Shiv Choudhary Shiveet

Abstract

4.4  

Shiv Choudhary Shiveet

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एक इंतज़ार ऐसा भी

एक इंतज़ार ऐसा भी

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माघ मास की दो सर्द रातों का सफर तय करके मैं तीसरे दिन मध्यरात्रि को लाड़नूँ जंक्शन पर उतरा और इधर उधर देखा तो दादी माँ की भूत वाली कहानी की तरह पूरा स्टेशन सुना था। दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था। स्टेशन आज भी आठ वर्ष पूर्व जैसा छोड़कर गया था वैसा ही था, कुछ नहीं बदला था, बस एक प्लेटफार्म बढ़ गया था।

ट्रेन जाने तक प्लेटफार्म पर खड़ा याद कर रहा था अपने उस दिन को जब इसी स्टेशन से गया था मैं शहर, खो सा गया था शहर की चकाचौंध में और वापस लौटने में लग गए इतने वर्ष।

यह सब याद कर ही रहा था कि किसी के रोने कि आवाज कानों में पड़ी, घबरा गया था मैं, क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने देखा था इधर उधर, कोई नहीं था पूरे स्टेशन पर। फिर आवाज पर ध्यान दिया तो दूसरे प्लेटफार्म से आ रही थी जो शायद किसी लड़की की रोने की आवाज थी।

उसके रोने की आवाज सुनकर मैं थोड़ा भावुक हो गया और मन ही मन सोचने लगा कि इतनी रात को एक अकेली लड़की इस सुनसान स्टेशन पर क्या कर रही है ? ऊपर से भयंकर डरावना स्टेशन, पास में ही श्मशानघाट ! डर नहीं लग रहा इस लड़की को ?

ऐसे ही बहुत से प्रश्नवाचक लग रहे थे मन में और इन्हीं सब प्रश्नचिन्हों को लेकर मैं उसकी तरफ बढ़ा।

पास मैं जाकर मैं

हेलो......

उस लड़की के उत्तर की प्रतीक्षा की.....

पर उसने कुछ नहीं बोला।

मैंने वापस से उसे बोला

हेलो मैडम ! आप अकेली इतनी रात को यहाँ पर क्या कर रही हो ? और ऊपर से रो भी रही हो....

क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ ?

लड़की:

जी आप कौन हैं ? मैं यहाँ पर कुछ भी करूँ आपको क्या दिक़्क़त है ?

मैं:

अरे आप रो रहे थे तो मैंने पूछा......

मेरी बात काटते हुवे लड़की ने बोला:

क्यों ! रो नहीं सकती ?

मैं:

हाँ ! रो सकते हैं आप पर कृपया बताने का कष्ट करें कि क्यों रो रहे हैं और क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ ?

लड़की:

जी आप मेरी कुछ सहायता नहीं कर सकते, कृपया आप जाइये मैं आपको कुछ नहीं बता सकती।

मैं:

ठीक है, जैसी आपकी इच्छा....

मैं वहाँ से जा ही रहा था कि मुझे लगा कि इस लड़की को मैंने देखा है पर कब ? कहाँ ? कुछ याद नहीं आ रहा था। 

आठ वर्ष जो हो गए थे यहाँ से गए हुवे।

उससे काफी दूर जाने के बाद मुझे अचानक से याद आया और मैं भागा-भागा वापस उस लड़की के पास जाकर बोला !

"संजू".... !

वो एकदम से खड़ी हुई और मुझे देखने लगी।

लड़की:

आपको मेरा नाम कैसे पता ?

मैं:

क्या तुम संजू हो ?

लड़की:

हाँ ! पर.....आप.....

मैं:

पहचाना नहीं ? (शायद मैंने थोड़ी दाढ़ी बढ़ा रखी थी तो नहीं पहचान होगा)

लड़की अचानक मारने लग गई और गले लग कर बोली "शिव"

कमीने कितने दिन हो गए गये हुवे, मेरी एक बार भी याद नहीं आई तुम्हें ?

कितने दिन हो गए मुझे तेरा इंतज़ार करते हुवे ?

चल ! चला जा वापस.....

मैं:

अरे ! संजू....यार

मेरी बात काटते हुवे लड़की:

नहीं करनी मुझे तुमसे बात ! अब क्यों आया है वापस ?

पता है तुम्हें तुम जब बिना बताए चले गए थे गांव छोड़कर उस दिन से रोज मैं यहाँ पर आती हूँ, और रात को यहीं पर रुकती हूँ, केवल तेरे वापस आने के इंतज़ार में।

मैं:

पर क्यों ? तुम....यहाँ रुकती हो....इंतज़ार....

कुछ समझ नहीं आ रहा।

संजू:

कुछ नहीं ! घर जाओ ! तुम्हारी माँ बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार कर रही है। बहुत खुश होंगी वो तुम्हें देखकर।

मैं:

हाँ ! तुम भी चलो, तुम्हें घर छोड़ते हुवे चलूंगा।

वो मेरे साथ में ही स्टेशन से बाहर निकली और हम दोनों एक टैक्सी के पास गए....

मैं टैक्सी वाले से:

भाई खोखरी चलोगे ?

टैक्सी वाला:

दुई हज़ार लेउँ, चाल सयूँ.....

मैं:

ठीक है ! चलो....

हम दोनों टैक्सी में बैठे और चल पड़े अपने गाँव की तरफ.....

संजू बिल्कुल चुपचाप बैठी थी, और मुह भी बना रखा था शायद गुस्से में थी। 

अब हो भी क्यों न जब उसका परममित्र उसको बिना बताए उससे दूर चला गया और आठ वर्ष बाद लौटा है। 

वैसे उसको मनाना मुझे अच्छी तरह से आता है। हम दोनों ने पांचवी कक्षा से स्नातकोत्तर तक कि पढ़ाई साथ की है। 

मैंने बैग से चूड़ियाँ निकाली ( संजू को चूड़ियाँ बहुत पसंद है स्कूल समय में भी मैं उसे चूड़ियाँ दिलाने का लालच देकर गृहकार्य करवाता था )

मैं:

संजू देख तेरे लिए चूड़ियाँ लेकर आया हूँ।

संजू:

नहीं चाहिए मुझे कुछ भी.....रख अपने पास।

मैं:

सॉरी यार....अब सही से बात कर ले या पाँव पकड़ूँ तेरे ?

संजू मुस्कुराते हुवे:

तू ही पहनादे।

मैंने उसके हाथों में चूड़ियाँ पहनाई और हम दोनों बातें करने लगे।

बातें कर ही रहे थे कि टैक्सी ड्राइवर बोला:

साब खोखरी आवीग्यो

कठे ल्येउँ गाड़ी ? कठे उतरोगा ?

मैं:

हाँ ! आगे से राइट वाली गली....

ड्राइवर:

साबजी किधर लेना है ? समझ नहीं आया।

मैं:

आगे से......इतने में संजू:

जीवणी छाड़ि ल्येर् दूजै घर कनैई रोक देओ।

गाड़ी की आवाज सुनकर संजू की माँ भी नींद से जग गई और बाहर आकर देखा और बोले:

संजू बेटा आज रात मे'ई आवगी ? अर ए कण अ ?

संजू:

माँ ! शिव....

मैंने संजू की माँ के पैर छुवे और सुबह मिलने का कहकर जाने को बोला तो बोले:

बेटा !इतने सालों बाद आये हो और ठंड भी बहुत है तो चाय पीकर चले जाना।

मैं:

ठीक है (वैसे भी मेरा घर संजू के घर से एक घर छोड़कर ही है तो जाने में परेशानी नहीं होगी सोचकर रुक गया)

मैं टैक्सी को किराया देकर घर के अंदर गया और आंगन में रखी चारपाई पर बैठ ही रहा था कि संजू की माँ बोली:

शिव बेटा रशोई में आ जाओ ! चूल्हा जला दिया है, हाथ सेंक लो ! ठंड बहुत है।

मैं रशोई में गया तो संजू की माँ ने खली ( जमीन पर डालकर बैठने का बिस्तर ) दी, मैं उस पर बैठ गया।

थोड़ी देर बातें करते रहने तक चाय भी उबल गई थी, संजु ने चाय छानी और हम तीनों चाय पीने लगे।

फिर मैंने संजू की माँ से बोला:

माँ अब जा सकता हूँ घर ?

माँ हंसते हुवे बोले: 

हाँ ! और कल दिन में आती हूँ तुम्हारे घर....फिर करेंगे हम बातें।

मैं:

ठीक है माँ।

माँ:

मुन्ना ! उठना थोड़ा....शिव को घर तक छोड़कर आ।

मैं !

नहीं माँ ! मैं चला जाऊंगा.....

माँ:

बेटा गली में कुत्ते बहुत हैं और मुझे पता है तुम्हें कुत्तों से बहुत डर लगता है।

और सभी हंसने लगे।

इतने में मुन्ना बाहर आ गया और माँ से मेरे बारे में पूछा....

माँ बोली कि बबू दीदी के भाई हैं।

मुन्ना:

ओह्ह शिव भैया....

मैं:

हाँ मुन्ना ! काफी बड़ा हो गया है तू तो....

मुन्ना:

दूसरा कोई ऑप्शन भी तो नहीं था न भैया।

मैं:

हाँ....और हंसने लगे....

मुन्ना बोला:

भैया मेरे लिए क्या लाए हो ?

मैं:

मुन्ना मेरे बैग यहीं पर पड़े हैं अभी, सुबह तुम देख लेना सभी बैगों में और जो अच्छा लगे तुम्हें वो सब ले लेना।

और मैं माँ और संजू को मिलता हूँ बोलकर अपने घर के लिए मुन्ना को साथ लेकर निकल गया।

घर की तरफ जाते जाते मेरे दिल की धड़कनें बढ़ रही थी।

माँ-बाऊजी पढ़ाना चाहते थे मुझे और मैं पढ़ना नहीं चाहता था तो घर से आठ वर्ष पहले भाग गया था।

इतने वर्षों तक मैंने कभी फ़ोन भी नहीं करा था घर पर। किसी को अब कोई खबर भी नहीं थी मेरी। 

इतने में मुन्ना ने मेरे घर का दरवाजा खटखटाया और बोला:

बडिया ! गेट खोलीज्यो....

माँ शायद नींद में थे तो उन्होंने दरवाजा खटखटाने की और मुन्ना की आवाज सुनाई नहीं दी तो मेरी बहन (बबू) ने आवाज लगाई अंदर से कि मुन्ना तू इस वक्त यहाँ। क्या हुआ ? सब ठीक तो है ? कहते हुवे दरवाजा खोला।

मुन्ना:

दीदी देखो शिव भैया आ गए।

बबू:

शिव......और रोने लगी।

मैंने उसे गले लगाकर चुप कराया, फिर अंदर गए और बहन-भाई आपस में बातें करने लगे।

बीच में ही मुन्ना बोला:

भैया मैं चलता हूँ अब ?

मैं और बबू साथ में ही बोले:

अरे तुझे सोना ही तो है, यहीं सो जाना, बातें करते हैं थोड़ी देर।

मुन्ना:

भैया सुबह स्कूल जाना है और जल्दी उठ कर पढ़ना भी है कल टेस्ट है....नहीं तो मैं रुक जाता....कल आप ही के पास सोऊंगा।

तो बबू ने कहा ठीक है कल स्कूल से आने के बाद आ जाना। 

मुन्ना ठीक है कहकर चला गया।

इतने में माँ और बाऊजी भी जग गए थे और बाहर आकर पूछने लगे:

बबू बेटा कुण अ ?

मैं उठकर माँ बाऊजी के पाँव लगा और उन्होंने सीधे गले लगा लिया और खुशी से सभी के आँखों में आँसू आने लगे। मेरे भी आँखों से नीर धारा बहने लगी। माँ ने मुझे चुप कराकर चाय पिलाई और फिर खाने का बोला तो मैंने मना कर दिया।

मैं, माँ और बबू बातें कर ही रहे थे कि अचानक से मैंने पूछा दादाजी कहाँ हैं ?

माँ बोली कि आज चाचाजी बाहर गए हुवे हैं तो दादाजी उनके घर पर सो गए हैं सुबह आएंगे तब मिल लेना। पर मुझसे रहा नहीं गया तो मैं दादाजी से मिलने अभी जाने का बोल कर दादाजी के पास चला गया। कुछ देर दादाजी से बातें कर के वापस घर आकर सो गया। वैसे भी अभी सुबह के चार बजने को हो रहे थे तो नींद तो नहीं आई बस ऐसे ही थोड़ा आराम कर लिया।

सुबह होने के बाद माँ ने मुझे चाय पकड़ाई और माँ भी पास में बैठ कर चाय पीने लगी इतने में बबू भी आ गई। हम चाय पीते पीते बातें कर रहे थे कि माँ को याद आया चूल्हे पर सब्जी चढ़ा रखी है तो वो रशोई में चली गई।

बबू ने मुझसे पूछा:

शिव संजू से मिला ?

मैं:

हाँ ! पर बबू वो रात को रेलवे स्टेशन पर क्यों सोती है ? और रो भी रही थी....

बबू:

तेरे इंतज़ार में भाई....

मैं:

मेरे इंतज़ार में....मतलब ?

बबू:पागल है तू.....जो अंग्रेजी में पढ़ाई करना चाहती थी उसने तुम्हारे साथ पढ़ने के लिए हिन्दी में पढ़ना शुरू कर दिया। और तो और जिसने तुम्हारे इंतज़ार में जहाँ से तुम गए थे उस स्टेशन पर हर रोज रात में चली जाती है वो भी अकेली और तुम्हारा इंतज़ार करती रहती है या करती रहती थी।

और तुम पूछ रहे हो इंतज़ार मतलब.....

भाई सच में पागल है तू.....

मैं: 

(आँखों में आंसू लिए हुवे)

बबू मैं आता हूँ.....

मैं संजू के घर की तरफ भागा और अंदर घुसते ही जोर से संजू-संजू चिल्लाने लगा। 

संजू की माँ बोली:

क्या हुआ बेटा ? इतने हांफते हुवे क्यों चिल्ला रहे हो ?

मैं:

माँ ! मे...अ....री स्...न्....जु कहाँ है ?

मुझे मिलना है उससे.....

माँ:

बेटा वो तो मन्दिर गई है। बैठो ! थोड़ी देर में आ जायेगी.....

माँ आगे भी कुछ कह रही थी कि मैं वहाँ से मन्दिर की तरफ भागने लगा।

मैं मन्दिर में पहुंचने ही वाला था कि संजू मुझे मन्दिर के बगीचे में बैठी दिखाई दी.....

वो जो मैंने रात में उसे चूड़ियाँ पहनाई थी उन्हें निहार रही थी और आँखों में पानी लिए थी।

मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछने लगा:

क्या कर रही है यहाँ ?

संजू आंसू पोंछते हुवे:

कुछ नहीं, बस बैठी थी।

मैं:

अच्छा ! आँखों में आंसू किस लिए ?

संजू:

कुछ नहीं ! कचरा चला गया था आँख में....तो पानी गिर रहा है।

फिर कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे, न तो वो कुछ बोल रही थी न ही मैं कुछ बोल रहा था।

काफी देर शांत रहने के बाद मैंने बोला:

मन्दिर में चलें ?

संजू ने बिना कुछ बोले हाँ में गर्दन हिलाई और हम दोनों मन्दिर में चले गए।

पर संजू कुछ उदास सी लग रही थी।

मन्दिर में परिक्रमा देने के बाद मैंने सिंदूर हाथ में लिया और संजू से बोला:

मेरे नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरोगी ?

संजू ने झट से मेरा हाथ पकड़ा और मेरे हाथ से अपनी मांग में सिंदूर भरा दिया। अब वो एक बार हंस रही थी तो एक बार रो रही थी। फिर उसने मुझे गले लगाया और कहा.....बहुत इंतज़ार करवाया है तुमने.....अब कसम है तुम्हें मेरी मुझसे दूर चले गए तो.....

मैने भी उससे कभी दूर नहीं होने का वादा किया.....

फिर वो बोली.....चलो ! अब घर चलते हैं.....

सच में आज संजू बहुत खुश लग रही थी.....मैंने आज पहली बार उसे इतना खुश देखा था।


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