बेटियां भी सहारा हो सकती हैं
बेटियां भी सहारा हो सकती हैं
"लीजिए भाभी मुंह मीठा कीजिए।" आशीष जी ने अपनी भाभी रमीला जी को मिठाई देते हुए कहा। रमीला जी मिठाई मुंह में रखकर बोली।
" देवर जी किस चीज की मिठाई बाटी जा रही है। लगता है अबकी बार तो बेटा हुआ है देवरानी जी को ।"
" नहीं भाभी बेटा नहीं दूसरी भी लक्ष्मी ही आई है । और उसके आने की खुशी में ही मिठाई बांट रहा हूं ।" आशीष जी ने खुश होकर अपनी भाभी से कहा ।
बेटी का नाम सुनकर रमीला जी का मानो मुंह कड़वा हो गया हो । मानो उन्होंने मिठाई ना खा कर कुछ कड़वी बुरी चीज खाली हो। वह एकदम मुंह बनाकर बोली.....
" बेटी के होने की कौन मिठाई बांटता है। वह भी दूसरी भी बेटी होने की । मिठाई तो बेटों के होने की खुशी में बांटी जाती है । बेटियां तो शादी होकर ससुराल चली जाती है । बेटे ही तो वारिस होते हैं । बुढ़ापे मां बाप को देखते हैं, उनकी देखभाल करते हैं। अब देखो हमारे दो बेटे हैं। हमारे बुढ़ापे का सहारा ।" रमीला जी को अपने दो बेटे होने पर बहुत घमंड था । उसी घमंड के आगे वह अपने देवर जी को नीचा दिखाना चाहती थी । लेकिन आशीष जी ने बुरा नही माना और कहा....
" कोई बात नहीं भाभी मेरे बेटा नहीं हुआ तो क्या हुआ मेरी तो यही बेटियां मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगी । और यह कह कर अपने घर आ गए । उधर आशीष की पत्नी मनीषा अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आ गई । अब वह दोनों अपनी बेटियों को बड़े प्यार से पालने लगे।
उन्हें इतने प्यार से बेटियों की परवरिश करते देखकर रमीला जी मुंह बनाती और कहती थी ।
" देखो कितने लाड लड़ाए हैं जा रहे हैं । जितने भी लाड लड़ा लो बेटे ही नाम रोशन करते हैं । और बेटे ही बुढ़ापे का सहारा होते हैं । बेटियों का क्या है कितने ही नखरे उठाओ लेकिन यह शादी होकर अपने ससुराल चली जाती हैं । मनीषा तुम एक बार फिर से देख लो क्या पता आपके बेटा हो जाए ।"
तब मनीषा उनकी बात सुनकर कहती ।
"भाभी बेटा होना होता तो अब तक हो जाता और वैसे भी मुझे तो मेरी दोनों बेटियां ही बहुत है । हम उनकी परवरिश करके ही अपने सारे सपने पूरे कर लेंगे। हम बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं मानते । मनीषा का जवाब सुनकर रमीला जी मुंह बनाती और कहती ।
" देखूंगी जब यह बेटियां तुम्हें छोड़ के ससुराल चली जाएगी । तब देखूंगी तुम दोनों को । तब तुम्हें मेरी बात याद आएगी । मुझे अपने बहू बेटों में आराम करते देख कर तुम बहुत पछताओगे ।" वह उनसे कह कर अपने घर को आ जाती । इसी घमंड के चलते वह अपने बेटों को खुली छूट दे रही थी । ना उन्हें ढंग से पढ़ने के लिए कहती और जो भी जाइज ना जाइज फरमाइश करते वह भी पूरी कर देती थी ।
वहीं दूसरी तरफ आशीष और मनीषा ने अपनी दोनों बच्चियों को पढ़ाने के लिए अपना जितना भी जुड़ा हुआ धन था । वह सब कुछ अपनी बेटियों की पढ़ाई में लगा दिया । यह देखकर रमीला जी और भी मुंह बना लेती । और कहती.....
" एक तो बेटियां ऊपर से जो जोड़ा जंगोड़ा है । वह भी सब कुछ बेटियों की पढ़ाई के ऊपर बर्बाद कर रहे हो । अरे बेटियों को पढ़ाने से क्या फायदा । यह तो ब्याह कर ससुराल चली जाएंगी । पीछे तुम दोनों बुड्ढा बुड्ढी रह जाओगे । इन्हें अपने बुढ़ापे के लिए संभाल कर रखो । क्या इन्हें बेटियों के पीछे बर्बाद कर रहे हो । यह कौन सा कमाकर तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा बनेगी ।"
उनकी बातों पर ध्यान ना देखकर दोनों पति पत्नी अपनी बेटियों की परवरिश करने और उन्हें अच्छे से अच्छे संस्कार देने और पढ़ाने लिखाने में पूरी तरह से जुटे हुए थे । तब अपनी बातों का असर ना होते देखकर रमीला जी चिढ़कर रह जाती और अपने बेटों की बड़ाई करने लगती ।जो कि एकदम सरासर झूठ थी । वही रमीला जी के बेटे अब नाजाइज फरमाइशें से पूरे होने की वजह से बिगड़ते जा रहे थे । उनके हाथों से निकलते जा रहे थे । दोनों बेटों में जुए शराब सट्टेबाजी की ऐसी बुरी लत लग गई थी । कि उस से पीछा छुड़ाना मुमकिन नहीं था । आए दिन उनकी स्कूल में से शिकायतें आने लगी कि वह लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं । किसी से अभद्र भाषा में बात कर रहे हैं । रमीला जी के पति रजत जी उन्हें समझाते तो रमीला जी बीच में आ जाती । कहती....
" अजी क्या हो गया बच्चे ही तो है बच्चे तो इतनी छोटी मोटी हरकत कर देते हैं । आप क्यों हर वक्त मेरे बच्चों को डांटते रहते हैं । देखना एक दिन यही हमारा नाम रोशन करेंगे ।" तब रजत जी चिढ़कर बोलते ।
" यह नाम रोशन करेंगे नाम तो रोशन अभी से कर रहे हैं । हर किसी से बदतमीजी से बहुत बात करते हैं । किसी को अपने आगे कुछ नहीं समझते । अभी से ही ना जाने कौन-कौन से ऐब इन्होंने शुरू कर दिए हैं । और यह हमारा नाम रोशन करेंगे । नाम तो यह रोशन करेंगे लेकिन अच्छे कामों से नहीं बुरे कामों से करेंगे । मेरी बात तुम ध्यान से सुन लो । अगर इनका यही हाल रहा तो देख लेना एक दिन तुम बहुत पछताओगी । लेकिन रमीला जी उनकी बात पर ध्यान नहीं देती और बच्चों का पक्ष लेती रहती ।
नतीजा यह हुआ दोनों बेटे हाथ से निकल गए । छोटा बेटा अपने ही कॉलेज की एक लड़की को लेकर भाग गया । जो दूसरी बिरादरी की थी । अब उन्होंने प्रमिला जी का जीना हराम कर रखा था । कि उन्हें उनकी बेटी चाहिए वह भी किसी भी कीमत पर । रमीला जी का सारा तेज पन रफु चक्कर हो गया ।और रमीला जी सर झुकाए खड़ी रहती । अब उनसे कोई जवाब ना बनता । उधर रजत और उनका बड़ा बेटा मयंक दोनों मिलकर छोटे बेटे रचित को ढूंढने में लगे थे । लेकिन उसका कहीं से कोई पता ना था । अपना काम छोड़कर वह उसे ढूंढने में लगे हुए थे । पैसा लग रहा था सो अलग ।
लेकिन कुछ भी फायदा हासिल नहीं हो रहा था । थक हार कर रहे बैठ गए और लड़की वालों से कहा हमने तो अपनी पूरी कोशिश कर ली है ।अब आप कोशिश करके देख लीजिए । हमें तो वह नहीं मिल रहे हैं ।" इस तरह से पुलिस स्टेशन में बहुत सारी रिश्वत देकर मामला रफा-दफा कराया । जो भी उनकी जोड़ जमा थी । सब वहां खत्म हो गई । अब रमीला जी के पास कुछ भी नहीं बचा था । अब बड़े बेटे का रिश्ता होना भी भारी हो गया था । एक तो उसके अंदर शराब का ऐब था । ऊपर से घर में यह ऐब भी लग गया था । कि उनका बेटा किसी की बेटी को लेकर भाग गया है । लेकिन अब रमीला जी क्या कर सकती थी । जब बड़े बेटे मयंक का कहीं से रिश्ता नहीं हुआ । तब उसने अपने ही साथ काम करने वाली किसी दूसरी बिरादरी की लड़की से कोर्ट मैरिज कर लिया ।
अब तो प्रमिला जी के सारे सपनों सारे अरमानों पर बिल्कुल ही पानी फिर गया । छोटा बेटा तो बिल्कुल ही आंखों से दूर चला गया था । बड़े बेटे ने भी जो उनकी तमन्ना थी । अपने बेटों की शादी देखने की वह भी खत्म कर दी थी । इसी वजह से रमीला जी बहू को अपना नहीं पा रही थी । एक तो वह दूसरी बिरादरी की थी । ऊपर से दोनों ने कोर्ट मैरिज की थी । तो वह उसे अपना नहीं पा रही थी । उसे जली कटी बातें सुना दी थी । आखिरकार मयंक की बीवी तंग आकर मयंक से कहने लगी...
" मैं तुम्हारी मां के साथ नहीं रहना चाहती । तुम्हारी मां तो हर वक्त जली कटी सुनाती रहती है । और ऊपर से कोई मोहल्ले वाली या कोई भी आती है । वह इसी बात को कहती है । कि इनका बेटा तो किसी की लड़की को लेकर भाग गया । बस बहुत हुआ मैं अब इतने बदनाम घर में नहीं रहना चाहती । मुझे अगर तुम्हें रखना है तो अलग लेकर रखना होगा । नहीं तो मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं । पंकज भी क्या करता । एक तो बड़ी मुश्किल से उसकी शादी हुई थी । ऊपर से वह भी छोड़ कर जाने को कह रही थी । पंकज अलग किराए के घर में रहने चला गया । रवीना जी और रजत अकेले रह गए । उनकी दुख बीमारी देखने वाला कोई नहीं था ।
उधर दूसरी तरफ आशीष और मनीषा की दोनों बेटियां पढ़ लिखकर एक तो डॉक्टर बन गई और दूसरी बेटी इंजीनियर बन गई । दोनों बेटियों ने मिलकर घर को अच्छा और पहले से अच्छा बना दिया था । आशीष और मनीषा ने अच्छे घर देखकर दोनों बेटियों की शादी वहां कर दी । अब दोनों बेटियां इतनी पढ़ी-लिखी और इतना कमाने वाली थी । उन्होंने दहेज लेने से भी मना कर दिया । दोनों बेटियां अपने घर में खुश रह रही थी । और बारी-बारी आकर मां-बाप की देखभाल भी करती थी । मां-बाप की सेवा भी करती थी ।
1 दिन मनीषा से उनकी पुरानी पड़ोसन मिलने आई और उनसे रमीला जी के सारे हालचाल बताएं और बताया रमीला जी की हालत बहुत खराब है । कोई उन्हें पानी पिलाने वाला भी नहीं है । बिचारे रजत भाई बुढ़ापे में इधर-उधर छोटा-मोटा काम ढूंढते फिरते हैं । क्योंकि प्राइवेट नौकरी करते थे । तो पेंशन का तो कोई जुगाड़ भी ना था । और अब उन्हें इस उमर में नौकरी देगा भी कोन ।
उनके हालात बहुत बुरे हो गए हैं । सारा सबकुछ बेटों के ऊपर लुटा दिया । अब बस रहने के लिए सिर्फ एक घर ही बचा है । जिसे उन्होंने आधा किराए पर दे दिया है । उसी से अपना घर चला रहे हैं । जब मनीषा और आशीष ने अपने भैया भाभी की यह हालत सुनी तो उन दोनों से रहा नहीं गया और वह दोनों उनसे मिलने चले आए । उन दोनों की हालत देख कर उनको बहुत दुख हुआ ।
तब मनीषा को और आशीष को देखकर प्रमिला जी की आंखें झुक गई क्योंकि मनीषा ने बड़ी ही अच्छी और कीमती साड़ी पहनी हुई थी और वह अपनी गाड़ी से ही उनके घर आए थे । आज जिन बेटो के घमंड में वह रमीला जी ,आशीष और मनीषा को बेटियों होने का ताना देती थी और उन्हें चिढ़ाती थी । उन्हें जली कटी सुनाती थी । आज उन्हीं बेटियों ने उन्हें किस बुलंदी पर पहुंचा दिया था ।
रमीला जी अपने जिन बेटों पर नाज़ करती थी ।घमंड करती थी । उन्होंने उन्हें ऐसे बेइज्जती के दलदल पहुंचा दिया था । उन्हें अपनी बातें याद आ रही थी । उनकी नजर मनीषा से नहीं मिल रही थी । रमीला जी ने उन्हें कितने ताने दिए । लेकिन फिर भी मनीषा ने उनके हालचाल पूछे अपने साथ वह जो खाना लेकर आई थी वह उन्हें खिलाकर उनसे पूछा । कि उन्हें किसी चीज की जरूरत तो नहीं और किसी चीज की जरूरत तो वह बेझिझक बता सकती हैं ।
तब रमीला जी बोली
"मनीषा मुझे और शर्मिंदा मत करो । मैंने तुम्हें और तुम्हारी बेटियों के बारे में क्या कुछ नहीं कहा और मैं जिन बेटों के ऊपर घमंड करती थी । आज वही बेटों ने देखो मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया है । हो सके तो मुझे माफ कर दो । मैं जो अपनी बेटों पर घमंड करती थी । कि वह हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। सहारा तो छोड़ो उन्होंने तो हमें कहीं का भी नहीं छोड़ा और जिन बेटियों को हम कहां करते थे । कि यह तो ब्याह कर अपने ससुराल चली जाएगी । आज वही बेटियां देखो तुम्हारा सहारा बने खड़ी हैं ।तुमने सही कहा था । कि बेटियों की सहारा हो सकती है । आज यह बात मेरी समझ में आ गई।
" कैसी बात कर रही है आप भाभी ! आप हमारी बड़ी है । आप हम से माफी मांग कर हमें पाप का भागी मत बनाइए । बड़े तो आशीर्वाद देते हुए अच्छे लगते हैं माफी मांगते हुए नहीं और पिछली बातें जो हुई उन सबको भूल जाइए और अब से आपको किसी भी चीज की जरूरत हो तो हमें बिना झिझके बताइएगा ।
समाप्त।
मिलते हैं अगली कहानी में ।