छोटा बच्चा
छोटा बच्चा
एक बच्चा था छोटा सा मंदिर के बाहर फूल बिक रहा था। मैले कुलेचे कपड़े कपड़े थे तो कपड़े थे पर किसी के नकली हुवे लग रहे थे। फूल उसकी बिक नहीं रहे थे। वो डेक्कन और डेस्टिनेशन था। अचानक एक परिवार उसके पास आया और कैसे के फूल पूछे गए; बच्चे की आंखों में चमक आ गई और उसने पांच रुपए के पांच फूल कहा। वे बीस रुपए के लिए और आगे बढ़ गए।
उन सिक्कों को बच्चे ने अपने पैंट की पाकिट में रखा और मंदिर में आने वाले लोगों को उम्मीद से देखने लगा।
समय दो का होने लगा। पंडित जी मंदिर से कुछ प्रसाद एक दो में अंकित उस बच्चे का विवरण। वो दोना पकड़ा गया और खाने में उसके कुछ जूठन प्रसाद फूल गिर गए।
पंडित जी बोले ये फूल मालामाल हो गई निकली फाँक दो। बच्चे ने हां में सिर को हिलाया और प्रसाद खाने के बाद फूल नीचे दिए। और वहां से जाने लगा और पास ही एक कुटिया के बाहर वाले घर में बुढ़िया को पैसे दे कर कहा कि कल सुबह मैंने फिर से तुम्हें हलवा बनाकर रखने को कहा। फिर वो मंदिर की ओर जाने लगा। तो बुढ़िया पैसे ने उस से आज पूछा तू सारा मुझे क्यों दे जाता है बबुआ। आपके लिए कुछ भी नहीं। तो उस बच्चे ने प्यार से कहा मेरे पास तो सब मुझे बसफे हाथों की बनी हलवा खानी है और वो मंदिर की ओर जाने लगा। बुढ़िया और कुछ ना बोली वो राम का नाम जपने लगी आँखे मूंद कर। और वो बालक मंदिर के समीप पहुंच कर जय श्री राम का जाप करते हुए अचानक उसकी मूर्ति धुंधली होकर अदृश्य हो गई। किसी ने इस चमत्कार पर ध्यान नहीं दिया सब अपने काम में लग गए।