अपमानित
अपमानित
उस उत्सव में सुंदर वस्त्र पहने माँ अपने नवजात पुत्र को गोद में लिए हुए थी, सभी बहुत खुश थे। उसी समय कुछ किन्नर भी आ गये और अपनी विशिष्ट शैली में बात करते हुए पूछने लगे, “अरे... बेटे के पापा कहाँ गये? हमें भी हमारी नेग दे दो।”
बच्चे का पिता वहीँ खड़ा था, वह एक चिकित्सक था, उसने कहा, “यह क्या ड्रामा है? जिस तरह किसी व्यक्ति का हाथ अविकसित होता है-किसी का पैर-किसी का दिमाग, तुम लोग भी उसी तरह के ही तो हो। मेहनत करो और कमाओ, ऐसे भीख मांग-मांग कर अपने मानसिक दिवालियेपन को मत दिखाओ।“
“तो क्या तुम्हारा समाज हमें स्वीकार कर लेगा?” एक किन्नर ने प्रश्न पूछा।
“समाज मेरा बनाया हुआ नहीं है, ना ही उसके नियम, मैं सिर्फ अपने नियम जानता हूँ, तुम लोग चले जाओ यहाँ से।“ चिकित्सक ने बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा।
किन्नर चुपचाप लौटने लगे, वहीँ रास्ते में खड़े एक छोटे बच्चे ने अपने पिता से पूछा, “अंकल क्या कह रहे थे? ये लोग किस तरह के हैं?”
यह सुनकर सबसे आगे चल रहा किन्नर मुड़ा, वहां खड़े सभी व्यक्तियों को घूर कर देखा और एक हाथ को ऊपर उठा कर हिलाने लगा और चिल्लाते हुए कहा, “हम किन्नर हैं....“
और एक क्षण बाद उठे हुए हाथ की मुट्ठी बंद कर गुर्राते हुए बोला,“अपाहिज नहीं।“