अकेली औरत
अकेली औरत
आज इशिता सोच रही थी कि अकेली औरत का जीना मुश्किल होता नहीं बल्कि समाज द्वारा जान बूझ कर इसे मुश्किल बना दिया जाता है।
क्यों अकेली औरत को जीने की आजादी नहीं है।पिछले बारह सालों से इशिता सरकारी स्कूल में पढाती थी और अकेले रहकर नोकरी करती थी।
शादी न करने की बात को लेकर न जाने कितनी बार उसने रिश्तेदारों से ताने सुने थे शायद यही वजह थी कि अब वो सबसे दूर अकेले ही रहना चाहती थी।
लोग उसे कहते अकेली औरत का रहना महफूज़ नही पर ये नही बताते क्यों किसकी वजह से।
औरत का महफूज न होना आखिर इसके पीछे वजह तो समाज ही है ना या यूं कहिये समाज मे रहने वाले भेड़िये रूपी पुरुष वे पुरुष जो औरतों को पैर की जूती समझते हैं।
कुछ भी हो जाये इशिता को यह मिथ तोड़ना था कि अकेली औरत सुखी रहकर जीवन नही बीता सकती।
जब इशिता के आस पास की शादी शुदा औरतें उसे कहती हमे भी तुमहारी तरह जीवन जीना था पर नही जी पाए तब इशिता सोचती की जीवन तो एक ही बार मिला है घुट कर जीने से बेहतर है खुल कर अपनी मर्जी से जियूँ और उसे नाज होता कि वह अकेली तो है पर खुश है सुखी है।