Pradeep Kumar Tiwary

Abstract Comedy

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Pradeep Kumar Tiwary

Abstract Comedy

हुआ यूं कि..

हुआ यूं कि..

3 mins
202


हुआ यूँ कि सुबह सुबह आँख पूरी खोली भी नहीं और हाथ मोबाइल पे गया, आजकल के चलन के मुताबिक ही... फिर धुंधली आंखों से सोशल मीडिया खोला, देखा कि पोस्ट पे कई सारे लाइक्स... खुशी से बाँछे खिल गयी, कइयों ने लंबे-लंबे कमेंट भी दिए थे, सो दिल बल्लियों सा उछलने लगा, फेफड़े अपनी औकात से ज्यादा फुल और पिचक रहे थे, एक पल को लगा कि कहीं फेफड़े फट के बाहर ना आ जाएं... तिस पर कुछ दोस्तों ने अपने पोस्टों पे मेंशन किया था, दिल बाग-बाग हो गया, कइयों को तो कभी मैंने देखा भी ना था, दिल गुमान में फुलकर गुब्बारा हो चला था...इतना ज्ञानी समझते है लोग मुझे ..एक तरह की फीलिंग आने लगी जैसे मैं मुंशी प्रेमचंद हूँ या शरत चंद्र .. .जागते-जागते खुद को साहित्य अकेडमी अवार्ड लेते हुए देख रहा था।

एक नशा सा हावी हो रहा था, सोचा ... मुँह में पेन लगाए कुछ सोचते हुए दो चार फोटू मोबाइल के कैमरे से खींचकर प्रोफाइल फोटू पे लगा दूँ बड़ा इम्प्रैशन पड़ेगा लोगो पे.. .और हाँ अब ज्यादा किसी से बात नहीं करना ... थोड़ा गंभीर रहना होगा बड़े लेखक किसी से ज्यादा बातें नहीं करते... गंभीर रहते है..

सोचा लेखक वास्तविकता के बेहद करीब होते है तो क्यों ना गाँव का एक चक्कर लगा लूँ, फिर बाज़ार से होते हुए घर वापस आ जाऊंगा ..सालों पहले पिताजी शहर से एक कुर्ता-पाजामा लाये थे मारे शर्म के कभी नहीं पहना ..जीन्स टीशर्ट के ज़माने में ये क्या लाये है, मेरी क्या इज़्ज़त रहेगी दोस्तों के बीच और मेरी गर्लफ्रैंड वो तो बाबाजी बोल के इज़्ज़त ले लेगी सो वो वैसे ही रख दिया था आज सालों बाद उस कुर्ते और पाजामे की अहमियत समझ आयी...मेरा लेखक मन विचलित हो उठा, तुरंत जाकर वो कुर्ता पाजामा निकाला बड़ी ही भयानक बदबू आ रही थी फिर भी आज उस कुर्ते से मुझे पित्र-स्नेह की सुगंध मिल रही थी मैं बन ठन के बाहर निकलने वाला ही था कि कोने में बैठे मेरे कुत्ते पे मेरी नज़र पड़ी...मुझे याद आया लेखक तो पशु प्रेमी होते है..मेरा लेखक मन भावुक हो गया मैं तुरंत अपने कुत्ते के पास गया उसे पुचकारने लगा, उसने आव देख ना ताव किसी शेर की तरह मेरी ओर झपट्टा मारा मेरी आस्तीन को पकड़ लिया और चर्र की आवाज़ के साथ ही कुर्ते की आस्तीन शहीद हो गयी उसका रौद्र रूप देखकर मेरे तिरपन कांप उठे मैं वहाँ से पलट कर भाग खड़ा हुआ.. दो चार मिनट तक मेरे हाथ पाँव कांपते रहे ऐसा लगा कि मौत बिल्कुल सामने खड़ी है...पता चला पिताजी ने उसे दूध और रोटी मिलाकर खाने को दी थी वो दूध-दूध तो पी गया पर रोटी छोड़ दी, पिता जी ने गुस्से में आकर दो तीन छड़ी रसीद दी-अबे दूध पी गया रोटी क्या तेरा बाप खाएगा, कुत्ते का इस तरह मेरे पिताजी का उसके खानदान पे जाना बुरा लगा, जनाब इस वक्त तो चुप रहे पर खुन्नस पाले बैठे थे तिस पे मेरा प्रेम प्रदर्शन आग में घी का काम कर गया और उसने अपना सारा गुस्सा मेरे निकाल दिया ।


साहित्याला गुण द्या
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