असली खज़ाना

असली खज़ाना

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चिंटू और दीपू बचपन से पक्के दोस्त थे और तीसरी कक्षा में साथ साथ पढ़ते थे . उन् दोनों का मन अब पढाई में कम और बदमाशियों में ज्यादा लगता. घर में सभी लोग उनसे परेशान थे. सबके समझाने के बाद भी वो किसी की भी बात नही मानते .

पूरी गर्मियों की छुट्टियों उन् दोनों ने पूरे मोहल्ले में सबको परेशान करने में बिता दिए. गर्मी की छुट्टियाँ अब् ख़त्म होने को थी और साथ ही साथ चिंटू और दीपू की मस्ती के दिन भी ख़त्म होने वाले थे. अब  दोनो को अपनी आने वाली परीक्षाओं की चिंता सताने लगी. आखिर ऐसा क्या किया जाए की ये मस्ती के दिन भी न ख़त्म हो और परीक्षा में भी अच्छे नंबरों से भी पास हो जाए.

एक दिन चिंटू घर में बैठा अपने विडियो गेम्स खेल रहा था की तभी उसको अपने दादा जी की आवाज़ सुनाई पड़ी . दादा जी गुस्से में किसी को डांट रहे थे, “तुम्हे ख्याल रखना चाहिए ये मेरा खजाना है और मैं अपने खजाने के बिना कुछ भी नहीं. मेरा सारा ज्ञान इसी खजाने में कैद है”. चिंटू को तो मानो मन मांगी मुराद मिल गयी हो. दादा जी के पास कोई खजाना है  जिसमे ज्ञान बंद  है. अगर ये खजाना मुझे मिल जाये तो मुझे बिना मेहनत किये ही अच्छे नंबर मिल जाएंगे .‘वाह मज़ा आ गया.

 घर पर दादा जी बैठ के अखबार पढ रहे थे. चिंटू  को देख दादा जी ने उसे अपने पास बुलाया .चिंटू खुद को रोक न पाया और उसने दादा जी से पूछ ही लिया, ‘दादा जी आपके पास ऐसा कौन सा खजाना है जिसमे ज्ञान छिपा है?. चिंटू की इस बात को सुन दादा जी हंस पड़े. चिंटू को बड़ा गुस्सा आया . दादा जी उसे अपना खजाना नही दिखाना चाहते. ‘बेटा तुम्हे आपनी किताबों पे ध्यान देना चाहिए क्योंकि वही असली खजाना है.’

 ‘अच्छा तो दादा जी मुझे बेवक़ूफ़ बना रहे हैं पर मैं भी खजाना ढूंड कर ही रहूँगा, अभी जा कर दीपू को ये खबर सुनाता हूँ’. ऐसा सोचकर चिंटू वहा से उठ कर दीपू के घर  चल पड़ा.

चिंटू की खबर सुन के दीपू एकदम से उछल पड़ा . अब बस उन दोनों को उस खजाने का पता लगाना था फिर उन दोनों को कभी मेहनत नही करनी पड़ेगी. अब दोनों चल पड़े दादा जी के खजाने का पता लगाने.

काफी सोचने के बाद उन दोनों ने ये फैसला किया की खजाने की खोज स्टोर रूम से शुरू की जाये.. आख़िरकार स्टोर रूम ही ऐसी जगह थी जहां खजाना छुपाया जा सकता है. पर स्टोर रूम में तो ताला लगा था . फिर दोनों ने मिल कर ये तय किया की चिंटू चाभी खोज कर रखेगा और दीपू रात में चुप कर चिंटू के घर पहुंचेगा फिर दोनों मिलकर खजाने को खोजेंगे.

चिंटू सबसे छुपते हुए चाभी की खोज में लग गया और आखिरकार उसे चाभियों का गुच्छा मिल ही गया. अब उसे रात का इंतज़ार था जब सब अपने अपने कमरे में चले जायें और वो दीपू को बुला सके.

दीपू अपने घर में बड़ी बेसब्री के साह चिंटू के इशारे का इंतज़ार कर रहा था . जैसे ही चिंटू ने इशारा किया वो जल्दी से अपने घर से निकल पड़ा. दोनों ने धीरे से रूम खोला और अन्दर घुस गए.अँधेरे में उन्हें कुछ दिखायी नहीं दे रहा था. तभी दिपु का पैर किसी चीज़ से टकरा गया. उसके पैरों में बहुत चोट आई और खून भी निकलने लगा. और देखते ही देखते घर के सारे लोगों की आवाज़ आने लगी. तभी अचानक किसी ने स्टोर रूम को बाहर से बंद कर दिया.‘ चोर, चोर ‘माँ चिल्ला रही  थी . ‘‘पुलिस को फ़ोन लगाओ’ पापा जी की आवाज़ आई.  

अब चिंटू और दीपू की हालत तो एकदम खराब हो गयी. खजाने  चक्कर में अब पिटाई खानी पड़ेगी. चोट लगी वो अलग. ‘अब तो खैर नहीं”. लेकिन पुलिस बुलाने से पहले सबको रोकना होगा वरना और भी ज्यादा गड़बड़ हो जाएगी.

चिंटू ने किसी तरह हिम्मत जुटाई और बोला ‘ आप लोग प्लीज पुलिस मत बुलाइए,ये मैं हूँ ,चिंटू “

‘चिंटू! पर तुम इतनी रात में यहाँ क्या कर रहे हो और तुम्हारे साथ दूसरा कौन है?’ पापा जी की गुस्से से भरी आवाज़ आई.

“पापा जी आप दरवाजा खोलिए मैं सब बताता हूँ.’ चिंटू ने रोते रोते कहा.

चिंटू और दीपू दोनों रोते हुए कमरे के बहार आये और चिंटू ने पापा से दादा जी के खजाने वाली पूरी  बात बतायी. जिसको सुन के दादा जी ने उन दोनों को अपने पास बुलाया और कहा” बेटा मैंने तुम्हे पहले भी बोला था की किताबें ही मेरा खजाना है. पर तुमने मेरी बात नही मानी और देखो तुम्हारी नादानी के वजह से क्या हो गया. मैं सुबह जिस खजाने के बारे में बोल रहा था वो मेरी सालों से जमा की हुयी किताबें ही थी जिनमे ज्ञान का खजाना छुपा है. अगर तुम इतनी मेहनत से अपने किताबों पे ध्यान लगाओ तो न सिर्फ परीक्षाओं में अच्छे नंबर लाओगे बल्कि एक बेहतर इंसान भी बनोगे. किताबे हमारी सच्ची मददगार होती है और हर किताब से हमें कुछ न कुछ नया सिखने को मिलता है, इसलिए मैं इन किताबों को इतना सम्भाल कर रखता हूँ.’

दादा जी की बातों को सुन के चिंटू और दीपू की समझ में सब आ गया. उन्होंने अब मन लगा कर पढायी करने और दूसरों को परेशान ना करने का भी का वादा किया. उन्हें अपनीं गलती से सीख मिल चुकी थी और अब उन्हों ने भी किताबों को अपना खजाना बनाने का निश्चय कर लिया था.


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