कैकेयी
कैकेयी
माँ...! कैकेयी कौन थीं, क्या वो इतनी बुरी थीं कि कोई माँ अपनी बेटी का नाम कैकेयी नहीं रखती..?
बताओ ना माँ, मुझे जानना है उनके बारे में, आज क्लास में हिन्दी के सर भगवान राम के विषय में बता रहे थें, उन्होंने ही बताया कि कैकेयी के वरदान के फलस्वरूप राम को वनवास मिला।
सच मे माँ..? क्या इतनी गंदी थीं उनकी माँ...?
क्लास 5 में पढ़ने वाली कान्वेंट स्कूल की भूमिका के जिज्ञासा को देखकर अनुभा को प्रसन्नता हुई और उसने भूमिका की जिज्ञासा को शांत करते हुए कहा... ;
नहीं बेटा ऐसा नहीं है, माँ अपने बच्चों की दुश्मन नहीं होती है। चलो तुमको माता कैकेयी और भगवान राम के बारे में बताती हूँ। कहते हुए अनुभा ने जिज्ञासा को बताया, 'अयोध्या के राजा दशरथ के तीन रानियाँ थी, बड़ी रानी माता कौशल्या उनके ज्येष्ठ पुत्र राम की माता थीं, मझली रानी माता कैकेयी भैया भरत की माता थीं और सबसे छोटी रानी माता सुमित्रा भैया लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता थीं। इन भाईयों में बहुत प्रेम था, सभी माताएँ अपने अपने पुत्रों पर बहुत स्नेह बरसाती थीं, किंतु माता कैकेयी भैया भरत से ज्यादा राम को प्यार करती थीं, वह राम को अपने प्राणो से भी ज्यादा स्नेह करती, राम की नींद से जगती और उन्हीं के नींद से सोती थीं' ।
पर माँ, जब वो राम को इतना सारा प्यार करती थी तो फिर उनको वन में क्यों भेज दिया और इतनी बुरी कैसे बन गई..? भूमिका ने माँ की बात को काटते हुए सवाल किया।
वही तो मैं बता रही थी, और तुमने बताने नहीं दिया, कहते हुए अनुभा ह्ह्ह् करके हँस पड़ती है। हाँ तो मैं कह रही थी कि सभी भाईयों में बहुत प्रेम था, और माता कैकेयी की तो जान थे राम जी। चारो भाईयों की शिक्षा दीक्षा एक साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम में उनके सानिध्य में संपन्न हुआ। यहाँ तक कि चारों भाईयों का विवाह भी एक साथ , एक ही घर में हुआ।मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री माता सीता से दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र भगवान राम से और भईया लखन का विवाह माता सीता छोटी बहन उर्मिला से एवं भैया भरत और शत्रुधन का विवाह जनक जी के छोटे भाई की बेटी मांडवी और सुकीर्ति के साथ हुआ।
सभी लोग बहुत ख़ुश थे, महल के सभी कर्मचारी, राजा दशरथ और उनकी रानियाँ,यहाँ तक कि सारी प्रजा भी ख़ुश थी, रोज उत्सव होता रोज बधाईयाँ आती। सब कुछ तो ठीक चल रहा था, कि एक दिन श्री राम के पिता अयोध्या नरेश दशरथ ने सोचा, 'अब मैं वृद्ध हो गया हूँ, अब मुझे राज्य का कार्यभार ज्येष्ठ पुत्र को सौंप देना चाहिए, फिर राम तो सभी के प्रिय हैं और प्रजा भी यही चाहती है, यह सोचकर उन्होंने मंत्री सुमंत जी और अन्य दरबारियों के समक्ष अपनी इच्छा को प्रकट किया, सभी प्रसन्न हुए और उनके इस इच्छा का सम्मान किया '। इस बात की मुनादी पिटवा दी गई की अब अयोध्या के राजा राम होंगे और शीघ्र ही उनका राज्याभिषेक किया जायेगा।
मुनादी...? माँ ये मुनादी क्या होता है भूमिका ने अनुभा को रोकते हुए पूछा।
बेटा जब किसी बात की घोषणा ढोल बजाकर और भोपा से किया जाता है ('भोपा मतलब लाउड स्पीकर' , इससे पहले की भूमिका भोपा का मतलब पूछती अनुभा ने उसे पहले ही बता दिया) उसे ही मुनादी कहते हैं।
जब इस बात का पता राम जी को चला तब वो घबरा गये, अनुभा ने बताया।
क्यों...? चिंतित क्यों हुए..? उन्हें तो ख़ुश होना चाहिए कि वो अब राजा हो जायेंगे..! फिर किस बात की चिंता..? भूमिका ने अपनी माँ से पूछा।
हाँ..! ख़ुश तो होना चाहिये था पर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वे इस बात से परेशान थें कि अगर वे राजा हो गये तो फिर अत्याचारी रावण को कौन मारेगा और उसके अत्याचारों से यक्षों गंधर्वों और ऋषियों मुनियों को कौन मुक्त करायेगा...?
रावण..! माँ, 'ये रावण कौन था'..? भूमिका ने फिर सवाल किया।
रावण लंका का राजा और त्रिलोक विजेता था, उसे प्रभु राम के अलावा कोई और नहीं मार सकता था। अनुभा ने भूमिका को बताया।
ओऽऽऽ..! ये बात है। पर माँ..! उसके लिये उनको वन जाने की क्या जरूरत है, वो तो राजा बनकर भी उसे मार सकते थे फिर...? भूमिका तपाक से बोल पड़ी।
हाँ..! पर ये अन्याय होता कोई भी राजा बेवजह किसी को दण्ड नहीं देता, फिर उन्हें तो मर्यादा (गौरव)का पालन करना था इसलिए। अनुभा ने भूमिका को बताया।
हाँ तो इसी चिंता में वे अपनी मझली माँ के पास गये और उनसे बोले, 'माँ मैं बहुत दुविधा में हूँ और आप ही मुझे इस दुविधा से निकाल सकती हैं, मैं रानी माँ (माता कौशल्या) से नहीं कह सकता, आप जानती हैं वे मानेंगी नहीं'।
दुविधा..? कैसी दुविधा प्रिय पुत्र..! माता कैकेयी ने राम जी से पूछा
हाँ माँ दुविधा..! पिता श्री मुझे राजगद्दी सौपना चाहते हैं और मैं वन जाना चाहता हूँ। श्री राम ने माता कैकेयी से कहा।
पर क्यों वत्स...! माता कैकेयी जानती राम कोई भी बात अकारण नहीं कहते हैं।
तब प्रभु राम ने कहा, ' लंका का राजा रावण बहुत ही दुराचारी और अत्याचारी है उससे ना केवल मानव अपितु देवलोक में भी सभी त्रस्त हैं निर्दोष प्रजा को मारकर उनका सबकुछ लूट लेता है उनके स्त्री और बच्चों को बन्दी बनाकर उनके साथ भी दुर्वव्यावाहर करता है कितनी ही माताएँ विधवा हो रही हैं और कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं'।
ओह..! तो पुत्र तुम उसको क्यों नहीं मारते..?
यही तो दुविधा है माँ..! मैं राजगद्दी के मर्यादा का उलंघन नहीं करना चाहता हूँ और बिना वन गमन के उसे मारना संभव नहीं है। मैं आप से कुछ माँगना चाहता हूँ, बोलिये माँ क्या आप मुझे वो दे सकती हैं जो मैं आपसे चाहता हूँ..?
पुत्र तुम्हारे लिये तो मेरे प्राण भी हाजिर है, बोलो बेटा मैं तुमको क्या दे सकती हूँ..? कैकेयी ने राम से पूछा।
तब प्रभु राम ने माता कैकेयी से कहा, 'माँ जो मैं आप से माँगने जा रहा हूँ उससे जगत आपको गलत समझेगा, लोग आपको भला बुरा कहेंगे और हो सकता है इससे आपके माँग का सिंदूर भी मिट जाये और भ्राता भरत भी आपको कुल कलंकिनी समझे'।
राम माता से बड़े कातर भाव से बोले जा रहे थें। तब माता कैकेयी ने राम से कहा, 'पुत्र यदि मेरे माँग के सिंदूर मिटने से लाखों स्त्रियों के माँग का सिंदूर बचाया जा सकता है, त्रिलोक को न्याय मिल सकता है तो मुझे ये कलंक अपने माथे लेना मंजूर है। तुम कहो तो सही मुझे क्या करना है..?
तब श्री राम ने माता से कहा, 'माँ आप पिता श्री से मेरे लिए चौदह वर्ष का वनवास और भ्राता भरत के लिए राजगद्दी माँग लीजिए । इस प्रकार से मेरा दशानन को मारने का काम आसान हो जायेगा और मर्यादा का उल्लंघन भी नहीं होगा'।
इस प्रकार माता कैकेयी ने वही किया जो राम चाहते थें। उन्होंने राजा दशरथ से राम को वनवास और भरत के लिए राजगद्दी माँगा।वही हुआ जिसका उनको भय था, किंतु वे तनिक भी विचलित नहीं हुई और अपने जिद्द पर अड़ी रही, अन्त में श्री राम माता सीता और भैया लक्ष्मण को वनवास को जाना पड़ा, और राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिये।
उन्होंने राजा राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया, यह जानते हुए भी कि संसार उनके ऊपर थूकेगा फिर भी उन्होंने वैसा ही किया जैसा राम चाहते थें । तुम बताओ वो बुरा कैसे हो सकता है..?
बेटा माता कैकेयी निंदनीय नहीं पूज्यनीय हैं बेवकूफ हैं वे लोग जो उनको गलत कहते हैं।