसोई में प्रवेश करना शुरू करा। उसने पाया कि काम उसके बिना में भी रसोई में सुचारू रूप से चल रहे थे। चाय समय पर बन गई थी और एक ननद सब्जी काट चुकी थी उसने जाने के बाद जो काम कर सकती थी करना शुरू करा। घर में झाड़ू पोंछा भी लगाने के बाद घर फिर से गंदा हो जाता था तो पहले के जैसे पूरा दिन झाड़ू पोछा में ही नहीं लगाया अपितु अपना काम करके दोपहर को आराम करने के लिए अपने कमरे में आ गई। ऐसे ही उसने शाम को भी काम करा 7:00 बजे तक सब्जी छोंक के और अपना और पति का खाना बनाकर अपने कमरे में ले गई। पहले वह सब के खाने तक का ही इंतजार करती रहती थी ना तो कभी पति के साथ कभी खा पाई और ना ही पति को समय से खिला पाई। अब क्योंकि समय से पति और वह खाना खा लेते थे तो वह दोनों भी खुश ही रहते थे। भले ही रोटियां ठंडी खाने को मिले लेकिन वह दोनों अब साथ ही खाना खाते थे। मैं पहले ही रोटी बना कर रख देती थी और अगर कोई गरम खाना चाहे तो मैं अपनी रोटी बहन या सासू मां से बनवाए। अक्सर अब वह अपने पति के साथ शाम को घूमने भी जाने लगी।

काम अब भी पूरा दिन ही होता था लेकिन वह अपने आराम का पूरा ख्याल रखती थी। अगर कभी ननद जी ने कहा भी कि घर गंदा हो रहा है वह साफ जवाब दे देती थी कि मैंने पोंछा लगा दिया है उसके बाद में जो भी गंदा कर रहा है यह उसकी जिम्मेदारी है वह खुद साफ करे इससे आगे मैं नहीं कर सकती। मैं बीमार हो जाऊंगी तो मायके में मेरी भाभी बिचारी भी इतना नहीं कर पाएगी। उसके अपने व्यवहार को बदलते हैं घर की दिनचर्या में भी खुद-ब-खुद बदलाव आ गया।

अब वह खुद भी खुश और स्वस्थ और सलीके से रहने लगी थी तो उसका मजाक बनाने की भी किसी को हिम्मत नहीं पड़ती थी। अभी कुछ समय पहले फिर सासू मां की सहेलियां आईं और उन्होंने पूछा की बहू का मन घर में लग गया क्या? सासु मां ने जवाब दिया हां अब तो घर का सब काम सीख गई है।

समझे पाठकगण , अगर खुद खुशी तो दुनिया खुश। खुद सुखी तो दुनिया सुखी नीता को यह बात बिल्कुल समझ में आ चुकी थी।



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