Bhawna Kukreti

Tragedy

4.5  

Bhawna Kukreti

Tragedy

गहरी नींद

गहरी नींद

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"वो आपसे मिलना चाहते थे दी...' सुबकियां लेते हुए सीमा ने कहा।


कॉलेज के दिनों की बात थी। मेरी और "***" कीअच्छी दोस्ती थी, बेजोड़ मगर उसे देखने महसूस करने का दोनो का नज़रिया अलग। बीते सालों में आखिरी बार "***" से एक दो महीने ऑनलाइन अपनी अपनी जिंदगियों को लेकर छुटपुट बातचीत।एक दो बार संयोग से औपचारिकताओं में बंधी भीनी-भीगी मुलाकात जिसमे आंसुओं का सैलाब थामने को बढ़ते"***" हाथों को रोकती मेरी वही झिझक।और अचानक फिर "***" से जुड़ी एक मनहूस खबर का सही हो जाना। जिंदगी में ऐसा शायद ही किसी के साथ होता होगा जैसा ...मेरे साथ हुआ।


  "वो अपने आखिरी पल मे भी आपसे मिलना चाहते थे दी.."वो बार-बार एक ही बात कहे जा रही थी। मैंने उसका दर्द समझते हुए उसे कस कर गले लगाया तो वो मेरी गोद में ही बिखर गई। "क्यों दी ..ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ ?क्यों? वे तो मुझे प्यार करते थे फिर आपसे मिलने की तड़प क्यों? हमारे बच्चों पर जान छिड़कते थे मगर आपके बच्चे के लिए फिक्र ..क्यो ? क्यों ? क्यों सवालों में छोड़ गये मुझे? 


विकास, मुझे और सीमा को एक दूसरे को संभालते, झिंझोड़ते देख रहा था। विकास, जो मेरा और "***" काभी दोस्त था, चुपचाप एक कोने में खड़ा मुझको एकटक देख रहा था। सीमा की जिद पर वो उसे और बच्चों को मुझसे मिलवाने ले आया था। 


ये और मेरा बेटा दोनो उन दिनों टूर पर निकले हुए थे। इन्होंने मुझे सीमा के संग बेहद समझदारी से काम लेने को कहा हुआ था ।नवंबर का वो दिन ....विकास, सीमा और दोनो बच्चे... सब मेरे घर मौजूद थे। नाश्ता करने के बाद चाय पीते-पीते सीमा का सब्र जवाब दे गया था। "दी जानती हो ..आपको प्लेन कॉफी पसंद थी तो वो भी हमेशा प्लेन कॉफी पीते ,ऑडर करते थे।' सिसकते-सिसकते सीमा खामोश हो मेरे से कुछ दूर जा कर , कोने में रक्खी कुर्सी पर बैठ , बेहद मासूम निगाहों से देखने लगी।


"वो तो आपके सपने में भी आये थे न ...उस दिन ?!" उसकी आवाज में अब इतना दर्द था कि मैं ,जो बहुत देर से मजबूत होने का ढोंग कर रही थी ....आख़िरकार टूट ही गयी। 


शाम को दो नन्हे बच्चे कार की खिड़की से मुझे बाय कर रहे थे। उनकी माँ सामने की सीट पर बैठे चुपचाप रास्ते की ओर देख रही थी। विकास ने कहा " सॉरी यार..बट प्राउड ऑफ यू... टेक केयर। , "कोई बात नहीं...पहुंचकर कॉल करना।"


 सीमा का पति यानी मेरा दोस्त "***" और मैं यानी सीमा के पति का "पहला प्यार"। "***" ने हमेशा की तरह सीमा के सामने भी अजीब स्तिथि कर दी थी मेरी। मगर अब वह मौजूद ही नही था की उसे इग्नोर कर सज़ा दूं। ऐसा लग रहा था कि उसने और उसकी पत्नी दोनों ने मिलकर अब मुझे सज़ा दे दी थी ,उनकी जिंदगियों में एक कमी भर देने की। कमी , जिसमे मेरी भूमिका सिर्फ अतीत में मौजूद रहने भर की थी। जिसकी वजह से आज दोनो ने मुझे दोषी बनाकर सज़ा सुना दी थी। 

  "***" ने मेरे नाम को अपनी पत्नी को ओढा दिया था जिसका अंदाज़ा सीमा को उसके आखिरी दिनों में हुआ जब उसे पता चला कि जिस नाम को वो "***" का उसे प्यार में दिया नाम समझती थी वो " उसके दिल का मीठा घाव" था । "***" ने जिंदगी से लड़ते हुए सीमा से माफी के साथ-साथ , मेरे लिए उसके मन मे जो कुछ था सब स्वीकार किया। 

  एक पत्नी जो समर्पित रही, पति के प्रेम में डूबी रही उस पर क्या बीती होगी ये कल्पना से परे है। मैं इस पूरे कथाचक्र में तब कहाँ थी, अब कहाँ हूँ ये समझ मे ही नहीं आ रहा था। कभी लगता निर्दोष होते हुए भी दोषी हो गयी हूँ और कभी लगता दोषी हूँ निर्दोष नहीं।क्या हूँ क्या नहीं इसी में रात के 9 बज गए। बीच मे दो बार इनका फोन आया जानने के लिए की मैं ठीक तो हूं?! 

  

  उस रात भी सालों-महीनों-दिनों की ही तरह कई बार बेचैन करवटों के बाद नींद आयी मगर.... "क्या है ये सब?क्यों किया ये सब ? " सपने में मैं, फिर लाइब्रेरी के लॉन में खड़ी "***" से लड़ रही थी ।और "***" हमेशा की तरह बस चिरपरिचित मुस्कान लिए मेरे सामने दोनो हाथ अपने ट्राउज़र की जेब में डाले खड़ा मुझे निहार रहा था।मैं उसकी ओर उसका कॉलर पकड़ने के लिए बढ़ती मगर वो करीब होकर भी पहुंच से दूर हो रहा था।" क्या????" मैं सपने में उस पर बिफर कर चीखी। अचानक वो थोड़ा गंभीर हो गया और वो जगह और माहौल बदल गया । वही जगह, वही भीड़ , वही शोर मेरे सामने किसी फिल्म की तरह दिख रही थी, जहां मैं उसकी पक्की दोस्त से अजनबी हो गयी थी। इस बार , मैं उसे झिंझोड़ती दिख रही थी और वो खामोश मुझे देख रहा था। तभी उसकी पत्नी की आवाज सुनाई दी "वो तो आपके सपने में भी आये थे न ...उस दिन ?!" मुझे उसी समय उसका मेरे प्रति लगाव का बेहद तीव्र अहसास हुआ और वो उसी तेजी से वहां से निकला जैसे में कई साल पहले निकली थी। मगर वो...वो रुका और लौटा। मेरी दोनो बाहों को कस कर पकड़ा और पहली बार मेरी आँखों मे झांकते हुए अपनी गंभीर और गहराई आवाज में बोला , "फर्स्ट यू आंसर मी ..व्हाय?" 

सपना टूट गया, मैं आंसू और पसीने से नहाई हुई थी... मैंने दिल पर हाथ रखते हुए कहा "सॉरी बडी आई वासन्ट अवेयर" ।

  उसके बाद "***" कभी सपने में नही आया मगर परसों जब सीमा से बात हुई , वो "***" की दीवानी इस बात से ही खुश थी "***" अब उसके और बच्चों के सपने में आने लगा है। और अब मुझे भी गहरी नींद आने लगी है।



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