नवचेतना

नवचेतना

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तेजस बचपन से ही अन्य बच्चों की तरह नहीं था। उसकी एक अपनी ही दुनिया थी। कहीं खोया-खोया सा रहता था वो, मानो वह जीवन की विचित्रता का सामना न कर पा रहा हो। अन्य बच्चों की तरह उसे क्रिकेट, फुटबाॅल इत्यादि में मन नहीं लगता था। उसके तो अपने ही खेल और खिलौने थे। देखने वालों को यह लगता था कि उसे किसी

मनोचिकित्सक की आवश्यकता है, परन्तु उसे इसकी भी परवाह नहीं थी कि लोग उसके बारे में क्या-क्या और क्यों

सोचते हैं।

वह तो अपने आप में ही व्यस्त और मस्त रहने वाला था। मित्रों समयचक्र अपने द्रुतगति से निरन्तर गतिमान रहता है। वह किसी के लिए कभी भी नहीं रूकता।

अतएव समय व्यतीत होता गया, होता गया और तेजस

भी समयानुकूल बढ़ता गया। धीरे-धीरे नन्हा तेजस अब एक युवक बन गया था। कल का विद्यालय जानेवाला बालक अब एक युवक

बनकर महाविद्यालय में पहुँच चुका था। महाविद्यालय में वाणिज्य संकाय में अध्ययन। करनेवाला तेजस अध्ययन में सामान्य ही था, परन्तु वाणिज्य विषय गणित पर आधारित होने के कारण उसे एक कोचिंग संस्थान में जाना पड़ा और वह गया भी। परन्तु जहाँ भी गया, वह अपने भीरूपन के कारण खुल कर किसी से कुछ कह नहीं पाता था।

जिसके कारण सम्भवतः लोग उसका परिहास करने में लगे रहते थे। साथ ही वह अपने कोचिंग संस्थान में भी इसी भीरूपन के कारण वह कुछ समझ भी नहीं पाता था।

तेजस मन्दबुद्धि का तो नहीं था, परन्तु लोग उसके इस भीरूपन के कारण उसे मन्दबुद्धि का समझते थे। उसे लोग मन्दबुद्धि का समझते जरूर ही थे परन्तु वह सामान्य बुद्धि का था, अपनेआप में मस्त रहने वाला। इस कारण से उससे कोचिंग संस्थान की लड़कियाँ भी उसका मजाक बनाने में पीछे कभी हटती नहीं थी।

वह कभी हिम्मत करके कुछ अपने अध्यापक से पूछना ही चाहा था कि तभी उसी के बैच की एक लड़की प्रतिष्ठा ने जब उसे निशाने पर लेते हुए अध्यापक से ये कह दिया कि, " सर ये प्रश्न तो बहुत ही आसान है, इसमें पहले शेयर फोरफीटेड निकलेगा बाद में शेयर एकाऊन्ट बनाकर प्रश्न हल हो जाएगा तो अध्यापक ने भी उसे झड़पते हुए ये कह दिया कि यह तो बिल्कुल ही आसान है तुम पढ़ते ही नहीं, तो कहाँ से समझोगे। "तुम्हारी मोटी बुद्धि में न जाने ये प्रश्न क्यों नहीं आता, तो सभी लड़की और बाकी लड़के

हँसने लगे। प्रतिष्ठा भी तो संभवतः यही चाहती थी न !

अब तेजस ने यह निश्चय कर लिया था कि वह अब कोचिंग में आएगा ही नहीं और उसने ऐसा ही किया, वह कोचिंग ही जाना छोड़ दिया। अब उसे पढ़ने-समझने में कठिनाई होने लगी थी, परन्तु वह कोचिंग तो छोड़ ही चुका था परन्तु बीकाॅम०प्रतिष्ठा की परीक्षा इतनी सुगम भी तो नहीं होती है मित्रों। इसलिए उसने सहायक पुस्तक जिसमें हल किए हुए प्रश्नपत्र होते हैं क्रय कर लिया और उसी से अध्ययन करने लगा।

परन्तु, सहायक पुस्तक या पत्रिका सहायता कर सकती है। अध्यापक की भाँति मार्गदर्शन तो संभवतः नहीं कर सकता या करने का सामर्थय रखता है, ये हम सब भी भली -भाँति ही जानते हैं। परिणामस्वरूप वह स्नातक के प्रथम वर्ष में ही असफल हो गया।

संभवतः उसके विषय में यह कहा जा सकता है कि उसने युद्ध करने की ठान रखी थी, पर उसकी तैयारी पूर्ण ही नहीं थी। मित्रों किसी भी युद्ध में विजयश्री को पूर्णतः प्राप्त करने के लिए आपकी तैयारी पक्की होनी ही चाहिए।

परन्तु तेजस ने इस तथ्य को समझा ही नहीं था या संभवतः समझना चाहता ही नहीं था। वह पुनः दुबारा कोचिंग संस्थान जाना चाहता ही नहीं था, एक-दो बार तो उसके दोस्त विशेष ने उसे इस प्रकार से अध्ययन करने से होने वाली हानि के विषय में भी समझाया। परन्तु वह सम्भवतः आत्मबल खो ही चुका था और हम सभी जानते हैं कि आत्मबल विहीन मनुष्य आँखें रहते भी नेत्रहीन की ही भाँति रहता है। उसमें कितना भी आप उत्साह का संचार कर दें वह बस अपनी डफली अपना वाला राग वाले ही मुहावरे को चरितार्थ करता रहता है।

उसे अड़ियल टट्टू की संज्ञा भी देना अनुचित न होगा। कितनी बार विशेष ने भी उसे समझाया कि वह अपने अतीत को याद कर आज अपना वर्तमान क्यों खराब कर रहा है। वह यदि इस भाँति ही पुरानी बातों को याद कर-कर के केवल पछताता रहेगा तो उसका भूत तो खराब होना था, जो खराब भी हो गया वर्तमान भी खराब कर लेगा।

विशेष ने उसे बिल्कुल धमकाते हुए ही लगभग कहा कि तुम्हें कौन, क्या कहता है और कहना चाहता है या क्या कहेगा इसके विषय में अत्यधिक सोचना छोड़ कर वह

क्या खुद करना चाहता है ?उस पर ध्यान देने की अत्यन्त आवश्यकता है न कि लोगों के विषय में सोचकर अपने आत्मबल को गिराने की।

उसके बाद विशेष के बार-बार समझाने पर वह पुनः इन्कम टेक्स का क्लास करने मनोज जी नाम के अध्यापक के पास गया, परन्तु नियति ने पुनः उसे

अपने उसी भय से मुलाकात करा ही दी।

वह एक दिन जब मनोज सर के यहाँ इन्कम टेक्स पढ़ने पहुँचा तो उसकी नजर अचानक से उसके सामने वाली सीट पर बैठी प्रतिष्ठा से हो गयी, अब उसे लगा शायद अब वह पढ़ नहीं पाएगा, पर उसने विशेष के दूारा कहे गए बातों को स्मरण किया कि तुम्हें किसी भी सुननी नहीं है,

तुम्हें बस वही करना है मेरे दोस्त जो तुम करना चाहते हो। मेरे दोस्त ये संसार तुम्हें तब तक भयभीत करेगा, जबतक तुम भयभीत होगे। जिस दिन तुमने इस भय का त्याग कर दिया ये संसार तुम्हारी जयजयकार करने लगेगा। वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी प्रतिष्ठा अपने जगह से उठकर जहाँ वो आगे बैठी हुई थी, तेजस के पास आकर उससे कहने लगी कि, "एक्सयूज मी!मे आई सीट हियर, तेजस संभवतः कुछ लिखने में व्यस्त था।

इसलिए उसने शायद इस ओर ध्यान नहीं दिया, या देना ही नहीं चाहा। उसने अपने काॅपी में कुछ लिखते-लिखते ही उससे इतना ही कहा, यस!आॅफ काॅर्स यू कैन सीट हियर, वीथ ग्रेट प्लीजर। प्रतिष्ठा उसके बाद तेजस के बगल में बैठ गयी, अबतक तेजस का लिखना हो गया था, जब उसने अपने बगल में बैठे प्रतिष्ठा को देखा तो उसका

एकबार तो मन हुआ कि वहाँ से उठकर भाग ले और फिर कोचिंग छोड़ दे। परन्तु उसने अपने को सन्तुलित कर लिया। तब तक मनोज सर भी आ चुके थे, आते ही उन्होंने इन्कम फ्राॅम सैलेरी कैसे निकालते हैं के बारे में समझाया। व्याख्यान समाप्त होने के बाद सभी घर जाने लगे। मनोज सर जो वकील भी थे काॅर्ट के लिए निकल चुके थे। अब कक्षा में केवल तेजस और प्रतिष्ठा ही बचे थे। वो भी शायद दोनों को एक-दूसरे से कुछ कहना था।

पर क्या ?

तेजस को शायद उसे ये समझाना था कि अब उसे। किसी की परवाह नहीं, खैर वह चुप ही रहा तथा प्रतिष्ठा के कुछ कहने की प्रतिक्षा करने लगा। उसके बाद वह जाने को हुआ, वह बाहर रोड पर ही आ पाया था कि प्रतिष्ठा ने उसे पीछे से आवाज लगा दी।

तेजस, प्लीज रूको !मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। वह भी रूक गया। प्रतिष्ठा ने अब कहना प्रारम्भ किया।

तेजस आई०एम०साॅरी, मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे द्वारा उस दिन इतना ही कहने से कि तुम लोगों को

जरा भी अपना दिमाग नहीं है। ये बहुत आसान है और ये फिर समझने के चक्कर में कहीं पूरा सिलेबस ही न रह जाय, उसके बाद मुझे तुम्हारे मित्र "रूप"से पता चला

कि सर के मेरे द्वारा कहे बात को ही दुहराने के कारण तुमने कोचिंग ही छोड़ दी थी। उसके बाद तुम्हारी परीक्षा

भी खराब हो गयी थी।

उसके बाद प्रतिष्ठा ने उससे फिर कहा कि ये मानती हूँ तेजस कि मैंने गलती की थी पर तुमने भी तो गलती कर दी थी क्या तुम किसी के इतना कहने मात्र से ही पढ़ना छोड़ दोगे। तुम्हें तो इसे मेरी चुनौती समझ स्वीकार करनी चाहिए थी।

खैर जो हुआ जाने दो पर अब अपने लक्ष्य से तुम पीछे मत हटना और मैं भी वादा करती हूँ कि तुम्हें हर सम्भव सहायता करने का प्रयत्न करूँगी।

उसके बाद यह तेजस की तेज व नवचेतना ही तो थी कि उसने इन्कम टैक्स की क्लास में टेस्ट में सबसे अधिक अंक प्राप्त किया।

अब पुनः बीकाॅम०प्रतिष्ठा की परीक्षा होने वाली थी और अब प्रतिष्ठा और तेजस जो एक अच्छे दोस्त भी बन चुके थे और दोस्त से भी कई ज्यादा बन चुके थे, साथ में ही लगभग बीकाॅम०प्रतिष्ठा के पूरे पेपर को दिया।

प्रतिष्ठा तो अध्ययन में शर्तीया अच्छी थी ही, तेजस भी इसके सानिध्य में अब बहुत तेज हो गया था।

अब उसकी खोई आत्मशक्ति भी धीरे-धीरे लौटने लगी थी। इसका परिणाम यह हुआ था कि वो सफलता के सोपान की ओर अग्रसर था।

वह धीरे-धीरे अपने भय पर आधीपत्य करने लगा था और अपने आनेवाले सुनहरे कल के लिए वह पहले से ज्यादा नवचेतना से भर वह तैयार था। शायद उसे एक कविता ने प्रेरित कर रखा थाः-

उठ जाग, लक्ष्य संधान को, पाने लूटे सम्मान को।

चाह शेष, हो जबतक, प्राप्त न हो तबतक।।

धीर धर, मार्ग चुन कर, सज्य हो आगे बढ़।

याद रख, भाग्य भरोसे ही, कुछ भी जगत में

नहीं मिला, नग ऐसे ही न, कभी भी है हिला।

प्रयत्न से, चाँद पर मनु, आज दिखता है खड़ा।।

ठान कर ही, सगर ने भी तो, गंग उतारी धरा।

इस जग, में हैं अगर जो, सर्वोच्च पद पर।

स्वर्ण सम, ताप सहकर, कर्मपथ पर चले थे।

तुम भी बढ़ लो, बनकर भी, अनुचर संग में।

समय अपनी द्रुत गति से अँगड़ाई लेता हुआ आगे बढ़ रहा था और तेजस भी। उसने अपनी अद्वितीय प्रतिभा का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। वह अपने भय पर काबू पाकर आगे बढ़ रहा था, शायद व चाल्र्स डार्विन के

इस सिद्धान्त से सहमत हो चुका था कि प्रकृति में निरन्तर संघर्षरत जीव ही सफल हो पाता है।


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