Dr. Vijay Laxmi

Abstract Inspirational Others

4.5  

Dr. Vijay Laxmi

Abstract Inspirational Others

मन जवां उम्र निशां

मन जवां उम्र निशां

5 mins
29



यादगार अनुभव 

ऐसे जोड़ों की कहानियां बेमिसाल होती हैं। इनके स्नेह के चर्चे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के प्रेरणास्रोत होते हैं। ऐसी कहानियां यादों में बस जाती हैं। ऐसी कहानियों में निःस्वार्थ प्रेम, समर्पण, सेवाभाव , त्याग व संघर्ष ज्यादा होता है, फिर भी ये अपने समर्पित भाव के बल पर अपनी परेशानियों की परवाह न कर, दरकिनार करते हुए, मंजिल पा कर ही रहते हैं।


एक दूसरे को समर्पित ऐसे अनोखे जोड़े की प्यार और समर्पण की कहानी, जिसने मेरे दिल क्या आत्मा को छू लिया । उन्हें जब भी देखती हूं अंदर से यही आवाज आती है ये सच्चे अर्थ में जीवनसाथी हैं काश उनकी समझदारी त्याग-समर्पण भाव से हम भी कुछ प्रेरणा ले सकते। एक दूसरे के कहने से पहले ही उनके भाव को समझ जाना । अपने से पहले दूसरे का ख्याल रखना ।


सर्वप्रथम मैं उनसे सन 1982 फरवरी में मिलीं थी वे मेरे ससुराल के कस्बे में सरकारी हाॅस्पीटल में गायनकोलाॅजिस्ट डाक्टर की पोस्ट पर आईं थीं । उन्होंने बीएएमएस पास किया था । मेरी उस समय पहली प्रेग्नेंन्सी थी ,उसी सिलसिले में मुझे देखने आईं थीं। मैं उनका व्यक्तित्व देखकर बहुत प्रभावित हुयी । वे केवल खद्दर की साड़ी ही पहनती थीं । एकदम लकदक कड़क कलफ की हुयी जबकी खुद अपने से धुल कलफ कर प्रेस करतीं । खुद भोजन बनातीं । उनका नाम मैं यहां नहीं दे रही परिचय ही पहचान है । उनके पति उस समय वीडियो थे ।उनके बच्चे बहुत ही अच्छी पोस्ट पर थे ।सभी खादी ही पहनते थे । पारिवारिक जीवन बहुत ही सादा व संयमित था । उस समय उनकी छोटी बेटी व बेटा पढ़ रहे थे । शायद उनके 2बेटे व 2 बेटी थीं ।


वे मेरे मायके के नजदीक से थीं ट्रांसफर के बाद भी मिलना हो जाता । अभी 2 माह पहले मैं और मेरे पति उनसे मिलने गये । वास्तव में वे सही अर्थों में एक-दूसरे के पूरक थे क्योंकि उनका प्यार अशर्त समर्पण भाव था । अपने से पहले दूसरे की फिक्र । बिना कहे सामने वाले की जरूरत समझ जाना । क्या केमेस्ट्री थी चाहत की । स्नेह का सागर लहलहा रहा था जो उनके चेहरे की एक-एक भावभंगिमा से छलक रहा था । शिकवा-शिकायत का कहीं नामोनिशान नहीं बस हो सके तो सबका सहयोग करें चाहे बच्चे हों या पोता-पोती । सारा श्रेय सामने वाले को देना । विश्वास और धैर्य हर रिश्ते मे जरूरी है ।


उन्होंने हमें इतनी खुशी से बताया कि हम अपनी शादी की हीरक जयंती (डायमंड एनीवर्सरी 2026 में मनायेंगे। आप दोनों जरूर आइयेगा । गजब का आत्मविश्वास था उनके उस प्यार में जो उनकी आंखों से छलकती नमी से झिलमिल कर रहा था ।तब मैंने उनकी एज पूंछी उन्होंने 93 वर्ष बताई । उनके पति 10 माह के बड़े थे । सन 1931 का जन्म ।

मानो कह रहे हों उम्र से क्या होता है जी मन से अभी हम जवांदिल हैं । मेरे मुंह से निकल ही गया,"अम्मा जी आप दोनों के इस स्नेह का राज "।


वे बोलीं ,"बस हम एक-दूसरे को समर्पित थे ।जीवन में परेशानियां,समस्यायें किसके साथ नहीं आतीं हम एक-दूजे के संबल बने ।मेरी जब शादी हुयी मैं 12 वीं में पढ़ रही थी 2 साल टीचिंग जाॅब की फिर बीएएमएस किया, बीडीओ साहब ने ही कराया "।


तभी उनके पति झट से बोले," मैंने क्या कराया वह तो इनमें इतनी पढ़ने की लगन व एकाग्रता थी कि सब आगे बढ़ता गया । आज भी वे रिटायर्मेंट के बाद अपने गृहनगर में ही रहना पसंद करते हैं। बच्चों के पास छुट्टियों में जाते हैं कभी 15 दिन तो कभी माह दो माह को । 


एक सहायिका रखी है वे साफ-सफाई ,भोजन बना देती हैं ।उनका खान-पान बहुत सादा व प्राकृतिक है । कहतीं हैं जितना प्रकृति के नजदीक रहेंगे जीवन उतना अधिक स्वस्थ्य होगा । जैसा खाये अन्न वैसा हो मन ,कम खाओ गम खाओ की आज भी पक्षधर । 


वे एकसाथ बोल पड़े, इसी से लम्बे समय तक बच्चों के पास नहीं रह पाते दूसरे खुद काम करने से आत्मविश्वास अधिक रहता है । जानकारियां अपडेट होती रहती हैं वरना जंग लग अस्तित्व हीन हो जाते हैं ।खुद माॅल जाकर सामान लाना ,सब्जी दूध आदि लाना । रास्ते में लोगों से इसी बहाने मिलना जुलना हो जाता है । अपना नित्य कर्म व आध्यात्म बिना बाधित चलता रहता है नहीं तो जनरेशन गैप असर डालता ही है । वे भी खुश हम भी खुश 1-2 माह बच्चे और हम एक-दूसरे की रूटीन में आसानी से एडजस्ट हो जाते हैं ।


सच भी है हम आर्थिक और शारीरिक रूप से जितना दूसरे पर आश्रित होते जाते हैं उतना ही व्यक्तित्व दबता जाता है । शारीरिक मेहनत से मानसिक संतुलन बना रहता है अपनी खुद की पहचान रहती है ।मन के हारे हार मन के जीते जीत ।


हम दोनों से एक-दूसरे का अच्छा मित्र और कौन हो सकता है ,कौन पसंद नापसंद समझ सकता है । हमें अनावश्यक तुलना से बचना चाहिए और साथी से कुछ अधिक अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए उपेक्षा का व्यवहार भी नहीं करना चाहिए। फिर इस दुनिया में ऐसा कौन स्त्री-पुरुष है जिसमें कमियां न हों ।बस हमारा यही है वे जैसे हैं हमारे अपने हैं ।

बस यही कहूंगी कि कोई भी रिश्ता अपने आप में पूर्ण या अपूर्ण नहीं होता है। रिश्ते और साथी को किसी भी कसौटी पर कसना नही चाहिए। ये बात दोनों पक्षों पर निर्भर होती है ताली एक हाथ से नहीं बजती ।

          हम दोनों भी एक नयी सीख ले ,प्रेरणाऊर्जान्वित हो उनके जैसे बनने का संकल्प मन ही मन दोहरा रहे थे ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract