एक फूल दो माली
एक फूल दो माली
रॉय साहब व उनकी पत्नी, एक सड़क दुर्घटना में अपने इकलौते बेटे व बहु को खो देने के बाद। उनकी आख़री निशानी अपने आठ वर्षीय पोते की परवरिश उसी लाड़ प्यार से कर रहे थे। जैसी कभी उन्होने अपने बेटे मधुर की करी थी। यह देख रॉय साहब के एक पुराने मित्र उन दोनों से बोले,आपके बेटे मधुर ने शादी के बाद आप दोनों से जैसा व्यवहार किया। ऐसा तो कोई सौतेला भी न करे। और उसकी पत्नी ने तो आप जैसे देवपुरुष व सीधी साधी भाभी को।
दहेज प्रताड़ना का झूठा आरोप लगा।
इस बुढ़ापे में,जेल तक के दर्शन करवा दिये। तब भला आप उनकी ही इस संतान को किस उम्मीद से इतने लाड़ प्यार से पाल रहे है। अपने मित्र की बात सुन,रॉय साहब गोद मे बैठे अपने पोते के सर पर हाँथ फेरते हुए। गम्भीर स्वर में उससे बोले,किसी परिवार के बजुर्ग उस परिवार के वो माली होते है। जो बिना इस बात का विचार किये की इस वृक्ष के फल किसे प्राप्त होंगे। निस्वार्थ भाव से अपने परिवार की बगियाँ को अपने स्नेह से सींचते रहते है।