Savita Negi

Tragedy Inspirational

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Savita Negi

Tragedy Inspirational

लिव इन

लिव इन

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उस दिन बाउजी का पथरी का ऑपरेशन हुआ था । जिस वजह से मैं भी हॉस्पिटल में ही था। कमरे में बैठे- बैठे उकता गया था ,पैरों में भी जकड़न सी हो रही थी । बाउजी के साथ मेरी पत्नी थी तो मैं हॉस्पिटल कॉरिडोर में ही टहलने लगा । दुःख और चिंता से भरे अनेकों चेहरे अपनी- अपनी कहानियों के साथ सफेद कोट वालो के पीछे-पीछे कुछ अच्छा सुनने की उम्मीद से घूम रहे थे।


उसी भीड़ में वो बुजुर्ग दम्पत्ति भी बदहवास से हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहलकदमी करते दिखे । उनकी चिंतित नजर बार -बार ऑपरेशन थिएटर की रेड लाइट पर टिक जाती । थोड़ा सुस्ताने के लिए मैं भी वहीं बेंच पर बैठ गया। उन्हें परेशान देख आख़िरकार मैंने उनकी परेशानी पूछ ही डाली। तो पता चला पिछले दो घंटे से उनकी बेटी सोनिया ऑपरेशन थिएटर के अंदर थी । वो अकेले ही थे , उनकी घबराहट को कोई भी महसूस कर सकता था । कभी वे बेटी की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करते , कभी ऑपरेशन थिएटर की लाइट की तरफ देखते , कभी घड़ी की तरफ।


शाम होते- होते उनकी बेटी सोनिया को भी बाउजी के बगल वाले रूम में शिफ्ट कर दिया । 


अब मैं उनकी काफी मदद कर देता था जैसे दवाई लाना या फिर बाहर के थोड़े बहुत काम। उनके बहुत मना करने के बाद भी मेरे घर से उनके लिए भी खाना आने लगा । वो लोग बुजुर्ग भी थे अकेले भी और बेटी को उनके साथ की जरूरत भी थी।

बातों ही बातों में मैंने उनसे पूछ लिया कि उनकी बेटी को क्या हुआ है? थोड़ी देर की चुप्पी के बाद सोनिया के पिता चश्मा उतार कर....


" बताने लायक वजह होती तो आज हम यूँ ऐसी परिस्थिति में अकेले न होते। बेटा तो अमेरिका में है परंतु यहां भी काफी रिश्तेदार हैं। परंतु हमारी बेटी की एक भूल की वजह से हमारे मुँह सिल गए हैं।तुमने बेटे से भी बढ़कर मदद की है हमारी , अपना दर्द तुमसे साझा अवश्य करूंगा। 


सोनू मुम्बई में एक बहुत अच्छी कंपनी में जॉब करती है।शुरू से ही बहुत महत्वकांशी रही है और पढ़ने में भी होशियार थी अपनी मंजिल तक पहुंच भी गयी। जब पहली बार मुम्बई गयी तो हर माता -पिता की तरह हमने भी उसे बहुत नसीहतें दी, ऐसे रहना वैसे रहना ।फोन पर जब भी बातें होती तब भी उसे बहुत समझाते रहते थे। अब जवान बेटी इतने बड़े शहर में अकेले रहेगी तो हम लोगो को कहाँ चैन होगा। बीच- बीच में हम लोग भी मिलने चले जाते थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था । समय बीतने लगा तो हम उस पर विवाह का दबाब बनाने लगे अब जिम्मेदारी तो थी ही न । परंतु वो कुछ -कुछ बहाने बनाकर हर बार टाल देती। 


जैसे- जैसे बच्चे बड़े होते हैं वो अपने ही माँ- बाप को पिछड़ा समझने लगते हैं। हम उनके लिए पुरानी सोच वाले हो जाते हैं। हमारी बातों में छुपी उनकी भलाई और चिंता उन्हें दिखाई ही नहीं देती। उनको लगता है दुनियादारी की समझ सिर्फ उनको है हमने तो ऐसे ही घर मे बैठे- बैठे बाल सफेद किये। उसकी उम्र भागती जा रही थी और हम दोनों लाचार ,मायूस हो गए। अब फोन पर भी वो चिढ़ जाती थी बहुत गुस्सा करने लगी थी।


अभी पिछले महीने उसके साथ काम करने वाली दिल्ली की एक लडक़ी हमसे मिलने आई थी और उसने जो बताया उसे सुनकर तो हमे बहुत गहरा सदमा लगा। सोनिया किसी राज नाम के लड़के के साथ पांच वर्षों से लिव इन में रह रही थी। वो कब ,कैसे इस दलदल में फंसी पता नहीं। अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला लेते हुए उसे थोड़ा सा भी डर नहीं लगा। इस बीच हम लोग कितनी बार उससे मिलने गए, कभी किसी प्रकार का शक नहीं हुआ।"


उनकी बातों से तुरन्त मेरा दिमाग मेरी सोसाइटी की तरफ घूम गया। मेरे आस पड़ोस में भी जॉब करने वाले बहुत से लड़के लड़कियां भी रेंट में है। एक कपल तो मेरे पड़ोस में ही है और जब उनके घर किसी एक के पेरेंट्स आते हैं तो दूसरा पार्टनर कुछ दिनों के लिए अपने दोस्त या सहेली के साथ शिफ्ट हो जाते हैं । मुझे संदेह बहुत बार हुआ परन्तु 

हमें टोकने और पूछने का अधिकार नहीं । कुछ इस तरह का नेटवर्क ये आज की पीढ़ी चलाती हैं अपने ही माता- पिता को धोखा देने के लिए ।


ऐसे में उनके पेरेंट्स को भी क्या पता चलेगा । देर रात तक पार्टी करना , ऊंची आवाज में म्यूजिक में थिरकना, दारू और सिगरेट के धुंए में साफ -सुथरे जीवन को दलदल में धकेलने का जो ये आधुनिकरण हुआ है वो बहुत ही भयावय है। शुरू- शुरू में इसका नशा चढ़कर बोलता होगा परन्तु उतरने के बाद जीवन शून्य से ज्यादा कुछ नहीं ।


सोनिया के पिता आगे बताने लगे....


"हम दोनों उसे तुरंत मिलने गए। इच्छा तो नहीं थी उसकी शक्ल देखने की परंतु माँ -बाप के दिल को ऐसी औलादे क्या समझेंगी? हमने सोचा था राज से विवाह की बात करेंगे ताकि समाज में हमारी इज्जत की जो बखिया उधेड़ रही थी बेटी , उनके विवाह से उस पर पैबंद लगाकर रफ़्फ़ु किया जा सके।

उसे देखकर कुछ नहीं बोला गया, उसकी हालत बहुत खराब थी। राज बाद बाद में उससे बहुत मार पीट करने लग गया था सोनिया उससे शादी करना चाह रही थी परंतु उसने मना कर दिया था। इतना ही नहीं राज उसे और मुम्बई छोड़कर जा चुका था। जोश- जोश में शुरू हुए इस रिश्ते के अंत मे हाथ लगा घोर डिप्रेशन, धोखा और शर्मिंदगी ।


हम उसे अपने साथ दिल्ली ले आये। वो खामोश हो गयी। रात भर रोती रहती। नींद के लिए नींद की गोलियां लेने लगी। और उस दिन उसने ओवर डोज़ लेली। समय रहते हम उसे जैसे तैसे हॉस्पिटल ले आये यहां इलाज के दौरान पता चला कि वो लगभग चार महीने की प्रग्नेंट थी, ये भी नहीं पता था हमे । इन सब से वो अजन्मा बच्चा जीवित नहीं रहा, उसी के लिए ऑपेरशन हुआ था। और इन्हीं सब जिम्मेदारियों को देखकर राज मुहँ फेर कर भाग गया। सोनिया शरीर से तो जल्दी ठीक हो जाएगी परंतु मस्तिष्क से.... बहुत समय लगेगा उसे उबरने में।


सोनिया के पिता भीगी आंखों को चश्मे से छुपाते हुए कमरे में चले गए।बच्चे जब माता -पिता का विस्वास तोडते हैं तो उस दुःख का अंदाज़ा लगाना भी कठिन है। बच्चे गलत रास्ते पर चले तो उंगलियां माता- पिता की परवरिश पर भी उठती है। बच्चो को आत्मनिर्भर भी बनाना है, घर से दूर भी भेजना पड़ता है। ऐसे में बच्चे स्वतंत्र होने का गलत अर्थ निकालकर गलत रास्ता चुन लें तो माता -पिता की क्या गलती।


मैं बैठे- बैठे सोचने लगा आज की युवा पीढ़ी ये क्यों नहीं समझती की जिस रिश्ते में किसी प्रकार का बंधन मान्य नहीं, कोई वचन नही , जो एक प्रथा नहीं एक व्यवस्था है ,

जहाँ स्वछ प्रेम नहीं सिर्फ़ भोग है, जो आधारहीन है उसकी नींव खिसकने में देर नही लगेगी तब उन्हें वही बूढ़े हाथ थामेंगे जिन्हें वो धोखा देते हैं , जिनके सिखाए संस्कार उन्हें दकियानूसी और ढोंग नजर आते हैं। सोशल मीडिया के अनेकों प्लेटफॉर्म में मैंने बहुत से बुद्धिजीवीयों को और कुछ सशक्तीकरण वाली महिलाओं को लिव इन की खूबियां बताते हुए भी सुना है। उन सब से मेरा एक ही प्रश्न है कि क्या वे सब लोग अपने बेटे, बेटियों को लिव इन में खुशी- खुशी रहने की इजाजत देंगें ? अगर नहीं तो इसको स्वीकार करने का ढोंग करके युवा पीढ़ी को भ्रमित न करें।


हम हमारी संस्कृति को त्यागकर विदेशों की संस्कृति को बिना उसके नुकसान जाने अपनाने में लगे हैं। हम न तो पूरी तरीके से विदेशी बन पाए न हम भारतीय रहे, और दो नाव में सवारी करने वाला डूबता जरूर है।

भले ही कुछ लोंगो को लिव इन सही लगे लेकिन मेरे लिए ये कोढ़ है जो धीरे -धीरे युवा पीढ़ी में फैलकर उसे बर्बाद कर रहा है।


कितने सुंदर रीति-रिवाज हैं हमारे। इस दलदल भरे आधुनिकरण से दूर जहाँ ईश्वर को साक्षी मानकर साफ स्वछ रिश्ते बनाये जाते हैं , जहाँ बड़े- बुजुर्गों के ढेरों आशीर्वाद होते हैं, जहाँ दो परिवारों की मजबूत नींव पर एक नया घरौंदा बुना जाता है, जहाँ वैदिक मंत्रों की गूँज से हवनकुंड को प्रज्वलित कर उसके फेरे लेते हुए एक दूसरे को जन्म जन्मान्तर के लिए अपना बनाया जाता है, जहाँ विदाई में कुछ भावुक पल होते है तो वहीं नए घर मे नए जीवन का जोर- शोर से स्वागत होता है, जो एक खूबसूरत प्रथा है जिसमें प्रेम भी है और जिम्मेदारियों को उठाने की असीम क्षमता भी।

धन्यवाद


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