Vimla Jain

Tragedy Action Inspirational

4.5  

Vimla Jain

Tragedy Action Inspirational

अंधविश्वास में बुद्धि गायब

अंधविश्वास में बुद्धि गायब

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अंधेरे का डर सबको होता है अंधेरे में परछाई भी अपना साथ छोड़ देती है गायब हो जाती है। मगर जब इंसान के दिमाग पर अंधविश्वास का अंधेरा छा जाता है तो अच्छे-अच्छे की बुद्धि गायब हो जाती है 

अज्ञानी होना इतना हानिकारक नहीं हैं, जितना हानिकारक हैं अपनी अज्ञानता का ज्ञान नहीं होना तथा अपने अज्ञान को स्वीकार नहीं करना व अपने ज्ञान का अहंकार होना।

और इसका अंधेरा कितना भारी होता है शकुन अपशकुन पर इतना हावी हो जाता है। कि लोगों की बुद्धि गायब हो जाती है इस अंधेरे में खो जाती है। प्रस्तुत कहानी इसी पर आधारित है।

होली आने वाली है घर में सबको बहुत खुश होना चाहिए, खासतौर से बच्चों को।

क्योंकि बच्चों का तो मनपसंद त्योहार रंगों से खेलना और होली होता है।

मगर इस घर में तो बच्चे हमेशा दुखी ही रहते हैं। जब भी होली आती है उस से 10 दिन पहले से ही उनका मन खराब हो जाता है। क्योंकि वह होली खेलना चाहते हैं त्यौहार मनाना चाहते हैं। मगर उनकी दादी जी उनको होली मनाने ही नहीं देती।

उनका ऐसा मानना है उनके यहां पर पीढ़ियों पहले किसी का होली के दिन स्वर्गवास हो गई था तब से ही होली खेलने की ओक हो गई है।

मतलब एक तरह का अपशकुन हो गया है कि जो भी होली खेलेगा होली मनाएगा। उस घर में तो किसी की मृत्यु हो जाएगी कुछ बुरा हो जाएगा। बच्चों के तर्क वितर्क बड़ों का समझाना कुछ भी दादी को काम नहीं लगता। बस वे अपनी बात पर ही अड़ी रहती और होली के दिन घर के बाहर ही ताला लगा देती । ताकि कोई घर बाहर जा ना सके सब लोग बहुत ही परेशान थे। कुछ समय पहले उनके छोटे बेटे की शादी हुई थी वह दूसरे शहर में रहता था। उसको भी कह दिया गया था कि होली नहीं खेलना है। मगर उसकी पत्नी इन सब ढकोसलों में नहीं मानती थी। उसने कहा मुझे तो होली खेलनी है बहुत मना करा अगर नहीं मानी बोले मैं तो घर जाकर के सब के साथ मेरी पहली होली है तो वहीं मनाऊंगी।

और उसने घर पर बहुत सारी मिठाइयां वगैरह बना कर तैयारी कर ली, और अपने पति को भी किसी तरह से मना लिया दोनों जने गांव में अपने घर गए ताला लग रहा था। मगर उनको तो पता था कि ताला क्यों लगाया गया है। बेटे ने मां को फोन करा मैं आया हूं दरवाजा खोलो। मां ने अपने बड़े बेटे को बोला पीछे की तरफ से बाहर जाकर दरवाजा खोल ताला खोल कर आओ।

जैसे ही ताला खोलने गया। खुलते ही बहू और बेटा घर में घुसे और बहू ने एक साथ खूब सारा रंग उड़ाया।

और होली है होली है बुरा ना मानो होली है बोलने लगी ।  उसके देखा देखी सब बच्चे भी बाहर आकर रंग उड़ाने लगे ।

अब वह दादी जी मतलब उनकी मां बहुत नाराज हुई मगर बहू ने जाकर उनके भी रंग लगा दिया।

बोले मांजी आप नाराज क्यों हो रही हो।

होली का त्योहार है तो होली सबको मनानी ही चाहिए। 

अपने साथ में लाई हुई मिठाई सबको खिलाने लगती है।

मां उसको उसका हाथ पकड़ कर बोलती हैं यह तू क्या कर रही है।

वर्षों पुरानी ओक है तू अपशकुन काम कर रही है।

हे भगवान घर में कुछ हो ना जाए इस नादान से को कौन समझाए इसने वर्षों पुरानी परंपरा तोड़ दी है और वह बहुत जोर जोर से रोने लगती है ।

बहू बोलती है अच्छा यह बताओ किस का स्वर्गवास हुआ था और कब हुआ था। माजी एकदम सकपका जाती हैं।

बोलती है वह तो बहुत पुरानी बातें मुझे पता नहीं है कोई 8,10 पीढ़ी पहले कोई मर गए थे। बहु बोलती है मां जी आप बहुत अंधविश्वास रखती हैं।

ऐसा कुछ नहीं होता है आपने इतने साल इन सब को इस खेल से दूर रखा इनको त्यौहार नहीं मनाने दिया ।

इनको शांति से त्यौहार मनाने दो और मेरे को भी मनाने दो और इस अंधविश्वास से दूर निकलो‌ अब तो सब खूब शौक से होली खेल रहे थे।

तभी बहू को चक्कर आता है और उसका पति एकदम उसको थाम लेता है।

 और डॉक्टर बुलाया जाता है डॉक्टर आकर बोलते हैं खुशखबरी है आपके घर में जल्दी ही नया मेहमान आने वाला है।

अब तो दादी जी मतलब उसकी माताजी बहुत ही खुश होती हैं और बोलती है बेटी तूने मेरी आंखें खोल दी‌, और त्यौहार मनाने का शुरू करवा दिया।

मेरे मन में तो इतना डर था कि कोई अपशकुन होगा मगर यहां तो अब सुकूनभरी खुशखबरी मिल गई है ।

यह सब हमारे मन की बात है आगे से कोई भी ओक मैं नहीं मानूंगी, और कोई भी अंधविश्वास नहीं मानूंगी। 

और सब हंसी खुशी एक दूसरे को मिठाई खिलाकर होली खेलने लग जाते हैं। और इस तरह से एक अंधविश्वास का वर्षों से पीढ़ियों से चली आ रही प्रथा का अंत हो जाता है।

मैं तो इन अंधविश्वासों को नहीं मानती हूं और मैं चाहती हूं कि हमको अंधविश्वासों को मान करके उनको बढ़ावा नहीं देना चाहिए।



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