अंतर स्पर्श
अंतर स्पर्श
पिछले कुछ महीनों से मेरी पत्नी का मेरे मंद बुद्धि बेटे रोहन की देखभाल करना बहुत मुश्किल हो गया था। अतः हमने रोहन को एक ऐसे संस्थान में रखने का निश्चय किया। जहां उसे उचित देखभाल व शिक्षा भी प्राप्त हो सके। उसे वहां दाखिल कराने के कुछ ही दिनों बाद हम रोहन कि याद आने पर उसके कुशल की खबर लेने पुनः उसी संस्थान पहुंचे ओर प्रतीक्षा कक्ष में अपने बेटे की प्रतीक्षा करने लगे। उसके आने पर हमने देखा वो बड़ा खुश लग रहा था। उसकी गवर्नेंस के इशारे पर उसने हम दोनों के गले लग हमारा अभिवादन किया। और फिर सामने लगी कुर्सी पर सहज भाव मे बैठ गया। उसके इस शांत व्यवहार से हम दोनों ही हतप्रभ थे।
फिर जब उसमे कुछ ही दिनों में आए इस बदलाव का कारण मैंने उसकी गवर्नेंस से पूछा। तब वो बोली ,इस तरह के बच्चे बस प्यार की ही भाषा समझते है। हम इनका अंतर छू कर इनमें बदलाव लाने की कोशिश करते है। ये ठीक वैसा ही है जैसे लोहे के हथोड़े से ताला खोलना कठिन है। पर उसी लोहे की चाबी, इशारा पाते ही वही ताला आसानी से खोल देती है। उसने हमें समझाते हुए कहा।