जिम्मेदारी
जिम्मेदारी
खुले आसमान के नीचे छत पर तारे गिनते हुए भूमिका का मन बैचैन था। किसी को उसके आँसू नही दिखाई दिए। उसके मन की सिसकियों की आवाज उसके अपने ही अनसुनी कर रहे थे। उसके अकेलेपन को समझने वाली वह खुद ही अपने साथ बात करती जा रही थी।
बचपन से ही उसे अपनी भावनाओं को जाहिर करना नहीं आया क्योंकि इन सब बातों के लिए वह बहुत छोटी थी। घर में सबको आते जाते देख उसका मन दुःख से भर जाता था कि क्यों उसे ही कही आने जाने की इजाजत नहीं है। उसके पिता उसकी छोटी बहन को घुमाने ले जाया करते थे लेकिन उसे नही क्योंकि वह अब बड़ी हो चुकी थी।
आज फिर उसे बड़ा बना दिया गया जिम्मेदारी का हवाला देकर। आज फिर उसके सपनों की पालकी में उसकी छोटी बहन अपना नया सफर शुरू करने जा रही थी। आज फिर वो बड़ी हो गई थी अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए।