रंजना उपाध्याय

Inspirational

5.0  

रंजना उपाध्याय

Inspirational

बहू तूने कदर न जानी!!

बहू तूने कदर न जानी!!

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सरला जी की दो बहुएँ थीं। बड़ी बहू बाहर रहती थी, छोटी पास में साथ रहती थी। छोटी बहू पूजा थोड़ी जलसी स्वभाव की थी। बड़ी बहू से सरला जी जब बात करती फोन पर तो पूजा भुनभुनाती इधर से उधर घूम घूम कर सुनाती रहती थी। छोटी बहू का काफी ख्याल रखती थी। बच्चों से लेकर खान-पान चाय नाश्ता लेकिन माँ जी से पूजा कभी खुश नहीं रहती थी। पूजा किसी के आने जाने पर सामने नहीं आती थी। सरला जी का स्वभाव बहुत अच्छा था। यदि कोई पूछता कि बहू नहीं है क्या? तो तुरन्त जवाब दे देती कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है, कभी उसके बच्चे की तबियत ठीक नहीं है। इसी तरह पूजा की इज़्ज़त बनाती रहती थी। फिर भी पूजा सरला जी की क़दर नहीं करती थी।

एक दिन सरला जी की बड़ी बहू फोन पर बात करते समय थोड़ी बात सुन ली तो सासू माँ से पूछना चाही लेकिन माँ जी ने नहीं बताया। किसी बात को लेकर माँ जी से छोटी बहू से बात बहस हो गयी। सरला जी बड़ी बहू रुचि के पास चली गयी। मुंबई जैसे शहर में रह पाना बहुत मुश्किल था। लेकिन सरकारी क्वार्टर था। तो काफी जगह बाहर थी माँ जी अधिकतर बाहर ही कुर्सी लगाकर बैठी रहती थी। लगभग तीन महीने तक जब रह गयी। अब छोटी बहू पूजा को लगा कि अब तो माँ जी आएँगी नहीं कही जो पैसा रखी हैं सब भाभी जी को ही न दे दें। माँ जी का ATM कार्ड ढूँढना शुरू किया तो घर में मिला ही नहीं।

पूजा को बुरी तरह डर सताने लगा। इधर रुचि को बहुत अच्छा लगता था। ससुर जी थोड़ा धार्मिक विचार के थे। सुबह शाम बाबू जी अपनी कोई न कोई कहानी सुनाना शुरू कर देते थे। इससे रुचि के बच्चों पर अच्छा असर हो रहा था। सुबह से लेकर शाम तक भाग दौड़ में आनंद आता था। रोज खाने में बदल बदल कर बनाती थी। रुचि के बच्चों ने एक दिन कह दिया कि दादी दादू आप लोग जब रहते हैं तो मम्मी बहुत अच्छा अच्छा बनाती है। माँ पिता जी के साथ बच्चों को पार्क भेज देती थी। सब बहुत खुशी खुशी रह रहे थे। एक दिन अचानक छोटी बहू का फोन आया तो माँ जी ने कहा कि अचानक 3 महीने बाद ये कैसे याद कर लीं। फोन उठायी माँ जी तो उधर से बहुत ही प्यार से आवाज़ आई ।

माँ जी प्रणाम! कैसी हैं आप! आप तो भूल ही गयी हमको। माँ जी ने जवाब दिया बेटे तुमने ही तो फोन मेरा ब्लॉक लिस्ट में डाल दिया था। मैंने तो कई दिन मिलाने की कोशिश की मैं एक माँ हूँ!! मैं कैसे भूल सकती हूँ! उधर से पूजा ने बोला, अरे कब तक आ रही हैं। आप आ जातीं तो बच्चों को देखती मैं अपना बीएड की पढ़ाई पूरी कर लेती। बिल्कुल पढ़ नहीं पाती हूँ। जब से आप गयी हैं। माँ जी ने बोला बेटे जब तक थी तुम्हारे पास तुम्हें बहुत दुख देती थी। अब मेरी जरुरत महसूस होने लगी। तो ठीक है जल्दी ही आऊँगी इतना सुन कर बड़ी बहू ने बोला कि माँ जी आप घूम टहल कर रहिये।

ताकि पूजा को भी पता चले आप भी किसी की माँ हो। जब जरूरत हुई तो आपकी कद्र पता चली न ऐसे ही आप ज्यादा समय एक जगह न रहा करिए। उसको लगता होगा कि आप उसके सर का बोझ बनी हैं। चलिए कम से कम देर से ही सही आपकी क़दर तो हुई।  माँ जी आप एक जगह गाँव ही न रहिये। मेरे पास और घर दोनो जगह मिलाकर रहिये। चलिए इसी बहाने आपको पूछा तो लेकिन आप एक से दो महीने ही रहेंगी। इससे ज्यादा रहेंगी तो फिर वही हंगामा होगा। मैं नहीं चाहती कि आप सबको कोई कुछ कहें। मैं अपने बच्चों को नहीं खिलाऊंगी लेकिन आप सबको पालूँगी। अपने बच्चों को आधी रोटी में बांट कर खिलाऊंगी लेकिन आप सब को भरपेट खिलाऊंगी।

पूजा कितनी स्वार्थी है अपना बीएड और बच्चों का ख्याल है। अपनी बूढ़ी माँ का ख्याल नहीं है। माँ आपका मन करे तो ही जाइए अगर मन न हो तो मत जाइए। हमें तो आप सबके साथ बहुत अच्छा लगता है। पूजा को कैसा महसूस होता है ये मुझे नहीं पता। मैं हर तरह से तैयार हूँ आप सबकी सेवा करने के लिए, आप लोग क्या कोई भी होता तो मैं उनकी भी सेवा करती। माँ जी ने बोला, अरे बिटिया तभी तो तुम अपने व्यवहार से फली फूली हो। तुम्हारी चर्चा तो हमारे गाँव में अक्सर होती रहती है। मैं जाऊँगी अब की बार देखती हूँ। फिर जैसा होगा बताऊँगी बेटा मेरा टिकट करा दो बेटे (रवि )से कह कर, अभी वो भी दस बातें सुनाएगा। क्या करूँ मोह माया नहीं छूटता नहीं तो मैं कब का छोड़ चुकी होती। मेरा तो छोड़ो तुम्हारे बाबू जी खेत खलिहान इन सबका मोह माया नहीं छोड़ पा रहे हैं। रवि ऑफ़िस से आया सभी लोग साथ मे चाय पीए और बात आरंभ हुई। रुचि ने कहा माँ का टिकट करा दीजिए। यह सुन रवि नाराज़ हो गया। तब तक रुचि ने बात को संभाला अब की बार माँ को जाने दीजिए अब की बार कुछ हुआ तो मैं जाकर ले आऊँगी। और कभी नहीं जाने दूँगी। रवि भी सहमति दिया और टिकट करवा दिया। इधर माँ बाबू जी घर जाने की तैयारी कर लिए और शाम की ट्रेन थी। मुंबई रेलवे स्टेशन पहुँच गए समय से, तीसरे दिन पहुँचते आजमगढ़ स्टेशन पर ट्रेन रुक गयी। छोटा बेटा और बहू सामने खड़े मिले यह प्रेम देखकर दोनों लोग विह्वल हो उठे। देखो कैसे आज आये हैं लेने ईश्वर करें ऐसे ही प्रेम बना रहे। घर पहुँचते ही बहु पूजा अपने पापा को बुला रखी थी। इधर सास ससुर घर पहुंचे उधर बहु रानी अपने मायके चली गयी। बड़ी बहू सुनी और बोली कि मुझे पता था। अब की बार कुछ न कुछ ऐसे ही करने वाली है। बच्चों को छोड़कर गयी। अब माँ जी दोनों बच्चों को छोटे बेटे का और खुद दो लोग सबकी व्यवस्था में दिन भर लगी रहती हैं। बड़ी बहू से बोली अगर वो आ जाती है तो तुरन्त मैं वापस आ जाऊँगी। मायके से बीएड करने लगी अगर आती भी तो दिन भर के लिए शाम को वापस चली जाती थी। 6 महीने बाद पूजा जब आयी, फिर माँ जी बाबू जी हमेशा के लिए मुंबई आ गए।

बड़ी बहू बड़े बेटे के व्यवहार और बच्चों के साथ बहुत खुश रहते थे। यहाँ माँ जी को काम नहीं करना पड़ता था। माँ जी ने बहु से कह दिया मांजने के लिए रानो आती है उसे मना कर दो हम हैं न। रुचि ने कहा अब तक इतना किया है अब कम से कम आराम करिए। बहुत प्यार से बुढ़ापा कट गया। हमें अपने माता पिता सास ससुर सबकी इज़्ज़त करना चाहिए। सबका सम्मान करना चाहिए। अपने बच्चों को भी यही रास्ता दिखाना चाहिए। ताकि हमारे बच्चे भी बड़ों बुजुर्गों की इज़्ज़त और सम्मान कर सकें। जो हमारे रिश्ते हैं उनकी इज़्ज़त और कद्र करनी चाहिए।


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