संदीप सिंधवाल

Others

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संदीप सिंधवाल

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अंगूर की बेल

अंगूर की बेल

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अंगूर मीठे के साथ जब थोड़ा खट्टे भी हों तो खाने का एक अलग ही मजा 

होता है। बात मेरे ही बचपन की है जब मै महज 11 साल का आधा समझ  का बच्चा था। हमारे घर के सामने एक ओर नीम का बड़ा पेड़ था और दूसरी छोर पर एक पहाड़ी खुबानी का पेड़ था। अंगूर की बेल के लिए दोनों पेड़ो को जोड़ते हुए एक तार का बेड बनाया गया था जिसे बीच बीच में लकड़ियों को बल्ली से जोड़ा गया था। अंगूर की बेल का पूरा झाड़ उसी तारों के बेड पर लदा हुआ था और वो बिल्कुलऊपर छत के समांतर था। 


जुलाई अगस्त के महीने में हमारा बचपन अंगूर, आम, आड़ू, खुबानी, अमरूद भुट्टे का आनंद लेने में निकल जाता था, जिंदगी के असली मजे हम इन्हीं महीनों में लेते थे क्योंकि स्कूल की गर्मियों की छुट्टी के बाद नया नया स्कूल होता था तो एक नया ही जोश होता था जिसे हम सब बच्चे शेयर करते थे। तो अंगूर पकने का समय आ चुका था। रविवार को छुट्टी में सुबह दूरदर्शन पर रंगोली

और चंद्रकांता देखने के बाद कुछ बोर सा हो रहा था, दीदी और भैया चाचा जी के यहां गए हुए थे, मै अंगूर निकालने के लिए उत्सुक था चूंकि पास के आसानी से निकले जाने वाले पके हुए अंगूर खत्म हो चुके थे इसलिए पके हुए और रसीले अंगूर निकालने के लिए थोड़ा संघर्ष तो करना ही पड़ता। 


पके और रसीले अंगूरों की मुझे खास पहचान थी, सबसे अच्छे और मोटे अंगूर मै हमेशा 

बापू और मां के लिए निकलता था और एक प्लेट में उन्हें ऐसे देता था जैसे बहुत बड़ी जंग 

जीता हो और ये सूबे से मिला हुआ धन हो। मां और बापू भूरी भूरी प्रशंसा करते थे तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता था। हां तो इसी इरादे से उस दिन भी अंगूर निकाल रहा था, छत की पहुंच से थोड़ा दूर थी बेल। अचानक मुझे पके हुए चार गुच्छे दिखाई दिए तो पाने की लालसा बढ़ी, उचकते हुए इतना आगे कब निकल गया पता ही नहीं चला। मै बेल बेड पर बीच से आगे निकल गया तो बहुत हिल रहा था। लकड़ी की कुछ बल्लियां पुरानी होकर सड़ने लगी थी। मेरा पैर उसी बल्ली पर पड़ा और वो चटक से टूट गई। 


फिर क्या मै धड़ाम से नीचे जमीन पर गिर गया। 12 फीट की ऊंचाई से गिरने से कमर, पैर और हाथ में चोट आ गई तो जोर जोर से रोने लगा रेंग रेंग कर। मां सुनते ही दौड़ पड़ी पर कुछ बड़बड़ाती हुई और हाथ में कुदाल इस तरह लेे कर कि जैसे कोई योद्धा हाथ में तलवार ले कर किसी युद्ध भूमि की ओर कूच करता हो। मैं मां के इरादे को तो भांप नहीं पाया और ना समझ पाया कि क्या बडबडा रही है। तो मदद की आस से मै मां मां कर के रो रहा था। पर ये क्या 

जैसे ही मा पास आई तो मरी पीठ पर 2-3 कुदाल के और ठोक दिए ये कहते हुए कि "क्यों चढ़ा था ऊपर, नीचे गिर कर मर जाता तो, मेरे लिए हमेशा आफत पैदा करता है।" गिरने से चोट आई थी उसका दर्द तो जैसे गायब ही हो गया और जो मां ने और मारा उसका ज्यादा दर्द महसूस होने लगा तो और जोर से कराहने लगा, ये देखते ही मां फिर मारने के लिए आई तो मै किसी तरह से छूट कर भाग गया और इतनी तेज गति की रुकने से भी भी नहीं रुका। हमारे पहाड़ों में सीढ़ीदार खेत होते हैं तो सीढ़ी की ऊंचाई 20-30 फीट तक भी होती है। तो मैं ऐसे ही भागते हुए लगातार 

तीन खेत कूद गया। और जब सुनिश्चित कर लिया कि खतरा टल गया तो बैठ कर खूब रोने लगा।


अब ये तीन तरह का दर्द था एक तो गिरने का दूसरी मार का और तीसरा खेत कूदने का। एक घंटे बाद वापस आया तो मां बहुत रो रही थी। मुझे सीने से लगा कर और जोरों से रोने लगी। मुझे अब 

दर्द नहीं हो रहा था पर फिर भी रो रहा था अब मुझे मां का दर्द महसूस हो रहा था। मां का ये प्यार मै उस समय तो नहीं समझ पाया पर हां आज जब भी याद करता हूं तो समझ आता है कि मां हमेशा ही हमारी सलामती चाहती थी। वो इतना प्यार करती थी कि उसे जब गुस्सा आता था तो मारती थी इस वजह से कि मुझे कुछ हो गया तो किस आस से जिएगी। उसकी मार में एक सीख होती थी कि कभी मुझसे दूर मत होना।

आज हालातों ने मुझे मां से बहुत दूर किया हुआ है सोचता हूं मेरी मां कैसे जी रही होगी। 




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