Naresh Verma

Comedy

4.5  

Naresh Verma

Comedy

कमल कुंज का ईमानदार

कमल कुंज का ईमानदार

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शांति विहार- एक मध्यवर्गीय मोहल्ला।मोहल्ले का कोई ज़्यादा पुराना इतिहास नहीं है।इस मोहल्ले केशांति -विहार नाम के पीछे कोई तार्किक कारण नज़र नहीं आता।न तो इस क्षेत्र में शांति नाम की किसीस्त्री का कोई शहीदी इतिहास है और न ही इस मोहल्ले के निवासियों का शांति-प्रियता से दूर तक काकोई नाता है।इस के विपरीत, पानी की निकासी को लेकर ,कूढ़ा फेंकने को लेकर,बाउंड्री वॉल को लेकरअक्सर अशांति ही ज़्यादा देखने में आती है।कई बार तो इन छोटे मसलों पर बंदूक़ एवं कट्टे तक निकलनेके साक्ष्य रहे हैं।संभवतः मोहल्ले का कोई नाम तो रखना ही था।अत: शांति-विहार नाम रख दिया गया।वैसे भी नाम से कोई लेना-देना नहीं होता।कहने को तो यह प्रदेश ऊर्जा प्रदेश कहलाता है, पर बिजली काहाल शांति विहार वासियों से पूछिए-घंटों ऊर्जा प्रदेश की ऊर्जा ग़ायब रहती है।

शांति विहार की लेन पाँच का २३ नंबर का मकान हमारी कहानी का केन्द्र है।इस मकान के गेट परसंगमरमर की बड़ी सी नेम प्लेट लगी है।नेम प्लेट के उपर जी॰एल॰गुप्ता तथा नीचे “कमल कुंज “ खुदाहै।संगमरमर की इस नेम प्लेट पर कहीं-कहीं कुछ कालिख नज़र आती है।इस कालिख का संबंध कुछदिन पहले गुज़री होली त्योहार से है।

होली पर कुछ मनचलों ने गुप्ता जी की संगमरमरी नेम प्लेट पर कोलतार पोत दिया था।होली परकोलतार एवं कीचड़ आदि लगा देने की परंपरा तो पुरातन से चली आ रही है।किंतु प्रायः यह काली क्रीमचेहरों पर पोती जाती रही है, नेम प्लेट पर नहीं।किंतु यदि किसी घर जवान कन्या का वास होता है, तोकन्या के चेहरे पर लगाने की हसरत पूरी न होने पर मनचले प्रतीकात्मक स्वरूप नेम प्लेट को ही रंग देते हैं।कारण जो भी रहा हो , अगले दिन गुप्ता जी उन अज्ञात मनचलों की शान में भारी-भारी गालियों कीबौछार करते हुए कोलतार की परत छुड़ाने में प्रयत्नशील रहे हैं।बहुत घिसाई और सफ़ाई के बाद भी कुछकालिख “कमल कुंज “ के आस-पास रह ही गई।कहते हैं कि बुराई में भी कोई अच्छाई छुपी रहती है।कमल कुंज के आस-पास रह गई यह कालिख अहसास देती है कि यह कीचड़ का प्रतीक है जिसमें कमलखिला है।

कमल कुंज नाम होने से यह अहसास होता है कि संभवतः कोठी के लॉन में कोई छोटा-मोटा तालाबहोगा जिसमें कमल फूल खिलते होंगे।शांति विहार कालोनी में बिजली के साथ-साथ पानी की भी बहुतक़िल्लत है।प्रायः बिना नोटिस के पानी की टोंटियाँ कई कई दिन तक सूंऽऽसूंऽऽ की आवाज़ निकालतीहैं ,पानी की धार नहीं।इन परिस्थितियों में लॉन में तालाब की कल्पना बेमानी है।श्री जी॰एल॰गुप्ताअर्थात् गनेशी लाल गुप्ता जी की धर्मपत्नी का नाम है कमला देवी गुप्ता।कमला नाम से ही कोठी का नामकमल-कुंज रखा गया है।

नामों की भी अजब महिमा है।गनेशी लाल जी का असल नाम जी॰एल में ऐसा गुम हुआ कि कालोनी मेंशायद ही किसी को उनके असल नाम गनेशी का ज्ञान हो।स्कूल के सर्टिफिकेट या उनके आफिस कीसर्विस बुक में ही गनेशी लाल को खोजा जा सकता है।कालोनी में वह गुप्ता जी नाम से ही जाने जाते हैं।वैसे तो सिद्धिविनायक गणेश जी के नाम पर गनेशी नाम होने से प्रसन्न होना चाहिए, किंतु गुप्ता जी इसनाम को ओल्ड फ़ैशन का मान कर इससे दूरी बना के रखते हैं।

चलिए, गुप्ता जी की भावना का सम्मान करते हुए हम भी अपनी कहानी में उन्हें गनेशी लाल के स्थान परगुप्ता जी नाम से ही संबोधित करेंगे।गुप्ता जी की उम्र ५५ वर्ष है।वह पी॰ डब्लू॰डी के दफ़्तर में बड़े बाबूके सम्मानित पद पर कार्यरत हैं।उम्र की इस डबल फ़ाइव मंज़िल तक आते-आते गुप्ता जी कईडिपार्टमेंटल पदोन्नतियाँ पाने में सफल रहे थे।२० वर्ष की उम्र में वह अर्दली के पद पर लगे थे।उम्र के उसकाल में वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से बहुत प्रभावित थे।कड़ी मेहनत,पक्का इरादा औरदूरदर्शिता वाले मंत्र को उन्होंने अपने जीवन में पूर्णतया उतार लिया था।वह अपने अफ़सर ही नहीं,अफ़सर की पत्नी को भी प्रसन्न रखने में कड़ी मेहनत करते।अफ़सर के घर की सब्ज़ी-भांजी की ख़रीदारीसे लेकर गैस बुकिंग तक के सब कामों में यह कड़ी मेहनत परिलक्षित होती।भले ही कोई इस कड़ी मेहनतको मक्खनवाजी जैसे घटिया संबोधनों से उन्हें हताश करने का प्रयास करे किंतु वह अपने इरादों में पक्केथे।अंत में उनकी दूरदर्शिता ही थी जो वह अंततः बड़े बाबू की कुर्सी तक जा पहुँचे।

प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं।गुप्ता जी भी मनुष्य थे , उनमें भी एक कमजोरी थी-वह थोड़ा लंगोट के कच्चे थे।गुप्ता जी की इस कमजोरी से उनके आफिस की स्टैनो-टाइपिस्ट मिसडिसूज़ा भली-भाँति परिचित थीं।मिस डिसूज़ा को जब भी बड़े बाबू से कोई काम निकलवाना होता तो वहउनकी मेज़ पर इतना झुक कर बात करतीं कि बहुत कुछ प्रदर्शित हो जाता।गुप्ता जी से न करते नहींबनता था।इन छोटी-मोटी कमियों के अतिरिक्त गुप्ता जी हंसमुख,कर्तव्यनिष्ठ तथा ईमानदार छवि के बड़ेबाबू थे।

आज छुट्टी का दिन है।प्रांत: के नौ बज रहे हैं।कमल-कुंज निवास में गुप्ता जी सुबह की चाय के बाददुनिया-जहाँन की खबरों के लिए समाचारपत्र अध्ययन में व्यस्त हैं।छींटदार लुँगी और धारियों वालीमटमैली बनियान जो उनकी तोंद पर ऊपर तक सरक गई है ,पहने गुप्ता जी बड़े बाबू कम मुजाहिद्दीनज़्यादा लग रहे हैं।

 ब्रेकफास्ट और लंच की मिली-जुली देसी कल्चर ब्रंच कहलाती है।आज ब्रंच में पाव-भाजी का मेन्यू है।अत:कमलाजी को सब्ज़ी वाले ठेले का बेसब्री से इंतज़ार है।हल्दी और तेल के दागों वाली नाइटी पहनेवह अपनी व्यस्तता के बीच झाड़ू-पोंछा लगाती रज्जो पर सतर्क निगरानी रखे हैं।

 रज्जो! उम्र १९ साल।पठानी सलवार पर चमकदार लाल बूटों वाली कसी क़मीज़ से उसका गदरायाजिस्म विद्रोह सा करता प्रतीत हो रहा है।रज्जो घर में आते ही सबसे पहले पूछती है कि बीबी जी टैमक्या है।इसके बाद अपनी चुन्नी उतार कर कुर्सी पर टाँगती और लग जाती है झाड़ू-पोंछे के काम पर।पोंछा लगाते हुए वह कोई चलताऊ फिल्मी गाना भी गुनगुनाती रहती है।रज्जो की इन अदाओं से कमलाजी सदैव आशंकित सी रहती हैं।जैसे फ़ौज में किसी रंगरूट को बंदूक़ ऊपर उठाकर मैदान का चक्करलगाने की सज़ा देने वाला सूबेदार निगरानी के लिए रंगरूट के साथ मैदान का चक्कर लगाता है, वैसे हीकमला भी सूबेदार की भूमिका में पोंछा लगातीं रज्जो के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती रहती हैं।रज्जो पर नज़रके साथ-साथ पेपर पढ़ते गुप्ता जी की नाक पर सरक आए चश्मे के ऐंगल पर भी कमला जी नज़र रखतीहैं।गुप्ता जी को भी आभास रहता है कि उन पर नज़र रखी जा रही है।पर गुप्ता जी भी क्या करें ,वहपोंछा लगने वाले इस रोमांटिक दृश्य को चोरी-छुपे देखने के लोभ का संवरण नहीं कर पाते।पोंछा लगतारहता है और साथ-साथ गुप्ता जी एवं कमला जी के बीच यह चोर-सिपाही का खेल भी।

 इसी बीच “आलू-टमाटर-तोरी-घुंईया ले लो “ की आवाज़ के साथ ठेले की खड़खड़ , कमल कुंज केगेट पर आकर रुकती है।कमला के संवेदनशील कान मस्तिष्क को संदेश प्रेषित करते हैं और तत्कालगुप्ता जी को आदेश प्रसारित कर दिया जाता है -“ क्या सुबह से बैठे अख़बार चाट रहे हैं।उठिए जाकरसब्ज़ी ख़रीद लाइये।”

 अख़बार की ओट से पोंछा लगाने वाली को ताकने के कृत्य में अचानक पड़े-“ व्यवधान से खेद है “ वालीमुद्रा में आए गुप्ता जी अचकचा से गए।

“ बुत से बने क्या देख रहे हो ? जल्दी कीजिए नहीं तो ठेला चला जाएगा।लौकी ,आलू और टमाटर लेआइए।धनिया माँगना मत भूलिएगा।”-आदेश का पुनः प्रसारण।

मनुष्य के दो बॉस होते हैं।एक आफिस का और एक घर का।दोनों बॉसों को साधने की कला आनासुखी जीवन का आधार है।हमारे गुप्ता जी इस कला के मर्मज्ञ हैं।तुरंत-“हुक्म की तामील हो “ वालेअंदाज़ में उठ खड़े हो गए।बड़ी-बड़ी ख़रीददारियाँ कर लो- कोई मोल-भाव नहीं-फ़िक्स दाम।किंतु सब्ज़ी-भांजी की ख़रीदारी में यदि मोल-भाव न हो तो ख़रीदारी में संतुष्टि नहीं होती।

मोहल्ले में प्रतिदिन आने वाले बिहारी रामदीन और कमल कुंज के गुप्ता जी के बीच व्यापारिक दाँव-पेंचोंके समापन के बाद सब्ज़ी तुल गई।सब्ज़ी की कुल ख़रीदारी का मूल्य बैठा ८० रुपये।गुप्ता जी ने १००रुपये का करारा नोट रामदीन को दिया।रामदीन ने नोट गल्ले में रखा और २०-२० के दो नोट गुप्ता जी कोलौटा दिये।गुप्ता जी चौंके।२० रुपये के एक नोट के स्थान पर रामदीन ने गलती से २० रुपये के दो नोटवापिस किए थे।मन में मंथन चलने लगा।एक मन कहता कि रख लो।यह रामदीन ही कौन सा ईमानदारहै।सब्ज़ी तोलते खूब डंडी मारता है।दूसरा मन कहता कि बेचारा ग़रीब आदमी है, गर्मी-सर्दी में ठेलाखींचता है।

अंततः गुप्ता जी के ज़मीर ने ज़ोर मारा ,उन्होंने रामदीन से कहा-“ अबे ऐसे सब्ज़ी बेचेगा तो कैसे चलेगा?”

 रामदीन ने अनभिज्ञता से कहा-“ क्या गलती हो गई बाबू जी ?”

 “ २० रुपये की जगह ४० रुपये लौटा रहा है “- गुप्ता जी ने अपनी ईमानदार छवि प्रदर्शित करते हुए कहा।

“अरे..रे..बाबू जी गलती हो गई।”-रामदीन ने कृतज्ञता से कहा।

किचन में सब्ज़ी रखते हुए अपने इस ईमानदार कृत्य का उल्लेख गुप्ता जी ने पत्नी से ऊँची आवाज़ मेंकिया जिससे पोंछा लगाती रज्जो भी सुन ले।

सुनकर रज्जो ने इठलाते हुए कहा-“ बाबू जी के दिल में ग़रीबों के लिए बड़ी दया-ममता है।”

 एक तो गुप्ता जी अपने आज के इस ईमानदार कृत्य से वैसे ही गौरवान्वित थे ,ऊपर से रज्जो द्वारा दिलऔर दया के मौखिक सर्टिफिकेट ने उन्हें रोमांचित कर दिया।किंतु रज्जो का यह कमेंट कमला जी कोनहीं सुहाया।उन्होंने पलटवार करते हुए कहा-“ क्या हल्का हाथ चला रही है, ज़रा रगड़ रगड़ कर हाथ चला।”

 ग़रीबों ( रज्जो) पर ज़ुल्म होते देख गुप्ता जी को तुलसीदास जी का दोहा याद हो आया -

 “नारी ना मोहे नारी के रूपा “

रंगमंच (कमल-कुंज) पर यह नाटक चल ही रहा था कि इतने में द्वार पर गुप्ता जी के लंगोटिया याररसिक लाल अचानक प्रकट हो गए।ग़रीबों पर होते ज़ुल्म से आहत गुप्ता जी के ह्रदय को रसिक लालको देखकर बड़ा सुकून मिला।

“ घर पर तो मिलती नहीं , यहाँ सुबह-सुबह निठल्ले चले आते हैं चाय पीने।”- कमला बड़बड़ा रही थीं।रज्जो मुस्करा रही थी।

 बैठक से गुप्ता और रसिक लाल की वार्ता की आवाज़ें बाहर आ रही थीं।पहले तो कुछ फुसफुसाहटभरी राज़दार अस्पष्ट आवाज़ें तरंगित हुईं।तत्पश्चात् वार्ता के सुर तेज हो गए।

“ देखिये इस आई॰पी॰एल से करोड़ों की कमाई हो रही है।फिर भी लालच का पेट नहीं भरा तो सट्टे कीकीचड़ में जा गिरे।”-रसिक लाल की आवाज़।इस पर गुप्ता जी बोले -“ यह सब पैसे वालों के चोंचले हैं।जितना ज़्यादा पैसा उतना ज़्यादा लालच। हम तो भइया ईमानदारी की रूखी-सूखी खाते हैं और मस्तरहते हैं।”

ईमानदारी की बात से गुप्ता जी को रामदीन वाली सुबह की घटना स्मरण हो आई।एक अच्छे श्रोता कोसामने पाकर गुप्ता जी ने २० रुपये वापिस कर देने वाला ईमानदारी एपिसोड सविस्तार रसिक लाल कोसुना दिया।

रसिक लाल गुप्ता जी की बात सुन अवश्य रहे थे, किंतु उनका ध्यान बाहर रसोई घर पर ही लगा था किअब तक चाय का प्याला क्यों नहीं आया……..

 मंगलवार, मई की पहली तारीख़।मज़दूर दिवस और हनुमान दिवस साथ-साथ।आज गुप्ता जी काअवकाश है।कमला गुप्ता को शाम ३ बजे मोहल्ले की कीर्तन मंडली द्वारा संचालित कीर्तन, जो श्रीमतीभल्ला के यहाँ है, में जाना है।शांति विहार में सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यक्रमों की कोई संस्था नहींथी।किंतु महिला कीर्तन मंडली के कार्यक्रम निर्बाध गति से चलते रहते हैं।लोकतांत्रिक तरीक़े से कीर्तनमंडली के चुनाव भी वर्ष में एक बार संपन्न होते हैं।कीर्तन मंडली में आरती के बाद चढ़ावे में चढ़ा रुपयासदैव से विवादास्पद विषय रहा है।किंतु मोहल्ले की दबंग महिलाओं के गुट के एकाधिकार से यह विषयज़्यादा तूल नहीं पकड़ पाता था।

कीर्तन की आरती समाप्ति के साथ ही भक्ति-रस का चैनल ,चुग़ली चैनल में शिफ़्ट हो जाता।इस चैनलकी मनोरंजकता ही वह चटपटा मसाला था जिसने कीर्तन मंडली की जीवंतता बनाये रखी थी।श्रीमतीभल्ला के यहाँ ढोलक,मंजीरों एवं खड़ताल की ध्वनियों के बीच देवी माँ के भजनों के स्वर गूँज रहे थे।ढोलक की थाप की गूँज गुप्ता जी के घर तक पहुँच रही थी।नेपथ्य से आते ढोलक के स्वरों के साथरसोई से बर्तनों के खनकने के स्वर घुल रहे थे।रज्जो बर्तन करने आई थी।आज घर में रज्जो एवं गुप्ताजी के अतिरिक्त कोई नहीं था।

वैसे तो इस समय तक गुप्ता जी की लड़की सुमन स्कूल से घर आ जाती थी।किंतु आज सुमन कह करगई थी कि वह स्कूल के बाद अपनी सहेली के घर जाएगी।गुप्ता जी के रसिक मन को रसोई से आतेबर्तनों के स्वर रोमांचित कर रहे थे।अपने कमरे में बैठे गुप्ता जी की आँखों में रह-रह कर रज्जो का चंपईजिस्म हिलोरें मार रहा था।

गुप्ता जी हौले से उठे ,अपना तहमद ठीक किया और चल दिए रसोई की ओर।रसोई के बाहर कुर्सी पररज्जो की चुन्नी टंगी हुई थी।गुप्ता जी का ह्रदय ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।रसोई के दरवाज़े परअचानक गुप्ता जी को देख रज्जो चौंक गई, पर फिर अपनी खिल्लड़ मुस्कराहट के साथ बोली -“ कुछचाहिए बाबू जी?”

सूखते गले के साथ गुप्ता जी ने हकलाते हुए कहा-“ चाय की तलब लग रही है।आज अपने हाथ से बनाकर पिला दे।” रज्जो ने सिंक में हाथ धोए और गैस पर भगौना चढ़ा दिया।

जाते-जाते गुप्ता जी ने गहरी नज़रों से रज्जो को निहारा और बोले -“अपना कप भी बना लेना।दोनों कपलेकर मेरे कमरे में आ जा।”

श्रीमती भल्ला के यहाँ कीर्तन अपने चरम पर था।महिलाएँ झूम-झूम कर भक्ति रस में गोते लगा रहीं थीं।ढोलक की ढम-ढम ,मंजीरों की खन-खन और खड़ताल की छन-छन के बीच देवी मैया के जयकारे गूँजरहे थे।

किंतु कमला गुप्ता का मन भजनों में नहीं रम पा रहा था।वह थोड़ा सशंकित सी थीं।स्त्री की छठीइन्द्रिय उन्हें बार-बार सिग्नल दे रही थी। घर पर आज सुमन नहीं होगी।रज्जो काम करने आई होगी।गुप्ताजी की छुट्टी है।उन्होंने अक्सर गुप्ता जी की चोर नज़रों को रज्जो के जिस्म पर फिसलते महसूस किया है।कमला से अब एक पल भी रुका न गया।देवी माँ को शीश नवाया,हाथ जोड़े और चल पड़ीं कमल-कुंजकी ओर ……………

कमरे में बैठे गुप्ता जी रज्जो की प्रतीक्षा में अधीर हो रहे हैं।रसोई से बर्तन खड़कने की आवाज़, कप रखनेकी आवाज़,चाय लौटने की आवाज़ उन्हें रोमांचित कर रही है।धीरे-धीरे रसोई से आती पदचापों कीआवाज़ से उनकी साँस धौंकनीं-सी चलने लगी।पर यह क्या ? उत्तेजना से काँपता शरीर एकदम ठंडा पड़गया।दरवाज़े पर चाय का प्याला लिए श्रीमती कमला गुप्ता खड़ी थीं।

“ तुम कब आईं?”-गुप्ता जी ने थूक निगलते हुए पूछा।

“इस टाईम तुम्हें चाय की तलब लगती है।सोचा तुम्हें चाय बना कर दें आऊँ फिर आरती के समय चलीजाऊँगी “- कमला जी ने आज्ञाकारी पत्नी की भंगिमा ओढ़ते हुए कहा।

 रज्जो कुर्सी पर पड़ी चुन्नी गले में डाल जा चुकी थी।दूर भल्ला जी के यहाँ से ..ओऽम जय जगदीश हरे…..की आवाज़ें आ रही थीं। कमला जी संतुष्ट भाव से पति को चाय का प्याला पकड़ाकर आरती में शामिल होने जा चुकी थीं।गुप्ता जी के हाथ में पकड़े कप की चाय ठंडी पड़ चुकी थी।


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