Sarita Singh

Tragedy Inspirational Children

4.0  

Sarita Singh

Tragedy Inspirational Children

देख पराई चुपड़ी मत ललचा जीव

देख पराई चुपड़ी मत ललचा जीव

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मां मुझे भी रिमोट कार चाहिए पड़ोसी के बच्चे शौर्य के हाथ में नया खिलौना देखकर देकर अभिजीत ने भी मां से रिमोट कार मांगी, मां ने बाजार से खोज कर हूबहू पड़ोसी के बच्चे जैसा रिमोट कार ला के अपने बच्चे को दे दिया।

अब तो अभिजीत की आदत पड़ गई हर बार नया खिलौना मांगने की जैसे ही वह के हाथ में कोई खिलौना देखता अपनी मां से भी वैसा ही खिलौना लेने की जिद करने लगा कुछ दिन तो यह सब अच्छा लगा मां अभिजीत की जरूरतें पूरी करती करती तंग आ छोटी सी कमाई वाला रोज नए खिलौने कहां से लाया जाए।

उधर शौर्य की मां ने उसको मोबाइल दे दिया। सुधा का बेटा अभिजीत मोबाइल की जिद करने लगा। सुधा को गुस्सा आया। सुधा पड़ोसी रजनी के घर गयी उसने जाकर रजनी को समझाया अपने बच्चे को नए नए खिलौने और उपकरण देना ठीक नहीं है। कहीं एक दिन ऐसा ना हो जाए। कि वह कुछ ऐसा मांग ले और तुम देना पाओ।

रजनी बोली यह मेरा निजी मामला है मैं अपने बच्चे को क्या दूं और क्या ना दूं यह मेरा फैसला है। हम लोग के इतने भी बुरे दिन नहीं है कि मैं अपने बच्चों को उनके पसंद के खिलौने ना दे पाऊं। अब आपकी इतनी हैसियत नहीं है तो क्या करूं मैं आप के वजह से अपने बच्चे का मन नहीं ना मार पाऊंगी।

रजनी ने सुधा को खरी-खोटी सुना दी ।

बड़ी आई मुझे समझाने वाली, मिडिल क्लास औरतें जब अपने बच्चों की जरूरत ही नहीं पूरी कर पाती हैं तो दूसरों पर ही इल्जाम लगाती है।

पड़ोसी रजनी की आंखों में आंसू में वापस चली आई।

किसी तरह उसने अपने बेटे अभिजीत को समझाया। देखो बेटा हम लोग एक मध्यम वर्गीय परिवार से हैं मेरी आमदनी इतनी नहीं है कि मैं तुम्हें रोज नए खिलौने ना पाऊं जितने के तुम्हारे खिलौने हैं उतने में तो तुम्हारे महीने भर का खाने पीने का सामान आ जाएगा।

जैसे तुम्हारी सेहत बनेगी यह खिलौने तुम्हारे काम ना आएंगे। पर मां मैं तो एक छोटा बच्चा हूं सब बच्चे तो खेलते हैं खिलौने से।

मां ने अभिजीत के सर पर प्यार भरा हाथ फेरा और उसे बताया बच्चे हमें दूसरों के चीजों की लालच नहीं करनी चाहिए जितना है उतने में खुश रहना चाहिए।

 कबीर दास ने कहा थारु

खा सुखा खाई के ठंडा पानी पिव।

देख पराई चुपड़ी मत ललचावे जीव

अभिजीत अभी मात्र 8 साल का ही था लेकिन सुधा ने इतने सुंदर शब्दों में उसे अनमोल बातें बताएं जो बातें उसके दिमाग में बैठ गई अब उसने खिलौने और महंगे सामानों की ज़िद करना छोड़ दिया।

इधर महामारी के कारण शौर्य के पिता का व्यवसाय बंद हो गया। शौर्य की आदतें वैसे ही जिद्दी पन वाली थी। उसने अपनी मां रजनी से प्लेस्टेशन वीडियो गेम की मांग की मैंने उसे बहुत समझाया बेटा हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है जब हमारे पास पैसा होगा तब ला दूंगी पर शौर्य को पैसे की कीमत कहां पता थी, एक ही जिद करता मुझे खिलौना चाहिए मुझे प्लेस्टेशन चाहिए चाहे जहां से लाओ, रजनी को समझ नहीं आ रहा था क्या करें बच्चे ने खाना पीना भी छोड़ दिया जिसके कारण बीमार रहने लगा, उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर होने लगी, इधर रजनी के पति कोरोना हो गया इसके कारण उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा अब खर्च और बढ़ गए थे आमदनी का कोई जरिया नहीं फैक्ट्री भी बंद पड़ी थी पैसे कहां से आए, खिलौने ना मिलने के कारण शौर्य भी मानसिक कुंठा का शिकार होने लगा। वह भी बीमार रहने लगा, उसे भी मानसिक रोग वाले डॉक्टर को दिखाना पड़ा। घर की पूरी स्थिति बिगड़ी पड़ी थी ऐसे में रजनी भी बुरी मनोदशा का शिकार हो रही थी।

रजनी समझ नहीं पा रही थी क्या करे। उसने पड़ोस की सुधा से मदद मांगने की सूझी पर उसे वह दिन याद आ गया जब उसने उसे मिडिल क्लास कहकर अपने घर से विदा किया था।

बड़ा साहस जुटाकर सुधा रजनी के घर गए और सारी बात उससे कहे रजनी ने उसे समझाया देखो जितना बड़ा चादर हो उतना ही पैर फैलाना चाहिए। जरूरी नहीं कि चादर बड़ा हो तो बड़ा पैर फैलाए अपने खर्चो को सीमित रखना भी जरूरी है कल क्या हो जाए इसकी खबर किसी को नहीं होती इसीलिए अपने आप को संयमित रखना जरूरी है ताकि आप जरूरत पड़ने पर अपना संतुलन ना खोए।

सुधा की बातें रजनी को समझ में आए उसने अपने बच्चे को बहुत समझाया प्यार से उसके सर पर हाथ फेरकर अच्छी और ज्ञान की बातें उसे बताई।

पर पैसे की समस्या अभी भी खत्म नहीं हुई थी । सुधा को एक उपाय सूझा उसने रजनी की मदद से शौर्य के सारे खिलौनों को ऑनलाइन बिक्री करने की सोची पर इसमें बच्चे की सहमति लेना भी जरूरी था। मां और सुधा आंटी की बातें सुनकर शौर्य को समझ आ गया था की खिलौने हमारे लिए इतनी जरूरी नहीं है जितनी जरूरी हमारे लिए भोजन और जीवन है।

सुधा की मदद से रजनी ने सारे खिलौनों को ऑनलाइन बिक्री के लिए प्रचार किया, सारे खिलौने 50 से भी ज्यादा थे, जरूरतमंद लोगों ने उनको ओएलएक्स पर खरीद लिया। हर खिलौने की कीमत हज़ार से ऊपर की थी। पूरे खिलौने बिकने पर उसे पचास हज़ार मिल गए और उसके पिता का इलाज हो गया।

इस इस घटना के बाद शौर्य में काफी बदलाव आया। वह समझ चुका था खिलौने जीवन से बढ़कर नहीं है।

मां पिता का प्यार और दो वक्त का भोजन यदि समय से मिल जाए तो वह सभी सुखों से बढ़कर है। महामारी खत्म हो गई सबका जीवन सामान्य हो गया। शौर्य का जन्मदिन आया उसकी दादी ने उसे एक सुंदर सा खिलौना गिफ्ट किया । वह बड़ी मासूमियत से बोला अरे दादी इस खिलौने की क्या जरूरत है इतने में तो कितने सारे खाने की चीजें आ जाती और तुम और मैं बड़े मजे से बैठ कर खाते।

बच्चे के मुंह से इतनी समझदारी की बातें सुनकर समझने लगे।



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