Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy

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Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy

देवरजी के तेवर

देवरजी के तेवर

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"मां तुम चिंता मत करो,मैं तो ऐसी लड़की से शादी करूँगा जो तुम्हें बेड से नीचे पानी लेने के लिए भी ना उतरने दे। चाय और खाना तो दूर की बात है। और अगर उसने मेरी बात नहीं मानी फिर तो भेज दूंगा उसी पल उसे उसके बाप के घर" देवर की कड़वी बातें रमा के कानों में तीर की तरह चुभ रही थी.

रोती हुई रमा देवर की कड़वी बातें सुनकर भी चुपचाप रसोई में खाना बना रही थी। गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने अपनी सास को सुबह 7 बजे की चाय आठ बजे बनाकर दी थी। दो महीने की गर्भवती रमा को इतनी उल्टियां होती सिर दर्द होता है। उसका एक भी काम करने का मन नही होता। गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में तो खाना बनाने में सबसे ज्यादा दिक्कत तब होती जब दाल पकाना होता, दाल पकाने की सुगंध से ही उसको उल्टियां होने लगती। खाने में भी उसको कोई स्वाद नही आता। और दिन भर मन अजीब सा बना रहता। लेकिन वो अपने मन की बात किसी से कह नहीं पाती थी।

रमा के पति अमर उसकी कभी कोई बात नहीं सुनते। अगर रमा कुछ कहने की कोशिश करती तो कहते ,"देखो रमा ! तुम औरतों की फालतू बिना सिर पैर की बातें सुनने का मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं, इसलिए तुम अभी यहाँ से जाओ और अपनी बात जाकर मां से कहो"

अमर का रूखा व्यवहार और इस तरह की बातें उसका हमेशा ही दिल तोड़ देती। लेकिन शिकायत करें भी तो किससे करें। उसकी सास शीला जी एक औरत और माँ होकर भी उसका दर्द नहीं समझती थी। ऊपर से रही सही कसर देवर राजेश ताने सुना सुनाकर और अमर के कान भर कर पूरा कर देता।

या यूं कहें कि पुरूष होकर भी राजेश रमा के लिए दूसरी सास की भूमिका निभाता। हर बात और हर काम मे रमा को सीख देने आ जाता कि घर की बहुओं को कैसे रहना चाहिए? कैसे सास ससुर और ससुराल वालों की देखभाल और ख्याल रखना चाहिए।

रमा की ससुराल में एक देवर दो शादीशुदा ननदें और सास ससुर थे। पूरे घर मे राज सिर्फ देवर का ही चलता। राजेश जैसे कहता उसकी सास शीलाजी और वैसा ही करती और कहती। और उनकी कही किसी भी गलत या सही बात को अमर सिर झुकाकर मान भी लेते। रमा ने कई बार कहा,"अमर घर की सास सफाई के लिए एक कामवाली बाई रख लेते है। क्योंकि दो बच्चों के साथ मुझसे पूरा कान नहीं हो पाता।"

लेकिन राजेश के कहे शब्द अमर भी रमा के सामने दोहरा देता,"तुम दो बच्चो के साथ काम नहीं कर पाती। और मेरी माँ चार बच्चों के साथ कैसे घर के सारे काम करती थी? तुम आज़कल की औरतो के नाटक बहुत हो गए है। जितनी सुविधाएं उतनी तकलीफ रहती है तुम लोगो को।"

रमा ने चुप रहकर सब कुछ चुपचाप सुनने की वजह से पहले बच्चे के जन्म में बहुत तकलीफ झेली लेकिन समय के साथ रमा ने अपना मुँह खोलना शुरू किया। और सीधा बगावती हो गयी। उसने दूसरे बच्चें के जन्म के समय सीधे शब्दों में कह दिया। कि मैं अपने मायके जा रही हूं। और मुझसे अब आप सब किसी काम की उम्मीद मत रखना। जितना बन पड़ेगा उतना ही करूँगी। बाकी का आप सब खुद देख लो कैसे करना है।

जिसका नतीजा ये हुआ कि उसको दूसरे बच्चे के जन्म के बाद भी छ: महीने के लिए मायके छोड़ दिया गया। ताकि उसे ये एहसास कराया जा सके कि उसके रहने ना रहने से उनलोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अमर के सिवाय रमा के बेटे को देखने ससुराल से कोई अन्य सदस्य नहीं आया। लेकिन बच्चों के मोह के कारण अमर रमा को अपने साथ लेकर घर आया।इधर शीला जी और राजेश का व्यवहार वैसे का वैसा ही रहा। लेकिन रमा भी अपने कहे अनुसार उतना ही काम करती जितना उससे हो पाता।

दोनों ननदें फोन से तो देवर और सास घर मे रोज रोज रमा को ताने देना और बातें सुनना शुरू कर दिए। वो हर रोज रमा को कभी मायके वालों के नाम पर तो कभी घर के काम काज और बच्चों की परवरिश को लेकर ताने देते व्यंग करते रहते।रमा भी अब पलट कर हर गलत बात का तुरंत जवाब देती।जिससे घर में हर रोज झगड़े शुरू हो गए। आखिर में झगड़ों से परेशान होकर अमर ने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर करा लिया और सबको लेकर वहाँ चला गया। लेकिन वहाँ भी वो बात बात में रमा को ये सुनाना नही भूलता था कि उसकी वजह से वो अपने परिवार से दूर हो गया।

लेकिन रमा को इस बात से कोई फर्क नही पड़ता था। उसको अब सिर्फ अपने बच्चों की फिकर रहती और उनकी खुशी में उनके साथ खुश रहती। अमर के कहने पर तीज त्यौहार पर सास से बस औपचारिक बात चीत हो जाती। और वो जैसे ही ताने सुनाने के मूड में होती रमा काम का बहाना बनाकर फोन रख देती। इसी तरह रमा के दिन बीतते गए। रमा की शादी के दस सालों बाद देवर राजेश की शादी हुई।

राजेश की शादी में रमा ने सिर्फ शादी होने तक रुकी और सारी रस्में खत्म होते वापिस चली गयी। ना उससे किसी ने ज्यादा मतलब रखा और बातचीत करने की कोशिश की ना ही उसने की क्योंकि रमा को दिए जाने वाले ताने और व्यंग कटु थे और आने वाली बहू से अपार उम्मीदें जिस वजह से रमा चुप ही रही।

इस बार पूरे दो साल बाद रमा गर्मी की छुट्टियों में अमर के जिद पर ससुराल आयी थी। उसका मन ना होते हुए भी वो आयी। उसने अमर से पहले ही कहा कि तुम जाओ मैं अपने मायके चली जाती हूं।" लेकिन अमर नहीं माना।रमा जब ससुराल आयी तो देखा पहले से सब कुछ पूरी तरह बदल गया था। राजेश का टिफिन और सुबह की चाय सासुमां शीलाजी खुद खुशी खुशी बना रही थी। रमा की देवरानी आराम से आठ बजे सो कर उठी। नौ बजे कामवाली बाई भी आ गयी। जिसने झाड़ू पोछा बर्तन सब किया। दोपहर का खाना रमा ने अकेले ही चुपचाप बनाया । उसके बाद शीला जी ने रमा से शाम की चाय और खाना बनाने के लिए कहा। पहले दिन लगा रमा को की शायद उसके देवरानी पूजा की तबियत ठीक नहीं। उसने अपनी देवरानी से पूछा भी की," क्या हुआ तबियत ठीक नहीं क्या तुम्हारी?"

लेकिन उसने जवाब में रमा से सिर्फ दो टूक कहा,"नहीं मैं ठीक हूं "और अपना खाना लेकर अपने कमरे में चली गयी।

घर और घर के लोगो का बदला हुआ रूप उसे एकतरफ खुशी तो दूसरी तरफ अपने बीते हुए दिनों की तुलना से सोचकर तकलीफ भी दे रहा था।

रात ने रमा ने सबके लिए टेबल पर खाना लगाया । अमर बैठकर राजेश के आने का इंतजार कर रहे थे कि तभी वहाँ राजेश आ गया। जिसे देखकर अमर ने कहा,"बड़ी देर कर दी राजेश आजा चल खाना खाते है बहुत मुझे तो बहुत तेज भूख लगी है।"

जिसे सुनकर राजेश ने कहा," भईया आप खाना खा लीजिए मैं पूजा के साथ कमरे में खाऊंगा।"

इतना कहकर अपना और पूजा का खाना लेकर राजेश कमरे में चला गया। इधर अमर खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगे और जैसे ही अमर की नजर रमा से टकराई अमर ने तुरंत अपनी निगाहे नीची कर ली और बगले झांकने लगे। रमा के चेहरे पर ना चाहते हुए भी अमर को देखकर हँसी आ गयी। वो मुस्कुराने लगी।

खाना खाने के बाद जब रमा सारे काम समेट कर पानी की बोतल लेकर अपने कमरे में जाने लगी तभी उसके कदम देवर देवरानी के कमरे बाहर अपना नाम सुनते ठिठक गए।

राजेश ने पूजा से कहा,"तुम बस आराम करो अभी दो महीने हुए हैं, जब तक रमा भाभी हैं तुम्हे कोई काम करने की चिंता करने की जरूरत नहीं बस अपना और मेरे होने वाले बच्चे का ख्याल रखो। और कुछ बाहर से खाने का मन करे तो बोल देना मैं बाहर से लेता आऊंगा।"

"लेकिन जब दो महीने की छुट्टियों के बाद भाभी चली जाएगी तब कैसे होगा काम,मेरे तो अभी से पाव और सिर दोनो में ही दर्द हो रहा है। आगे क्या होगा?" पूजा ने कहा

राजेश ने कहा,"क्या पाव दर्द हो रहे है?तुमने पहले क्यों नही बोला लाओ ,दो मुझे मैं दबाता हूं? तुम चिंता मत करो भाभी के जाने के बाद मैं खाना बनाने वाली भी रख लूंगा और बाकी बचे काम मां देख लेंगी।"

रमा को उनकी बातें सुनकर बहुत गुस्सा आया।वो जैसे ही कमरे में जाने के लिए पलटी तो देखा की पीछे अमर खड़े थे जिन्होंने भी शायद पूरी बात सुन ली थी।

दोनों की निगाहें टकरायी और दोनों साथ में ही बोल पड़े,"वो मैं पानी ला रही थी.......वो मैं पानी लेने आया था"

तभी रमा ने पानी का बोतल अमर की तरफ बढ़ा दिया। देवर देवरानी की बातें सुनकर रमा को अपने पुराने दिन याद आ गए जिसे सोचकर उसके आंखों के कोर गीले हो गए। उसकी आँखों से नींद गायब हो गयी थी। इधर अमर भी बेड पर बन्द आंखों से सोने का नाटक कर रहा था।

तभी उसने रमा की तरफ अपनी गर्दन घुमा कर कहा ," रमा तुमको अपने मायके जाना था ना। सुबह उठकर समान पैक कर लेना मैं छोड़ दूंगा तुम आराम से अपनी छुट्टी बिताकर सीधा अपने घर आ जाना।"और इतना कहकर करवट लेकर वापिस सो गया।

करवट बदलतें बदलते रमा ये सोच रही थी कि लोग कितनी जल्दी बदल जाते है। अमर की बातें भी उसे कोई सहानुभूति नही दे रही थी। क्योंकि जब तक वो अमर को प्यार और अपनेपन से समझाने की कोशिश कर रही थी तब तक अमर नही समझे। लेकिन आज जब खुद का अपमान हुआ तो बात समझ मे आ गयी। ये सब कुछ सोचते सोचते उस की आंख कब लग गयी उसको पता ही नहीं चला।

अगले दिन सुबह रमा रसोई में गयी तो देखा शीलाजी और राजेश वहाँ पहले से मौजूद थे।शीलाजी ने रमा से कहा,"बहू लगता है अकेले रहते रहते देर से सो कर उठने की आदत हो गयी है तुम्हारी"तभी राजेश ने फिर तपाक से रमा पर व्यंग्य करते हुए कहा," अरे , मां !तुम बहुत भोली है इसलिए तो औरतें अलग रहने जाती है कि सब कुछ अपने हिसाब से कर सकें। आप तो बेकार में उम्मीद लगाए रहती हैं। आपने क्या सोचा कि आपकी सेवा होगी। आपको चाय नाश्ता खाना समय से बनाकर मिलेगा। गर्मी की छुट्टियों में कुछ औरतें सिर्फ बस मजबूरी में दिखावा करने आती हैं।"

तब रमा ने कहा,"देवरजी आप तो ताना मारने और दूसरों की औरतों को सिखाने में औरतों से भी आगे हैं। जितनी सीख आपने आज तक मुझे दी उतनी सीख पूजा को देना भूल गए आप। कहाँ गए आपके वादे इरादे की चाय ,खाना नाश्ता क्या आपकी बीबी तो माँजी को पानी भी बेड पर उनके हाथ में देगी। पानी देना तो दूर माँजी तो चाय नाश्ता भी खुद ही बना रही है। जो कि मेरे यहाँ रहते तो उन्होंने कभी नही किया था। वैसे मैं आप लोगों को यहाँ ये बताने आयी थी कि मैं अभी थोड़ी देर में अपने मायके जा रही हूं। "


रमा को इतना कहते सुन कर राजेश को बहुत गुस्सा आया। पीछे खड़े अमर से उसने कहा,"भैया देखा भाभी की जुबान कैसे कैंची की तरह चल रही है? और आप चुपचाप खड़े होकर सुन रहे है। जब मायके ही इनको जाना था तो फिर दो दिन के लिए यहाँ आकर दुनिया को दिखाने की क्या जरूरत थी?"


तब अमर ने पहली बार कहा,"राजेश अब मैं रमा के पैर तो दबा नहीं सकता। तो पति होने के नाते उसकी सही बात चुपचाप सुन तो सकता हूं। वैसे भी पहले बहुत सारी गलतियां कर चुका हूँ रमा के मामले में । अब गलती नहीं करना चाहता। अब मुझे अपनी गलती समझ मे आ गयी है इसलिए बाकी पतियों की तरह मैं भी अपनी पत्नी की खुशियों का ख्याल रखूंगा। हर बार रमा को मेरी वजह से रो कर अकेले अपने मायके जाना होता है इस बार मैं खुद उसे खुशी खुशी मायके छोड़कर आऊंगा।"

इतना कहकर अमर ने रमा की तरफ देखा और उसका हाथ पकड़कर अपने साथ लेकर कमरे में समान पैकिंग करने चला गया।

इधर राजेश ने अमर की बात सुनते मुँह बना लिया क्योंकि उसको पता हो गया था कि रमा और अमर दोनों ने ही रात की उसकी कही सारी बातें सुन ली हैं।


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