AMIT SAGAR

Tragedy

4.7  

AMIT SAGAR

Tragedy

जीवन - एक लस्सी

जीवन - एक लस्सी

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राजा जो कल तक अपने बाप का लाडला हुआ करता था, आज वो एक इमारत मे ईँट पत्थर तोड़ने का काम करता है। कहते है इन्सान को बुरे कर्मो की सजा यहीँ भुगतनी पड़ती है, पर राजा ने तो अभी कोई बुरा कर्म किया ही नहीं है, तो भगवान उसे किस बात की सजा दे रहा था, जो तेरह वर्ष की उम्र में ही उसके हाथ से खिलौने छूट कर ईँट पत्थर आ गये। दरअसल कर्म के साथ साथ कुछ नसीब मे खेल भी होते है, जो हमे जाने अन्जाने खेलने ही पड़ते हैं, और साथ ही इस अनचाहे खेल को जीतने के एक मात्र उपाय मेहनत है, जो कि राजा कर रहा था।

राजा के साथ - साथ राजा की माँ भी उसी ईमारत में ईँट पत्थर तोड़ रही थी, दोनों एक दुसरे से 10 मीटर की दूरी पर बैठे हुए थे। दोनो के हाथ मे हथौड़े थे, दिमाग में काम को करने की  लगन थी, नजर में एक - दुसरे की परवाह की दुआ थी, और मन पुरानी बातो को याद करके सुख की शक्कर और दुख के दही से खट्टी मीठी लस्सी बना रहा था।

अभी महीने भर पहले तो सबकुछ ठीक ठाक ही चल रहा था। राजा के पिता एक ठेकेदार थे, अामदनी अच्छी होने के कारण घर में रोज ही खाने को भरपूर मिठाईयाँ आती थी, राजा को भरपूर जैबखर्च मिलता था, माँ का कजरा और गजरा छुटने से पहले नया आ जाता था, और राजा के पिता भी शाही जिन्दगी जीते थे वो शराब के शौकीन थे अजी शौकीन क्या आदि थे बस यूँ समझ लो बिना शराब के उनकी रात कटती ही ना थी। , वो जितना कमाते थे उतना रोज बच्चो पर, पत्नी पर और खुद पर खर्च कर देते थे, वो कल के लिये कुछ छोड़ते ही ना थे, क्योकि वो कल के बारेें में कुछ सोचते ही ना थे। वैसे तो वो रोज ही शराब पीते थे, पर उस दिन कुछ ज्यादा ही पी ली थी, रात का समय था और वो खुली सड़क पर खुले साँड की तरह चल रहे थे। वो धुर्त थे, और कोई उनसे भी ज्याद धुर्त आदमी रात के अँन्धेरे में उन्हे अपनी गाड़ी से ठोककर चला गया। राजा और उसकी माँ रात भर उनका ईन्तेजार देखते रहे, और सुबाह को जब पता चला कि वो होस्पिटल में है,, तो दोनो के आँसु बह निकले। राजा के पिता की हालत गम्भीर थी, पर इलाज कराने के लिये पैसे ना थे, क्योकि ऐंसी स्थितियोँ के बारे में उन्होने कभी सोचा ही ना था। घर मे जमा पूँजी के रुप में खुद घर ही था, और थोड़े बहुत गहने थे, उन दोनो को ही बैचकर राजा के पिता का इलाज चल रहा था। महगेँ इलाज से वो ठीक तो हो रहे थे, पर घर को बैचकर जो पैसा मिला था, वो अब खत्म होने की कगार पर था, और इलाज अभी लम्बा चलना था, और उसी इलाज की चिन्ता ने दोनो को ईँट पत्थर तोड़ने पर मजबूर कर दिया।

खैर, राजा नहीं चाहता था कि उसके होते हुए उसकी माँ बाहर ईँट पत्थर तोड़े, और माँ भी नहीं चाहती थी कि इतनी सी उम्र में उसका बेटा ईँट पत्थर तोड़े, पर हलात और मजबूरी ईन्सान से कुछ भी करवा सकती है। ऊपर से यह दुनिया वाले गिरते पर चार लाते लगाने के लियें हमैशा तैयार रहते हैं। जहाँ राजा और उसकी माँ काम कर रहे थे, वहीँ पास में ठेकेदार कुर्सी डालकर बैठ गया, और उसने राजा की माँ को गिद्ध वाली नजर से देखना शुरू कर दिया, पर वो बैचारी अपने काम मे इतनी मशगूल थी कि वो दुनियादारी को भूल ही बैठी थी। पर कुछ ही दैर में राजा महसूस करता है कि इस ठैकेदार की नियत में खोट है। पर वो बैबसी का पर्दा आखोँ पर डालकर सबकुछ अन्जान सा बन देखता रहता है। जब काफी दैर बाद भी राजा की माँ की नजर ऊपर ना उठी तो वो जोर से आवाज लगाकर कहता है - क्या कर रही हो मेडम पत्थर थोड़े छोटे छोटे तोड़ो, तब राजा की माँ उसकी तरफ एक नजर देखती है, और उस एक नजर मे़ ही वो बैचारी यह भाप जाती है की इस दुष्ट की आखोँ में मेरे लिये हवस की अग्नी जली हुई है। वो फिर अपने काम मे लग जाती है। ठैकेदार उसकी दुसरी नजर की झलक का इन्तेजार करता है पर वो ईन्तेजार व्यर्थ ही जा रहा था। ठैकेदार से अब रहा नहीं जा रहा था, वो राजा की माँ के पास जाकर बहुत मक्खन वाले लहजे में कहता है - क्या कर रही हो अभी तो मैंने समझाया था, छोटे छोटे तुकड़े करो, वो राजा की माँ की कमर के पीछे आता है और उसके हाथ से हथौड़ी पकड़वाकर खुद पत्थर तुड़वाता है । राजा की माँ उसका विरोध ना कर पायी क्योकि उसे डर था कहीँ यह मेरे बेटे को कोई नुकसान ना पहुँचा दे। ठैकेदार हवस में अन्धा होकर यह भी भूल जाता है कि सामने ही एक बालक भी बैठा है जो उसकी यह काली करतूत देख रहा है। उधर यह सब देखकर   राजा की आँखो में भी खून उतर आता है, पर वो उसका विरोध नहीं कर सकता था, क्योकिं उसे भी भय था कहीँ विरोध करने पर यह मेरी माँ को कोई नुकसान ना पहुँचा दे। वो बैगेरती के चबुतरे पर खड़ा एक ऐंसा बच्चा था जिसके हाथ मे इस गन्दी नाली के कीड़े को मारने के लियें स्प्रे तो था, पर उसे डर था कहीँ वो स्प्रे उसके अपनो को ही हानी ना पहुँचा दे। पर राजा में इतना आक्रोश आ जाता है कि वो जोर जोर से हथौड़े पीटने लगता है, उसके हथौड़े की आवाज सुनकर ठैकेदार समझ जाता है, कि हो ना हो यह इसकी माँ है। वो कनफर्म करने के लियें पूछता है क्या यह तुम्हारा बेटा है ? राजा की माँ कहती है हाँ। यह सुनकर वो तुरन्त ही अपनी हवस पर लगाम लगा देता है, और वापस अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ जाता है। और वो दोनो भी फिर से अपने काम में लग जाते हैं। ठैकेदार की इस हरकत के बाद दोनो माँ बेटे एक- दुसरे से नजर मिलाने में हिचक रहे थे। कुछ दैर बाद छुट्टी हो जाती है, ओर दोनो घर की ओर रवाना हो जाते हैं। दोनो एक दुसरे से कुछ कहना चाह रहे थे, पर कहे कैंसे, एकाएक बैटा बोल ही पड़ा, माँ कल से तुम काम पर मत आना। बेटे की यह बात सुनकर माँ की आँखो में आशु आ जाते हैं, और वो अपने बैटे को समझाती है, कि बैटा हम औरतो को यह सब सहने की आदत होती है। पर बैटा तू मुझसे एक वादा कर कि तू कभी किसी को बूरी नीयत से नहीं देखेगा, अगर हम अच्छे हैं तो हमारे लियें दुनिया अच्छी है।

यूँ ही बाते करते कराते दोनो अप‌ने घर आ जाते हैं, और अगले दिन एक नई सोच के साथ निसंकौच अपने काम पर जाते हैं। 


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