इज्जत
इज्जत
प्रशांत सुबह सुबह उठकर कमरे से बाहर आया ही था कि दरवाजे पर ताऊ जी के बड़े बेटे राज भाईसाहब ने प्रवेश किया ।
"अरे ! भाईसाहब । राम-राम । इतनी सुबह ? कुछ ......... "
राज ने बीच में ही प्रशांत की बात काटते हुए कहा — "हां , जरूरी काम है।"
"तो आप फोन कर देते । मैं खुद चला आता भाईसाहब । आपने तकलीफ क्यों की —" प्रशांत ने कहा ।
" नहीं मेरा आना ही जरूरी था । फोन पर करने की बात नहीं थी —" राज ने गंभीर होते हुए कहा ।
" क्या हुआ भाईसाहब ?" — प्रशांत ने हल्का घबराते हुए पूछा ।
" जीजा जी की डेथ हो गई ।"
"कब ?"
"आज रात।"
"कैसे ?"
" हार्ट अटैक से।"
"ओह !"
"तो आज वहां चलना है । आधे घंटे में रेडी रहना ।गाड़ी घर के बाहर तैयार खड़ी है । इतने मैं परिवार के अन्य लोगों को सूचना देता हूं" — राज ने सब एक सांस में बोल दिया ।
"लेकिन भाई साहब .............."
प्रशांत अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही राज ने उसे बीच में रोक दिया। " देखो , अभी इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है । ऐसे वक्त में सब गिले-शिकवे भूल जाने चाहिए ।समाज क्या कहेगा ? बहन विधवा हो गई और भाई एक बार आकर खड़ा भी न हो सका ? जाना तो पड़ेगा वरना क्या इज्जत रह जाएगी चार लोगों में ? ठीक है , तुम तैयार हो जाओ । लेट न करना ।अंतिम संस्कार के वक्त पहुंच जाना है" — यह कहकर राज तुरंत चला गया ।
लेकिन प्रशांत वहीं जड़वत खड़ा रहा ।ये सोचते हुए कि अजीब रवायतें हैं दुनिया की ? जीते जी किसी से मिलने के लिए एक घंटा ना निकले भले कभी लेकिन मरने के बाद सगे संबंधियों व मोहल्ले वालों की गाड़ी भरकर मातम मना लेने का वक्त जरूर निकाल लेते हैं लोग ।जीजी से पिछले बीस वर्षों से संबंध विच्छेद है भाई साहब के । किसी भी गमी खुशी में इन सालों के दौरान आना-जाना नहीं हुआ । जीजाजी पिछले पांच सालों से गंभीर बीमार थे लेकिन भाई साहब ने कभी एक फोन नहीं किया आज तक । जीजी से उसकी और उसकी पत्नी की बातें फोन पर कभी कभार होती रहती है । कितनी पीड़ा होती है जीजी को इस बात की कि मायका होते हुए भी उनका नहीं रहा । यह दुख तो केवल जीजी ही समझ सकती हैं भाई साहब नहीं । जिस जीजी से बीस वर्षों से कभी एक शब्द नहीं कहा , देखा नहीं , आज अचानक यूं सारे परिवार को लेकर धमक जाएंगे उनके घर । किस मुंह से ?सिर्फ समाज के खोखले रिवाजों का आलंबन लेकर ? मनुष्यता का कैसा निम्न स्तर है ये ?हमारे प्रेम , परवाह , वक्त , बातों की जरूरत व्यक्ति को जीवन के समय होती है । मरने के बाद बहे आंसू मृत देह के किस काम के ?बेवक्त और गैरजरूरत बहा ये नमकीन पानी कब किसी के मन को ठंडक दे पाया है ?कितना अच्छा हो कि हम जिंदा रहते इंसान से सभी गिले-शिकवे भूलकर मिले ।जाना सभी को है । कोई मालिक नहीं इस जहान का तो फिर कैसी कड़वाहट ?किसी के मरने के बाद निभाए जाने वाले दिखावों से बेहतर है कि हम उस इंसान से सब अच्छा बुरा भूल कर कुछ पल बात कर ले । यह सब सोचते-सोचते उसके विचारक्रम को तब ब्रेक लगा जब पत्नी की चाय के लिए आवाज आई ।उसने सिर गहरी सांस के साथ झटका और जल्दी से तैयार होने चल दिया क्योंकि आज तो समय पर पहुंचना बेहद जरूरी था जरूरी है ।आखिर भाई साहब की चार लोगों में इज्जत का सवाल जो है ??