Tejaswani kumari

Tragedy

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Tejaswani kumari

Tragedy

"काश मैं लौट जाती "

"काश मैं लौट जाती "

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आज जैसे ही स्कूल में आखिरी घंटी बजी बच्चों में खुशी की एक अलग ही लहर थी।मैं भी अपना बस्ता उठा खुशी से घर की और दौडी क्योंकि हर साल की तरह मैं अपने पूरे परिवार के साथ गर्मियों छुट्टियाँ बिताने के लिए एक सफर पर जा रहीं थी।सफर मेरी पसंदीदा जगह मेरे गाँव का।हम सभी शाम तक घर पहुँच गये सभी बहुत खुश थे हमारे आने की खबर सुन दादी दौडते हुए आयी और खुशी से हमें गले लगा लिया। वहाँ परिवार के सभी सदस्य थे लेकिन एक नहीं जिससे बाद में मिलने का वादा मै कर के आयी थी। मेरे दादा जी, उनका स्थान खाली देख मेरी आँखे भर आयी और  पछतावे के साथ ये था कि काश मै उस रोज लौट जाती।

ये कहानी है जब मैं दसवीं कक्षा में पढती थी। हर साल की तरह हम गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए गाँव गए थे।एक ऐसे मुसाफ़िर की तरह जो अपने डेरे पर एक बार जाता। दादा जी के साथ हम पूरे दिन अपना वक्त बिताते थे। रोज सुबह से शाम तक उनके साथ समय व्यतीत करते। खेतों में घूमते और हर चीज को बड़ी दिलचस्पी से जानते। हरियाली से भरे गांव में हर सुबह में एक अलग ही ताजगी होती थी। हर रोज  दोपहर में दादा जी सतुआ खाया करते और उसे सानकर एक एक हिस्सा हम भाई बहनों को दे देते थे। उनके साथ गाय का दूध निकालना, धान रोपनी, उनके गम्छे में बंधे प्रसाद को खाते थे। रोज रात को उनके साथ तारों से भरे आसमान के नीचे एक साथ खाना खाया करते थे और ढेर सारी बातें करते थे। धीरे धीरे समय खत्म होने लगा। हम मुसाफ़िरों के वापस लौटने का वक्त आ गया था। लेकिन इस बार का एहसास कुछ अलग था हमारे घर से निकलते समय दादी की आंखों में आंसू भरे थे मानो वो रोकना चाहती हो लेकिन दादा जी वहाँ नहीं थे। रास्ते में जब हम बगीचे के पास से गुजर रहें थे तब पापा ने बगीचे के एक पेड की ओर इशारा किया मैनें वहाँ दादा जी को एक पेड़ के नीचे अकेले देखा। वह हमारे जाने से बहुत दुखी थे। पापा ने कहा जाओ उनसे मिल आओ लेकिन हमे देर हो रही थी तो मम्मी ने कहा अब अगली बार मिल लेना मैंने नम आँखों से उन्हें देखा दिल से आवाज आयीं कि मिल लेना चाहिए लेकिन मैं नहीं गयी। बोर्ड परीक्षा की तैयारी में मै वापस आकर उलझ गयी। वह बीमार थे किंतु परिक्षाओं के कारण मै गाँव ना जा सकी और जब गईं तो उनकी जगह खाली थी। वो वृक्ष शांत था। मेरी नजरें उन्हें तलाश रही थी। तारों से भरे आसमान के नीचे इस बार एक थाली कम थी। मेरे दिल में उस बगीचे को देख एक ही बात याद आती है कि काश मैं उस रोज लौट जाती। 

                     


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