Ankita Bhadouriya

Drama Inspirational

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Ankita Bhadouriya

Drama Inspirational

नवीन संकल्प

नवीन संकल्प

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कॉलेज हॉस्टल का मानसून

कॉलेज के हॉस्टल की बात ही कुछ और होती है। उन चार सालों की शरारतें, मस्ती और बेपरवाहियाँ ताउम्र जोश भरने वाली होतीं हैं। हम जीवन की बड़ी से बड़ी मुसीबत में फंसें हों पर उस वक्त को याद करके हमें आगे बढ़ने एक प्रेरणा मिलती है। हॉस्टल के हर कमरे में कितनी सारी कहानियाँ हर रोज बनतीं हैं, दोस्ती की, प्यार की, भरोसे की। हॉस्टल की आज़ादी, लेट नाईट मैगी बनाना, दोस्त के कपड़ों और घर से आये माँ के हाथ के लड्डुओं पर हमारा कम हमारे दोस्तों का हक ज्यादा होता था। इतिहास से लेकर विज्ञान की खोज और पॉलिटिक्स से क्रिकेट मैच तक हर विषय पर ढ़ेर सारी बातें होतीं हैं और ढ़ेरों जगमगाते सपने उज्जवल भविष्य के। कभी कभी हॉस्टल का कमरा हमारे दर्द और आँसुओं का भी गवाह होता है। कितनी ही ज़िंदगियाँ पढ़ाई और करियर के प्रैशर से हार जातीं हैं। हॉस्टल के कमरों में ढ़ेरों कहानियाँ मिलतीं हैं।

दिल्ली के IIT कॉलेज के हॉस्टल में शोर था, सूरज कहाँ है? सूरज कहाँ है? उसका गूगल के लिये कैम्पस सिलेक्शन हुआ था, सब उसे बधाईयाँ देने के लिये ढूँढ़ रहे थे, पर वो पता नहीं कहाँ गायब था। तभी उसके दोस्त और रूममेट विनोद से किसी ने पूछा - "सूरज कहाँ है?"

विनोद ने कहा - " बाहर देखो, पानी बरस रहा है, और बरसते पानी में वो हमेशा हॉस्टल की छत पर होता है, रोता है -हँसता है, बातें करता है और अतीत की यादों में भीगता है।"

"पर क्यूँ?" - किसी ने पूछा।

"ये रात में तुम सब उससे ही पूछ लेना, जिन जिन का कैम्पस सिलेक्शन हुआ है आज उन सबके लिये एक छोटी सी पार्टी रखी गई है, कॉलेज कैन्टीन में। तुम सब शाम को वहीं उससे पूछ लेना।" - विनोद रहस्य बढ़ाते हुये बोला।

रात को आठ बजे पार्टी में आखिरी साल वाले सभी छात्रों का एक गैट-टुगैदर रखा गया था। जहाँ सब एक दूसरे से आखिरी बार मिलकर ज़िंदगी में अपनी अपनी राहों पर बढ़ जायेंगें, फिर पता नहीं कब मिलना होगा।

सभी का उस पार्टी में आना जरूरी था, पर सबके ज़हन में सूरज और बारिश के रिश्ते को जानने की उत्सुकता थी।

सबने खड़े होकर बारी बारी से पहले साल की तरह अपना परिचय दिया और भविष्य के प्लैन साझा किये, कुछ सवालों के जवाब भी दिये। फिर बारी आई सूरज की।

खड़े होकर सूरज ने कहा - "मैं सूरज कुमार, अररिया, बिहार से। कंप्यूटर साइंस 8th Sem."

तभी किसी ने पूछा - "भाई ये तो हम चार सालों में जान चुके हैं , आज वो बताओ जो हमें नहीं पता। तुम्हारा और बारिश का रिश्ता, हमें वो जानना है। "

सभी ने टेबल बजा कर इसका समर्थन किया। तो सूरज ने बताना शुरू किया -

 "दोस्तों , मैं बिहार के अररिया जिले का हुँ, मेरे पिताजी एक कुम्हार थे, वही जो मटके, दिये और मिट्टी के खिलौने बनाते हैं, वही कुम्हार। मेरी माँ की मौत बहुत पहले ही हो चुकी थी, घर में 14 साल का मैं, मेरी 7 साल की प्यारी सी छोटी बहन वर्षा और पापा, हम तीन ही लोग थे।

 पापा और मैं हर रोज एक खदान से चिकनी मिट्टी खोद कर बोरी में भरकर लाते थे। मैं और पापा मिलकर ही खाना बनाते,फिर मैं और वर्षा स्कूल जाता और पापा, चक्का घुमा - घुमाकर मटके और खिलौने बनाते। यहाँ शहरों में भले ही मटके कोई नहीं खरीदता पर गाँव - कस्बों में आज भी गर्मियों में पानी ठंड़ा करने के लिये मटकों का ही प्रयोग होता है। गर्मियों के दिनों में हमारी ठीक -ठाक आमदनी भी हो जाती थी। खर्चा कुछ था नहीं, सरकारी स्कूल में पढ़ता था तो मुझे और वर्षा को दोपहर में मिड -डे मिल का खाना मिल जाता और रात में पापा चावल बना लेते जिनमें नमक डालकर हम खा लेते थे। और दो तीन साल में एक बार कपड़े खरीदे जाते थे , तो हमारी ज़िंदगी बस ठीक ठाक कट रही थी।

मेरी बहन को बारिश में भीगना बहुत पसंद था, आसमान में बादल छाते ही वो खुशी से चहकने लगती थी, वो भगवान से कहती कि हर रोज पानी बरसाया करें, पता नहीं उसे बादलों की नन्हीं बूँदों से क्या लगाव था, घंटों बैठी देखती रहती थी।

पर पापा वो तो बादल देखते ही तनाव में आ जाते थे, बारिश के अंदेशे से जितनी चौड़ी मुस्कान वर्षा के चेहरे पर होती उससे ज्यादा गहरी चिंता की लकीरें पापा के माथे पर।

अब मुश्किल ये थी कि भगवान किसकी सुनें? जो भी हो किसी एक का दिल तो टूटना ही था। कभी - कभी दोनों मुझसे एकसाथ कहते, बेटा दुआ करो बारिश ना हो। भईया दुआ करो ना बारिश हो जाये। भगवान के साथ - साथ मेरे लिये भी धर्मसंकट खड़ा हो जाता था सुनूँ तो किसकी ? करूँ तो किसकी ?" - हँसते हुये सूरज बोला।

फिर थोड़ा रूककर गंभीर स्वर में बोला - "कुम्हार और बारिश में दुश्मनी का रिश्ता होता है। कुम्हार चाहता है, बारिश कभी ना हो जितनी गर्मी होगी उसके मटके और सरोते उतने ही बिकेंगें। धूप में ही तो कुम्हार के बने खिलौने और मटके सूखते हैं, बारिश तो उन्हें वापस मिट्टी बना कर कुम्हार की मेहनत ही मिट्टी में मिला देती है।

एक बार हमारे जिले में चमकी बुखार का प्रकोप छाया था, ये एक नई बीमारी थी जो दस साल से कम उम्र के बच्चों को अपनी गिरफ्त में लेकर उनके दिमाग पर असर करती थी और अंत में बच्चे की मौत हो जाती है। आजकल भले ही उसको कंट्रोल कर लिया गया है पर उस वक्त तो 10 में से 6 बच्चों का मरना तय था।

मेरी बहन भी चपेट में आ गई थी, बलिया जिले में सुविधायें नहीं थीं तो बच्चों को पटना अस्पताल में भर्ती करने का इंतजाम किया गया, पापा को भी वर्षा को लेकर दो दिन बाद पटना जाना था। इस बीच उन्होनें आने वाली दीवाली के लिये ढ़ेर सारे दिये बनाये थे, दो दिन तक बिना कुछ खाये पिये बस खिलौने और दिये ही बनाये ना जाने कौन सा भूत सवार था , पड़ोसी पूछते तो कहते बिटिया के इलाज में जरूरत पड़ेगी तो अभी खिलौने बना कर रख दूँगा सूखने पर सूरज बाजार में बेच आयेगा।

 पापा, दो- तीन दिन बाद वर्षा को लेकर पटना रवाना हुये, जाते समय पापा ने कहा - सूरज दुआ करना बारिश ना हो, नहीं तो खिलौने और दिये मिट्टी बनकर बह जायेंगें।

वर्षा ने कहा - भईया, मैं चाहती हुँ, बहुत बारिश हो मैं मरने से पहले बारिश से बातें करना चाहती हुँ, भीगना चाहती हुँ।

उस दिन दोनों की दुआयें कुबूल हुईं थीं, अररिया में चटक धूप खिली थी और पटना में मूसलाधार बारिश ।

पापा जब पटना पहुँचे तो वो और वर्षा भीग चुके थे, बुखार के मारे वर्षा का शरीर तप रहा था, पर वो खुश थी। पापा जब उसे गोद में उठाये अस्पताल पहुँचे तो वर्षा की साँसें रूक चुकीं थीं, पर चेहरे की मुस्कुराहट वेसी ही थी।

पापा और मैं अब अकेले पड़ चुके थे। इस दुःख भरी ज़िंदगी में वर्षा ही तो थी जो हमें अपनी नादानियों से हँसाती, सताती और रूठती थी, उसके बचपने में हम हमारी परेशानियाँ ही भूल जाते थे। अब तो बस आँसू भी सूख चुके थे और पापा के बनाये खिलौने और दिये भी। पर वो चली गई थी जिसके इलाज के लिये पापा ने दो दिन तक भूखे रहकर मेहनत की थी। अब तो उन खिलौनों को देखना भी अच्छा नहीं लगा रहा था।

तभी आसमान में बादल छाये और बारिश होने लगी। पहली बार पापा को बारिश देखकर अच्छा लगा, उनकी आँखों में आँसू और चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। बोले - "देख सूरज, वर्षा आ गई। हमसे मिलने हमारी वर्षा आई है। "

 वो मेरा हाथ पकड़कर आँगन में ले आये और हम दोनो खूब भीगे, बारिश की बूँदें हाथ में पकड़कर अपनी वर्षा के साथ जी भरकर बातें कीं।

फिर पापा ने मिट्टी के खिलौने और बर्तन बनाना छोड़ दिया क्योंकि ये काम उन्हें वर्षा से दूर कर देता। अब वो खेत बटाई पर लेकर खेती करने लगे क्योंकि किसान यही चाहता है अच्छी बारिश हो, इस तरह किसानी उन्हें वर्षा के करीब ले आती थी।

मैं अपनी बहन को कभी नहीं भूल सकता। मैंनें पढ़ाई पर ध्यान दिया, दसवीं में मैनें बोर्ड परीक्षा में 96% अंकों के साथ राज्य भर में टॉप किया था, जिस दिन मेरा रिज़ल्ट आया था उस दिन भी बारिश हुई थी, मेरी वर्षा मुझसे मिलने आई थी, मैं और पापा तब भी खूब भीगे थे।

इसके बाद मेरी पढ़ाई का खर्चा सरकार ने उठाया और छात्रवृत्ति भी दी गई , जिससे मैंनें IIT Coaching जॉईन की। मैने खूब पढ़ाई की थी और आखिरकार मैनें बारहवीं के साथ IIT भी पास कर लिया और नंबरों के आधार पर यहाँ IIT Delhi में एडमीशन मिल गया।

मैं पढ़ा क्योंकि मेरी बहन उस बीमारी से नहीं, हमारी गरीबी के कारण मरी थी। अगर उसे पहले ही पटना ले जाते तो वो बच जाती, इसलिये मैं इस गरीबी से बाहर निकलकर अपने जैसे दूसरे लोंगों के लिये कुछ करना चाहता था।

 अब क्योंकि मुझे गूगल में अच्छी जॉब मिल चुकी है तो मैं fundforchamki नाम से एक NGO बनाने वाला हुँ और उस बुखार से पीडित सभी बच्चों को बेहतर से बेहतर इलाज दिलवाने की पूरी कोशिश करूँगा। मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि अब किसी सूरज की वर्षा उससे दूर ना हो, रक्षाबंधन पर किसी भाई की कलाई सूनी ना हो।" - बात पूरी करते - करते सूरज का गला भर्रा गया।

सूरज की बात सुनकर वहाँ बैठे बाकी लोंगों की आँखों में भी आँसू आ गये। अब वो जान चुके थे कि सूरज बारिश में हरबार क्यूँ भीगता है? भीगते हुये किससे बातें करता है? क्यूँ साथ में हँसते - रोते हुये किससे बातें करता है?

वहाँ बैठे लोगों ने भी सूरज के NGO में Donate करने का प्रण लिया। कॉलेज हॉस्टल की ये बारिश सबके लिये यादगार बन गई थी।

कॉलेज हॉस्टल ने मानसून की एक नई कहानी सुनी।आज हॉस्टल एक नई कहानी का गवाह बना , एक कहानी बारिश की, एक कहानी भाई - बहन के रिश्ते की, कहानी गरीबी और बेबसी की और कहानी कुछ कर दिखाने के जुनून की।

बाहर अभी भी रिमझिम रिमझिम नन्हीं - नन्हीं बूँदों की फुहार गिर रही थी।


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