सीमा भाटिया

Drama Inspirational

2.2  

सीमा भाटिया

Drama Inspirational

पालना

पालना

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सर्दियों की उस शीतलता से भरी शाम में दोनों हाथों में हाथ थामे माॅल से बाहर निकले। बहुत खुश थे दोनों स्नेहा और राजन। माॅल की पार्किंग से बाहर आते हुए स्नेहा ने अपना चेहरा स्कार्फ से ढक लिया और बाइक पर राजन के पीछे बैठ गई।

"अच्छा राजन,अब हास्टल छोड़ दो मुझे, वरना देर हो जाएगी।"


"अरे डिनर किए बिना कैसे जा सकती हो? वैसे आज सच में बहुत मज़ा आया तुम्हारे साथ एक खूबसूरत शाम बिताई। ऐसा जी करता है कि अब तो तुमसे एक पल के लिए भी दूर न रहूं।"बाइक स्टार्ट करते हुए राजन ने कहा और शहर से दूर बने एक छोटे से होटल की ओर मोड़ दी।

"राजन! बहुत दूर आ गए हम, लगता है सही समय पर नहीं पहुंच पाऊंगी अब मैं हाॅस्टल।"स्नेहा ने चिंतित स्वर में कहा।

"कॅम ऑन स्नेहा! थोड़ी देर में कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। वैसे भी अभी तुमने मुझे गिफ्ट कहां दिया है?"राजन ने आंख मारते हुए टेबल की कुर्सी सरकाते हुए कहा।

"अरे कमाल है, जनाब! यह आपने जो आज अपनी फेवरेट नीले रंग की कमीज पहनी है, वह मैं तुम्हें एडवांस में दे चुकी हूं तोहफे के रूप में, अभी से भूल गए।"स्नेहा ने घूरते हुए कहा।

"पर आज तो कुछ और की ही उम्मीद थी मुझे तुमसे।"राजन ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा।

"नहीं राजन, मैं पहले ही कह चुकी कि उसके लिए अभी समय है।"


"कॅम ऑन स्नेहा! बिल्कुल ही पुरातनपंथी हो तुम।"


"हां ! हूं क्योंकि यह मेरे लिए जरूरी भी है। मैं अपने पिता जी का विश्वास नहीं तोड़ सकती, जिन्होंने सब रिश्तेदारों का विरोध करने के बावजूद मुझे इतनी दूर अकेले पढ़ने के लिए हाॅस्टल में भेजा है।"


"अच्छा बाबा! फिलहाल खाना खाओ। और यह स्पेशल ड्रिंक मेरी तरफ से..अरे घबराओ नहीं, सोफ्ट ड्रिंक है बस, हां-हां..चियर्स!" और दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।


‌जब आंख खुली, तो सिर भारी सा हो रहा था स्नेहा का। किसी अनहोनी की आशंका से उठकर देखा, तो खुद को अर्द्धधनग्नावस्था में एक कमरे में पाया। पास ही राजन मस्त हो कर सो रहा था ।"राजन! यह क्या किया तुमने? "जोर से चिल्ला पड़ी स्नेहा।

"क्या डार्लिंग तुम भी न ओवर रिएक्ट करती हो बहुत! अब पिछले छह महीने से तुम्हारे साथ हूं, इतना तो हक बनता ही है। आखिर हम भी इंसान हैं।" राजन ने उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा।


"इंसान नहीं, हैवान हो तुम। मैंने तुमसे प्यार किया था, इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें इसका नाजायज फायदा उठाने का हक दे दिया मैंने। वैसे भी यह तुम्हारी हवस थी, जो तुमने मेरे साथ धोखे से शारीरिक संबंध बनाए।" अपने आप को राजन की बांहों के घेरे से छुड़ाते हुए स्नेहा फफक-फफक कर रो पड़ी।


जिंदगी बहुत ही अनोखे मोड़ पर ले आई थी, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी स्नेहा ने। मेरठ के पास एक छोटे से गांव दौलतपुर के एक प्राइमरी स्कूल के अध्यापक पिता ने बिन माँ की बच्ची को अपने अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए उच्च शिक्षा के लिए एक उच्च कोटि के कालेज में पढ़ने के लिए दिल्ली भेजा था, ताकि सारी उम्र सुख सुविधाओं के अभाव में जीवन व्यतीत न करना पड़े उनकी बेटी को। पर पता नहीं किस मनहूस घड़ी में वह अपनी सहेली मनीषा के भाई राजन के चक्कर में पड़ गई, जो अक्सर उसे कालेज छोड़ने व लेने आता था। औपचारिक जान पहचान कब गहरी मित्रता और फिर प्यार.. नहीं..यह प्यार तो हरगिज नहीं था..सोच सोचकर दिमाग फटने लगा था स्नेहा का। पर अब क्या हो सकता था? बहुत बार सोचा कि मनीषा को सब बता दें, पर एक डर मन में था कि कहीं यह बात कालेज में फ़ैल गई, तो वह कहीं की नहीं रहेगी। फिर कुछ दिनों में ही राजन के बारे में पता चला कि वह नई नौकरी के लिए विदेश चला गया है। बस अपना ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगाने का प्रयास करने लगी। उस रात को एक हादसा समझकर भुला देना चाहती थी स्नेहा। सब कुछ तो सही चल रहा था, पर पिछले दो-तीन दिन से अजीब सा महसूस हो रहा था। तबीयत में कुछ गड़बड़ी लग रही थी। कुछ अनहोनी होने की आंशका लेकर जब डाक्टर के पास गई, तो वही हुआ, जिसका डर था।


"हां, मिस स्नेहा! आपका शक सही है। आप गर्भवती हैं। वैसे तो आजकल बहुत सी लड़कियां शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने में गुरेज नहीं करती, पर कम से कम एहतियात तो बरतनी चाहिए थी आपको इस मामले में।" डाक्टर नीरा ने प्यार से समझाते हुए कहा,"अब आपके पास दो रास्ते हैं, या तो अपने प्रेमी के साथ शादी कर लीजिए जल्द से जल्द या फिर गर्भपात। मैं नहीं चाहती कि किसी भी तरह से आप का भविष्य खराब हो। आप समझ रही हैं न।"


पता नहीं डाक्टर नीरा के बोलने में ऐसा आत्मीय भाव था कि एक पल के लिए स्नेहा को लगा कि उसकी माँ उससे बात कर रही है। अचानक उठकर खड़ी हो गई स्नेहा और डाक्टर नीरा के कदमों के पास बैठ कर फूट फूट कर रोने लगी और सब कुछ बता दिया। वात्सल्य भरा स्पर्श अपने सिर पर महसूस कर स्नेहा चौंक पड़ी।


"आओ मेरे साथ। शिखा आप पीछे से मरीज देख लेना प्लीज़।" बाहर आकर डाक्टर नीरा ने अपनी असिस्टेंट को निर्देश दिए और क्लीनिक से बाहर निकल आई। सम्मोहन वश स्नेहा उनकी गाड़ी में बैठ साथ चल पड़ी। रास्ते में दोनों खामोश रही। लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर बनी एक इमारत के आगे नीरा ने गाड़ी रोकी और स्नेहा को लेकर अंदर चल पड़ी। मुख्य द्वार पर ही स्नेहा के कदम ठिठक गए, जहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था,

पालना..अपना घर।

"यह कहां ले आई आप मुझे मेडम?"स्नेहा से अब अपनी उत्सुकता दबाई नहीं जा रही थी। 

"अंदर चलो, सब बताती हूं।" अंदर घुसते ही वहां की वार्डन ने डाक्टर नीरा का अभिवादन किया और एक कमरे की तरफ ले गई, जहां नवजात शिशुओं से लेकर दो तीन साल के आठ दस बच्चों की किलकारियां गूंज रही थी। नीरा ने सब बच्चों को दुलारा और वार्डन को उनके स्वास्थ्य संबंधी कुछ हिदायतें दे दूसरे कमरे में आ गई।


"मेडम! आप बैठिए, मैं जलपान का इंतजाम करती हूं।"वार्डन ने कहा और बाहर निकल गई।


"बैठो स्नेहा, हैरान मत हो। तुम्हारे मन में उमड़ रहे सब सवालों का जवाब दूंगी अभी। तुम्हारी आयु में बहुत सी लड़कियां भटक जाती हैं अपने जीवन के उद्देश्य से, या फिर उनके साथ धोखे से कुछ ग़लत हो जाता है। ऐसी ही किसी भूल का परिणाम तुम्हारे सामने है।"स्नेहा एकदम से चौंक पड़ी यह सब सुनकर," हां!मेरी माँ ने भी ऐसी ही किसी गलती की सजा पाई थी, जो उन्हें कुंवारी माँ बनने का दंड झेलना पड़ा था। तब शायद गर्भपात की ज्यादा सुविधाएं नहीं थी। और नियति का खेल देखो, मुझे जन्म देते ही चल बसी वो। मेरे नानाजी ने अपने मान सम्मान को बचाने की खातिर मुझे यहां, इस अनाथालय के बाहर छोड़ दिया एक चिट्ठी लिखकर। यहीं पली बढ़ी, और यहां के संचालक मिस्टर राबर्ट डिसूजा की मेहरबानियों की वजह से मैं पढ़ लिख कर डाक्टर बन गई। आज वह इस दुनिया में नहीं है और इस अनाथाश्रम की सारी जिम्मेदारी मुझ पर है। यहां सिर्फ तीन साल तक के बच्चों को रखा जाता है और फिर उन्हें बाल विद्यालयों में शिफ्ट कर दिया जाता है।"

चाय पीते हुए डाक्टर नीरा ने अपनी बात जारी रखी,"देखो स्नेहा!एक महिला चिकित्सक होने के नाते हालांकि गर्भपात के मैं बिल्कुल खिलाफ हूं, पर तुम जैसी लड़कियां इस तरह की परिस्थिति में फंसकर बच्चों को जन्म तो दे देती हैं, पर समाज और परिवार के डर से उन्हें भटकने के लिए छोड़ देती हैं या अनाथालयों के पालनों में छोड़ जाती हैं। सब को मिस्टर राबर्ट डिसूजा जैसे देवता का संरक्षण नहीं मिलता। आजकल के अनाथालयों की दुर्व्यवस्था के बारे में समाचार तो सुने होंगे न तुमने.."एक लम्बी श्वास छोड़ते हुए डाक्टर नीरा बोली," सोच लो,अब फैसला तुम्हारे हाथ में है।"


"सोचना क्या मेडम? इस पालने के लिए एक और अनाथ को धरती पर नहीं लाऊंगी, पर एक रिक्वेस्ट है। मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ यहां पर अपनी सेवाएं देना चाहती हूं। इन बच्चों में अपना पर्याय बांटना चाहती हूं।क्या यह मुमकिन है?"


"क्यों नहीं?" डाक्टर नीरा ने स्नेहा को गले से लगाते हुए कहा।.


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