Rashmi Sinha

Inspirational

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Rashmi Sinha

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जात पांत पूछे नही कोई

जात पांत पूछे नही कोई

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वर्षो पहले की बात है पर अब तो सपने सरीखे लगते हैं सूप,और उनमें फटके जाते अनाज।दरवाजे सूप बेचने वाला आया था। माँ उन सूप की गांठों में पता नही क्या गिन रही थी।

"क्या जोड़ घटा रही हो? "

"अरे तुम लोग नही समझोगे, पढ़ लिख क्या गए----"

"फिर भी?"

" ये सूप लेने का तरीका है, हर गांठ पर वो जोड़ रही थी, दूध, पूत, धन, दलिद्दर----अगर अंत दलिद्दर पर आया तो सूप रिजेक्ट.

"माँ, तुम जात पांत इतना क्यों मानती हो?"

"अब रहने भी दो, पढ़ लिख क्या गए---," ये उनका फेवरेट ताना

"जब ईश्वर ने ही बनाया है, तो हम क्यों दखल दें उनके न्याय में?"

पर मैं भी उनसे उलझने के मूड में रहती, "मां तुम्हे पता है, ये जिस सूप पर तुम अनाज फटक रही हो, किस जात ने बनाया?" और वो झल्ला जाती शायद उसे पता था।

कोई मुसलमान, ईसाई, दलित घर मे आ जाता, तो उसके खाने के बर्तन अलग---

माँ से प्रतिवाद करती, ये सब कुछ नही होता। हाँ ऊंच नीच का आधार आर्थिक बनाओ, तो भी बात,मैं आंख मार कर कहती।

"रहने दो, रखो अपना ज्ञान अपने पास---"

मेरी भोली मां ,कैसे समझाती उसे की वाकई धन ही डिसाइडींग फैक्टर है।पता चला भी तब, जब हम सोशल कॉल पर अपने उच्च अधिकारी के पास पहुंचे, दलित जाति के अधिकारी के यहां जब चाय पीने की नौबत आई तो पहली बार उसे विवशता में कडुए घूंट की तरह चाय गले के नीचे उतारते देखा।।शायद उसे मेरी बात की सत्यता का आभास हो चला था।

मैं उसे समझाती, मां कितनी ही हिन्दू ईश्वरीय मूर्तियां,मुस्लिम कलाकारों के हाथ गढ़ी होती हैं और फिल्मी कलाकार, मुस्लिम राम का नाम लेकर पूजा करते हैं, तो हिन्दू कलाकार नमाज़ पढ़ते दिखते हैं।

अब उसकी आस्था डगमगा रही थी। पर सुधार शायद वांछित दिशा में था, मैं ख़ुश थी।और एक दिन जब अम्मा को चिढ़ाते हुए हमलोगों के मुस्लिम चपरासी ने कहा, "अम्माँ ,ये लोग आपको बहुत परेशान करते हैं न, कल मैं आपके लिए जलेबी लाऊंगा",और में हैरान थी अम्मा को कहते सुन, "ज़फर, जलेबी बाद में लाना, पहले एक कप चाय तो पिला दो।"

"अभी लाया अम्मा----."


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