जिम्मेदारी अपनी अपनी
जिम्मेदारी अपनी अपनी
मैं इक राआ जा हूं, तू इक रा आ नी है
प्रेमनगर की ये इक सुंदर प्रेम कहानी है .........
सिंह साहब बड़े उच्च स्वर में गुनगुना रहे थे...कि अचानक उनकी श्रीमतीजी (मालती) रसोई से निकली तो सुरीली आवाज जैसे कंठ में नीचे खिसक गई ।
मालती अपने आग्नेय नेत्रों से देखते हुए बोली, "रानी नहीं नौकरानी।"
अरे रे रे क्या हुआ भाग्यवान? क्यों सुबह सुबह आग बबूला हो रही हो!क्या हुआ ?
सोफे पर सीधे बैठते हुए, आर के सिंह साहब ने कहा
हां सही कह रही हूं मैं, बाहर दूधवाला आकर चला गया।
ना बाप को होश है, ना बेटे को और बेटी तो और भी सुपर अभी तक नींद पूरी नहीं हुई है। मैं जरा ध्यान ना दूं तो सब उल्टा सीधा हो जाए ।
यहां इनका नाश्ता भी बनाओ, इनका खाना तैयार करो, इनके और इनके बच्चों के कपड़े धोओ। सारा दिन यूं ही मजदूरों की तरह लगे रहो।
इनसे एक काम ठीक से नहीं होता, सुबह सुबह इन्हें गाने सूझ रहें हैं, एक ये बेटा है इसे मोबाइल से फुर्सत नहीं है।
अरे यार तुम तो शुरू ही हो गई, अब बस करो ये बताओ दूध लाना है क्या!
जी नहीं ई ई... मैंने दूध वाले को जाते हुए देख लिया था, सो मैं ले आई हूं।
अरे जब दूध ले लिया तो फिर इसमें नाराज होने की और ये पुराना ताना मारने की क्या जरूरत थी ? एक काम ही तो किया है तुमने कौन सा तीर मारा है? तुम करती ही क्या हो?
अच्छा जी ! मैंने एक काम किया है.... मेरे जितने काम करके जिम्मेदारी उठा के देखो तो पता चले !
अब आर के सिंह साहब का जमीर अचानक जागा तो उनके श्रीमुख से निकला, "क्या जिम्मेदारी हैं तुम्हारी, क्या काम हैं चलो आज हम करके दिखाएं, तुम बैठो और देखो!"
"पापा गलत पंगा ले रहे हो मम्मी से", पास बैठे बिट्टू ने कहा
ओए चुप कर, तू समझता क्या है?
ये सब काम मेरे बाएं हाथ का काम है।
हां तो ठीक है आजकल वैसे भी लॉक डाउन है, ऑफिस जाना नहीं है। मैं तो आज आराम से टी. वी चैनल पर कार्यक्रम देखूंगी। आप अपने बाएं हाथ का उपयोग कीजिए।
"ओके! ठीक है, आज हम ये चैलेंज स्वीकार करते हैं।" सिंह साहब ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा ।
मालती मुस्कुराते हुए टी वी के सामने सोफे पर जा बैठी और सिंह साहब किचन की ओर चल पड़े थे।
थोड़ी देर बाद पिंकी आंखें मलते हुए लिविंग रूम में पहुंची और मम्मी मेरी स्लीपर नहीं मिल रहीं...
मम्मी(मुस्कुरा कर):- अपने पापा से पूछो बेटा,
आज पापा बताएंगे।
पिंकी:- मम्मी ढूंढ़ दो ना प्लीज़, मुझे वॉशरूम जाना है।
मम्मी:- मैंने कहा ना आज पापा ढूंढेंगे।
पिंकी :-आप रहने दो , मैं अपने आप देख लूंगी।
सिंह साहब रसोई में गैस पर दूध उबलने रख कर चावल सर्च अभियान में मशगूल थे कि अचानक दूध उफनकर झरने की मानिंद भगोने से प्रस्थान कर गया ।
हड़बड़ाकर दूध को बचाने के लिए जैसे ही सिंह साहब गैस की ओर लपके तो चावल का डिब्बा जमीन पर जा गिरा।
हालांकि कुल मात्रा का आधा दूध तो बच गया था लेकिन फर्श पर चावल बिखर चुके थे।
अब फर्श पर दूध और चावल मिल चुके थे। हालांकि कुल मात्रा के तीन चौथाई चावल डिब्बे में सुरक्षित रख दिए गए थे लेकिन फर्श पर पड़े गंदे दूध और चावल को साफ करने के लिए पोछा लेने किचन से बाहर निकले तो पैर फिसल गया और फिर गिरते समय संभलने के चक्कर में उनका हाथ ऊपर कुछ बर्तनों पर लगा और गिरने के साथ साथ ऊपर से कुछ बर्तन भी उनके ऊपर गिर पड़े जिसमें एक चीनी मिट्टी का कप भी गिरकर चूर चूर हो चुका था।
किचन में हुई तेज आवाज़ को सुनकर पिंकी, बिट्टू और मालती किचन की ओर लपके तो नज़ारा देख कर हैरान रह गए।
फर्श पर पड़े हुए सभी सिंह साहब एक चित्त हुए पहलवान की तरह पड़े हुए ऊपर उठने के लिए हाथ आगे बढ़ा रहे थे।
उनके चेहरे पर हार, शर्मिंदगी और दर्द की मिश्रित रेखाएं उभर आईं थीं। बच्चों ने सहारा दिया तब खड़े हुए ।
मालती :- हे! भगवान क्या हाल कर दिया मेरी किचन का।
मेरी ही मति मारी गई थी जो वहां बैठ गईं। चलो हटो यहां से, मेरा एक काम और बढ़ा दिया।
सिंह साहब:- अरे ,बिट्टू ज़रा आयोडेक्स लाना ।
बिट्टू:- (पापा के बाएं हाथ पर आयोडेक्स लगाते हुए) पापा मैंने कहा था ना पंगा मत लो।
सिंह साहब:- हां ठीक है बेटा, जा कमरे में से एक गरम पट्टी ले कर आ।
किचन को व्यवस्थित करके एक गिलास दूध में हल्दी मिलाकर सिंह साहब को देते हुए मालती ने व्यंग्य किया।
मालती:-और राजा साहब ! बाएं हाथ में क्या हुआ दिखाना।
( देखने पर पता चला साहब की तर्जनी उंगली सूज गई थी)
मुस्कुराते हुए मालती ने पूछा :- इस बाएं हाथ के खेल से आप क्या समझते हैं??
सभी एक साथ बोलते हैं , " जिसका काम उसी को साजे...........
मालती:- अब दूध खत्म हो गया है, जाकर ले आना ।
सिंह साहब:- ओके बॉस।