Dharmendra Mishra

Tragedy

4.7  

Dharmendra Mishra

Tragedy

कमल का फूल और भौंरा

कमल का फूल और भौंरा

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बहुत समय पहले की तो नहीं, हाल फिलहाल किसी कालखंड में एक दौर की बात हैं। मोदी नाम का एक सयाना, कुटिल, चतुर, चालाक भौरा था । वह अपनी चिकनी चुपड़ी झुरमुराहट, सुईं-सुईं, नाक से निकलती ध्वनि से सब का मन मोह लेता रहा । झूठ तो शहद की तरह चाटता जिस छत्ते पे बैठ जाए उसे पूरी तरह से रस निचोड़ लेता तभी वहां से उठता। खा-पी कर अच्छा मोटा तगड़ा हो गया था। छोटे -मोटे कीट-पतंगे तो उसे देख कर ही दूर भागते। एक दिवस वो मोदी नाम का भौंरा उड़ते -उड़ते एक नदी में स्थित कमल के फूल के पास जा पहुंचा ,सुईं -सुईं करते हुए उसका मन मोहने लगा " कमल भाई! मुझे भूंख बड़ी जोरों से लगी है, तुम्हारा रस थोड़ा पी लूँ ?"

कमल के फूल को उस भौरें की सुन्दर -मनमोहक बातें सुन कर अपनापन सा लगा " ठीक है पी लो लेकिन शाम होने से पूर्व ही तुम चले जाना। "

मोदी भौरा, प्रसन्न होते हुए " हाँ ,हाँ ,क्यों नहीं। " कहते हुए उस कमल के फूल पे जा बैठा।

 ।दिन भर आनंद-मंगल मनाता रहा, रसास्वादन मौज-मस्ती करता रहा । शाम होने ही वाला था सूर्यास्त से पूर्व कमल के फूल ने उस मोदी भौंरे को समझाया "भाई मेरे विश्राम का समय हो गया है ,अब तुम्हें जाना चाहिए, ज्यादा लालच मत करो, जितना रस लेना था ले चुके। "

मोदी भौरा, अहंकार के वसीभूत होकर जोर -जोर से हँसने लगा " अरे अभी कहाँ,,, मेरा मन,,, मेरा मन जल्दी नहीं भरता,,,जब तक तुम्हें पूरा न निचोड़ लूँ ,,,मैं यहाँ से जाने वाला नहीं। "

कमल के फूल ने भौरें को बहुत समझाया लेकिन वो सुनने को कुछ तैयार ही नहीं था, कमल के फूल को झिड़क दिया “मैं किसी नहीं सुनता… सिर्फ सुनाता हूँ…नहीं जाता…क्या कर लोगे ? "

कमल के फूल को लगा अब इस मूढ़ से बहस करने का कोई फायदा नहीं निराश मन से बस इतना

ही कहा "ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा। "रात्रि होने पर वो कमल का फूल बंद हो गया। मोदी भौरा ,रात्रि भर बौराया रहा, यही सोचता रहा; सुबह होने पर फूल फिर खिलेगा,फिर से वो उसी प्रकार से आनंद मंगल मनाएगा ।

सुबह होने पर उस नदी में एक उन्मत्त हांथी घुस आया, उथल पुथल मचाते हुए कमल के फूल को ही उखाड़ दिया । कमल के फूल के साथ वो मोदी भौरा भी जल में डूबने लगा ।

डूबते -डूबते कमल के फूल ने उस मोदी भौंरें से कहा "

“इस आशा रुपी नदी में तृष्णा रुपी लहरें है जिस में फस कर हम हिल्कोरे खाते हैं ।

 एक दिन शत्रु रुपी काल आता है और सारे सपने तोड़ जाता है। फिर भी स्वार्थ रुपी प्रमाद में फस कर व्यर्थ के अहंकार से घिरे रहते हैं ।"

तब मोदी भौरें ने कमल के फूल से कहा " फूल भाई ! ये बात तुम मुझे पहले ही बताते तो तुम्हारे चक्कर में क्यों फसता। "

कमल का फूल हँसते हुए " भूंख तुम्हें लगी थी, मुझे भी तुम्हारा साथ पसंद था लेकिन तुम लालच में इतने अंधे हो चुके थे कि कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे।"

ये कहते हुए दोनों जलमंग्न हो गए।

                            


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