Sakshi Nagwan

Drama Inspirational

4.7  

Sakshi Nagwan

Drama Inspirational

अंको का चक्रव्यू

अंको का चक्रव्यू

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अंक!! महज दो अक्षरों का ये शब्द किसी की भी ज़िन्दगी को बदल सकती है, हर व्यक्ति के जीवन में एक मंजर ऐसा आता है। जब व्यक्ति के व्यक्तित्व

से ज्यादा उसके जीवन में अंकों का महत्व होता है, और अंकों का सबसे ज्यादा महत्व एक विद्यार्थी के जीवन में पड़ता है। विद्यार्थी के जीवन में उसकी समझदारी से ज्यादा उसके अंकों को महत्ता दी जाती है। परन्तु यह गणना करना कहा तक ठीक है। की जिस विद्यार्थी के जितने अधिक अंक वह विद्यार्थी उतना ही समझदार है। किसी विद्यार्थी की समझदारी महज़ अंकों की मोहताज नहीं है। एक विद्यार्थी की समझदारी को समझने के लिए उस के हर पहलुओं को देखना आवश्यक होता है। विद्यार्थी को महज अंकों के पहलू में देखना सही नहीं है अंकों का यह चक्रव्यू विद्यार्थी के जीवन में शुरुआत से ही बनना आरम्भ हो जाता है। और यह चक्रव्यू बढ़ते बढ़ते इतना बढ़ जाता है, की उसमे से निकलना संभव नहीं हो पता अंकों के इस चक्रव्यू में फँस कर विद्यार्थी अपनी प्रतिभा अपनी समझदारी अपने सपने सब कुछ उस चक्रव्यू में नष्ट कर देते है। उन्हें इस चक्रव्यू मध्य कुछ दिखाई नहीं देता न तो उसके सपने न ही अपनी समझदारी कुछ नहीं सिर्फ उन्हें अंकों का वो भयानक चक्रव्यू जिसे तोड़ कर उन्हें बाहर निकल कर नए दुनिया में जाना होता है। इस चक्रव्यू में इतनी नकारात्मक ऊर्जा होता की वो चाहा कर भी अपनी सकारात्मक ऊर्जा को देख नहीं पता जिस के रहते वह अपने जीवन को अंधकार के कुएँ धकेल देता है। और उस कुए में से कोई भी उसे निकल नहीं सकता ऐसे ही एक कहानी है। श्यामगढ के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक लड़के की जिसने भी अंकों के इस चक्रव्यू में फँस कर अपनी और अपने परिवार की ज़िन्दगी को अंधकार के उस कुएँ में धकेलने का प्रयास किया था परन्तु समय रहते उसने इस बेवकूफी को अंजाम नहीं दिया और उसने अपनी और अपने परिवार के जीवन को बचा लिया। 

       एक गांव मे विवान नाम का एक लड़का रहता था विवान एक बेहद गरीब परिवार से तालुकात रखता था उसके माता - पिता दोनो मजदूरी कर के अपना पेट पालते थे विवान बहुत ही समझदार लड़का था, उसे अपने परिवार के हालत के बारे मे बखूबी पता था इस वजह से वो बहुत पड़ता था ताकि वो अपने परिवार के हालत को सुधार सके वह पढ़ाई मे काफी समझदार था वह हर साल अपनी कक्षा मे प्रथम आया करता थाये सिलसिला काफी सालों तक चलता रहा इस साल उसने अपने १०वी की परीक्षा दी थी उसने वह राज्य स्तर पर प्रथम आया था यह देख कर सभी उससे 

बहुत खुश थे राज्य स्तर मे प्रथम आने से उसे राज्य की तरफ से २ लाख रूपए की स्कालरशिप मिली और उससे राज्य की तरफ से उच्च शिक्षा मे आर्थि

सहायता की भी बात की उसके बाद उसने १२वी कक्षा मे विज्ञान लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया, अभी तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था परन्तु इस के बाद उसके साथ जो हुआ उस बात ने उसे हिला कर रख दिया १२वी की परीक्षा के बाद उसे दो और परीक्षाए देनी थी जिस से की वो अपनी आने वाली उच्च शिक्षा को शुरू कर सके उसने ये बात जाकर अपने पिता को बताई तो उसके पिता को खुशी से ज्यादा घबराहट और दर लग रहा था उनके डर की वजय ये थी की वो जानते थे की विवान ये दोनों परीक्षाएं बड़ी सरलता से उत्तीर्ण कर लेगा और उसके बाद उन्हें उसका दाखिला दिलवाना पड़ेगा और वो जो पड़ना चाहता है उसमे बहुत पैसा लगता है एक दिन की बात है वह रात को अपने मित्र के घर से पढ़कर लोटा तो उसने अपने माता -पिता को बात करते हुए सुन लिया उसके पिता ने उसकी माता से कहा उन्हों ने अपनी जमीन और अपना घर गिरवी रख दिया है पर अब भी पैसे कम पड़ रहे है इस पर उसकी माँ ने अपनी आंखे नाम कर के कहा "आप मेरे जेवर को भी गिरवी रख दो विवान के पढ़ाई में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए " इस पर उसके पिता ने कहा नहीं तुम अपना एक भी जेवर गिरवी नहीं रखो गी मैंने अपने मालिक से बात की है पैसो के लिए यह सब कह कर दोनों माता -पिता कुछ पलों के लिए शांत हो गए फिर उसके माँ ने अपनी घबराती हुई आवाज़ में कह "सुनिए एक बात पूछूं " उसके पिता ने कहा "हाँ पूछो क्या पूछना चाहती हो " इस पर उसकी माँ ने कहा "अगर विवान इस परीक्षा में उत्तीर्ण न हुआ तो हम इतना सारा कर्ज जो विवान की पढ़ाई के लिए उठाया वो कैसे उतरेंगे " इस पर उसके पिता बौखला के बोल उठे "नहीं ऐसा कुछ नहीं हो सकता उसे उत्तीर्ण होना होगा बचपन से जो हमने विवान के लिए जो किया उसे उसका का कर्ज उसे इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो के उतरना होगा, वो हमारा कर्त्तव्य था अब वो उसका कर्त्तव्य है की वो परीक्षा में उत्तीर्ण आए और हमारे घर के हालत को सुधारे हमने कब से इस दिन का इंतज़ार किया है कब हमारा बेटा बड़ा हो और बड़ा होकर अपने कर्त्तव्य को निभाए और इस घर की बागडोर अपने हाथो में ले और हमें इस जिमेवारी से मुक्त कर हमारे घर के हालातों को सुधारे " अपने माता -पिता की ऐसी बातें सुन कर विवान के जीवन में एक अलग ही मोड़ ले लिया था अब वो पढ़ाई से ज्यादा उन बातों पर ज्यादा ध्यान दे रहा था उसे पहले ये लग रहा था की वो इन परीक्षाओ में उत्तीर्ण हो जाएगा परन्तु अपने माता -पिता की बात सुनकर वह दबाव में आ गया था की अगर वह  परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हुआ तो क्या होगा? अभी  वो इन बातों से उभरा ही नहीं था इतने में ही उसके एक मित्र जो की उसके साथ पड़ता था और वह उससे बहुत जलता था क्योंकि विवान उस से ज्यादा समझदार था और कही न कही उसे भी यह पता था की वो इन परीक्षाओ को बहुत आसानी से उत्तीर्ण कर लेगा और यही वजय थी की वो उसे अपने रस्ते से हटाना चाहता था और उसने ऐसा ही करा और वह अपने इन मनसूबों में काफी हद तक सफल भी हो गया था उसने विवान से कहा "विवान तुम्हारी परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है" उसने बहुत ही सहमि हुई आवाज़ में जवाब देते हुए कहा,"हाँ अच्छी तैयारी है। बस थोड़ा सा भौतिकी में कमी रह रही है। पर काफी हद तक तैयारी अच्छी है" विवान की ऐसी बात सुनकर अथर्व ने कटाक्ष मारते हुए कहा,"तुम्हारी ये थोड़ी सी कमी तुम पर काफी भरी पड़ सकती है। " फिर व्यंग्यात्मक हंसी को हस्ते हुए कहा," विवान मै तुम्हारा मित्र हूँ मै कभी भी तुम्हारा बुरा नहीं चाहुँगा मेरी मनो तो तुम इस बार परीक्षा न ही दो तो ही तुम्हारे लिए बेहतर होगा विवान ये १२वी की परीक्षा नहीं है ये जेई की परीक्षा है। और इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना हर किसी की बात नहीं नहीं है। कुछ एक ही ऐसे होते है। जो इसे पहली बार में ही उत्तीर्ण कर ले इस परीक्षा में एक-एक अंक का बहुत महत्व है महज़ एक अंक से ही बाज़ी पलट जाती है वैसे सही कहुँ तो तुम परीक्षा देने करने में बहुत जल्दबाज़ी कर रहे हो और इस जल्दबाज़ी में तुम अपने पिता के पैसो को भी बर्बाद कर रहे हो जिसमे तुम्हे पता है की तुम्हारे परिवार के लिए एक -एक पैसा कितना कीमती है (व्यंगात्मक हंसी हस्ते हुए ) आगे तुम अपने आप समझदार हो अभी समझ जाओ विवान वरना आगे तुम्हे बहुत पछताना पड़ सकता है और बाद में पछताने से कुछ नहीं मिले गा " अथर्व की ऐसी बाते सुनकर विवान की बची हुई हिमत , विश्वास , समझदारी , उम्मीद सब कुछ बिखर गए थी मानो उसको कभी खुद पर विश्वास ही नहीं था अब उसकी समझदारी के मध्य दबाव और अंको का एक मजबूत चक्रव्यू 

बना लिया था जिसे तोडना विवान के लिए बहुत मुश्किल हो चूका था वो चाहा कर भी उन बातो और अंको के उस भयानक चक्रव्यू से बहार नहीं निकल पा रहा था उन बातो का उसपर इस कदर असर हुआ की उसने परीक्षा न देने का फैसला ले लिया उसके इस फैसले ने उसको झंजोड़ कर रख दिया था उस का फैसला न तो उसके पिता को समझ में आया और न ही उसके मित्रो को ही समझ में आ रहा था वह दिन प्रतिदिन बीमार होता जा रहा था अपनी बेटे ऐसी हालत को देख कर उसके पिता को बेहद दुखी हो रहे थे की उनका बेटा कितना परेशान है। उन्होंने विवान के अध्यापक से बात की तो विवान के अध्यापक ने भी स्वीकारा की विवान किसी बात को लेकर बहुत परेशान है। इस पर उस अध्यापक ने कहा की वह विवान से मिलना चाहता हूँ इस पर उसके पिता ने कहा, "ठीक है। मैं कल उसे आप के पास भेज दूँगा बस आप मेरे बेटे को बचा लीजिये मैं आपका ये अहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगा " उसके पिता ये सब कुछ कह के वहाँ से चले जाते है। पर विवान के अध्यापक उसकी ऐसी हालत को सुनकर बेहद परेशान हो रहा था वह कल के आने का इंतज़ार नहीं कर सकता था इसलिए वह उसके घर उससे मिलने चला गया वहाँ जा कर जब उसने विवान की ऐसी हालत देखी तो उसको देखकर वह काफी दुखी हो गया उसने विवान से पूछा,"विवान मैंने सुना की तुम जेई की परीक्षा नहीं दे रहे हो" अपने अध्यापक की ऐसी बात सुनकर विवान की आंखे भर आई उसने अपने जस्बात पर काबू पाते हुए कहा, "बस गुरु जी मैं जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता और अगर मैं परीक्षा में असफल हो गया तो सारे पैसे बर्बाद हो जाए गए और जेई की परीक्षा को उत्तीर्ण करना हर किसी के बस की बात नहीं है। ये १२वी की परीक्षा नहीं है। ये जेई परीक्षा है। और मैं अभी इस के लिए तैयार नहीं हूँ मेरी समझदारी जेई के परीक्षा के लिए बहुत तुच्छ है। मैं तो सिर्फ बी टेक् तक ही सिमित हूँ इससे ज्यादा मैं कुछ भी नहीं हूँ इस लिए मैंने ये तय किया की मैं जेई की परीक्षा कभी भी नहीं दुंगा शायद जेई की परीक्षा उत्तीर्ण करना मेरे भाग्य में ही नहीं है। इस लिए बेहतर यही होगा की मैं अपने भाग्य से लड़ने की बजाये मैं वो करूँ जो मैं कर सकता हूँ न की उसके पीछे भागू जो कभी मेरा हो ही नहीं सकता" विवान की ऐसी नकारात्मक बातें सुनकर उसके अध्यापक को बेहद हैरानी हुई की विवान ऐसी बातें कर रहा है। उसकी बातें सुनकर उसके अध्यापक कुछ पलों के लिए मौन हो गए फिर कुछ देर बाद उससे बोले, "क्या तुम जो ये बोल रहे हो या तुम्हारा डर बोल रहा है। क्योकि जो तुम्हारे तफ़ाज़ों पर है। वो तुम्हारी आँखों में बिलकुल नहीं है। तुम्हारी आँखों में ये साफ दिखाई दे रहा है की तुम कितने डरे हुए हो तुम्हारा भाग्य नहीं बल्कि तुम्हारा डर जो तुम्हें ये परीक्षा को देने से रोक रहा है। डर इंसान से कुछ भी करवा सकता है। पर अब ये तुम्हें देखना है। की तुम करना चाहते हो और रही बात तुम्हारे परीक्षा में असफल होने की बात तो तुम मुझे एक सवाल का जवाब दो क्या तुम एक विद्यार्थी हो या एक सिद्ध ज्योतिष अपने अध्यापक के ऐसे प्रश्न पर उसने उतर दिया"अरे! गुरूजी ये कैसा सवाल है। बेशक से मैं एक विद्यार्थी हूँ" विवान के इस उतर पर उसके अध्यापक हँस कर बोले, "तो फिर तुम कर्म करने से पहले ही भविष्यवाणी कैसे कर सकते हो की तुम अपनी इस परीक्षा में असफल हो जाओगे" कर्म ही विद्यार्थी का ज्योतिष होता है। जो की उसके आने वाले जीवन की भविष्यवाणी करता है। अगर आज तुम ने ये परीक्षा नहीं दी तो तुम भी अपने पिता के ही भांति अपना सुनहरा भविष्य अंधकार के कुए में धकेल दोगे और फिर तुम्हारे बच्चे भी बड़े होकर यही बेवकूफी भरे कदम उठाए गे और तुम उन्हें पलने के लिए किसी के दर पर मजदूरी करते मिलो गे और उस वक्त इस वक्त को याद कर खुद को कोसो गे की काश तुम एक वो कदम उठा लेते फिर जो होता उसे देख लेते और उस वक्त तुम ये सोचो गे अगर तुम्हारी ये परीक्षा सफल हो जाती तो तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों का भविष्य सवर बस ज़िन्दगी को सवारने में और बिगड़ने में महज एक पल का ही फासला होता है। बस उस फासले को पार करने का सारा खेल है। जो विद्यार्थी जीवन में उस डर के फासले को पार कर लेता है। वो असल में अपने और अपने परिवार के भविष्य को सवार लेता है। और जो इस फासले को लाँघ नहीं पाता उसका जीवन कैसा होता है। ये तुम से अच्छा और कौन समझ सकता है। विद्यार्थी जीवन में तुम्हे बहुत से ऐसे लोग मिले गे जो तुम्हारे भविष्य को बदलने का प्रयास करेंगे वो तुम पर निर्भर करेगा की तुम उस व्यक्ति को खुद पर हावी होने दोगे या नहीं यहाँ भविष्य बदलने से मेरा मतलब भविष्य के बर्बाद से है। अब फैसला तुम्हारा है। ये फैसला तुम्हारा भविष्य को निर्धारित करे गा" अपने अध्यापक की ऐसी बाते सुनकर विवान का सारा डर निकल गया और वो उनके पैरो में गिर कर रोने लगा और फिर उसने फैसला लिया की वह ये परीक्षा अवश्य देगा और उसे उत्तीर्ण भी करेगा ठीक २ महीने की बाद उसने अपनी परीक्षाए दी और अच्छे अंकों से उसे उत्तीर्ण किया आज विवान एक बहुत बड़ी कंपनी में सॉफ्टवेयर एनजेनेयर है। उसने अपने साथ साथ अपने परिवार की भविष्य को भी सवार लिया और आज वो एक फैसले की वजय सुख से अपना जीवन व्यतीत कर रहे है     

    हाँ ये कहना बिलकुल ठीक है। की विद्यार्थी जीवन में अंकों का महत्व है। परन्तु उस की जीवन से ज़्यादा नहीं जब ज़िन्दगी ही नहीं रही १०० में से १०० अंकों का कोई महत्व ही नहीं रहा जाएगा वह १०० अंक ० की बराबर हो जाएगे अंकों की इस भयानक चक्रव्यू में फँस कर न जाने कितने ही विवान और न जाने कितनी ही स्नेहा अपने दम तोड़ देते है। शिक्षा उतनी ही उत्तम है। जितनी उसकी ज़िन्दगी को नुकसान न पहुंचे जहाँ ज़िन्दगी को नुकसान पहुंचे तो समझ लेना वह शिक्षा आपके लिए घातक सिद्ध हो चुकी शिक्षा विद्यार्थी ही करते है। जब विद्यार्थी ही नहीं रहे गे तो विद्या का क्या अस्तित्व रह जाएगा 

इस कहानी की माध्यम से सिर्फ यह बताने का प्रयास किया जा रहा है। की विद्यार्थी जीवन जितना तनाव से मुक्त होगा उतना ही इस समाज का उद्धार होगा क्योंकि विद्यार्थी ही समाज की मजबूत सीढ़ी होती है। और इस सीढ़ी का मजबूत रहना अति आवश्यक है। भी हमारा देश और समाज दोनों ही मजबूत बनेंगे 

   

    

  

  


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