पदचाप
पदचाप
वुहान में काफ़ी वक्त पहले दस्तक दे चुका था। धीरे-धीरे पैर पसारने शुरू कर दिये।लेकिन गंभीरता से नहींलिया गया तो चीन की और बढ़ चला। बहुत छुपाया गया।अन्य देशों को तब तक नहीं बताया गया जब तकअपना विकराल रूप दिखा हर और तबाही का मंजर दिखाने फैल नहीं गया।जब क़ाबू से बाहर हो गई सारीस्थिति तो दुनिया को बताया गया इस ख़ौफ़नाक महामारी के विषय में।चीन, वुहान से निकले बाशिंदे अपनेअपनों को छू कर , गले मिल कर बहुत गर्मजोशी में प्यार से हाथ मिला कर तोहफ़े में इस भयंकर महामारी कोदे रहे थे।मज़े की बात ये कि उनको खुद भी अन्दाज़ा नहीं कितने देशों को ये वायरस धीरे धीरे अपनी पदचापसुना रहा था।सारे देश इस विषाणु की गंभीर पदचाप को समझ नहीं पा रहे थे जब तक उन्होंने समझा तबतक कई देशों की स्थितियाँ बहुत
गम्भीर हो चली थी। सब लोगों के जीवन की दशा ही बदल दी जब भारत मेंकोरोना की पदचाप सुनाई दी।बाहर खुली फ़िज़ा में घूमने वाला मानुष स्वमँ को घर में क़ैद करने को मजबूरहुआ।और क़ैद जानवर खुली हवाओं में साँस लेने बाहर निकल पड़े। मानव ने प्राकृतिक सम्पदा का हननकिया , जानवरों को बेघर कर।खुद के स्वाद के लिए निरीह पशुओं को तड़पा -तड़पा कर मारा और अपने हीउदर को क़ब्रिस्तान बना लिया।हवाओं में इतना प्रदूषण भर , हवा को ज़हरीला कर डाला कि बाहर निकले तोचेहरा खुद का काला मिला।नदियों के जीवन पर खुद का अख़्तियार कर गन्दगी का भण्डार बना डाला।कितना रोंदा इस धरती को कि फूट -फूट कर लावा बाहर निकला।मानव हो कर खुद को भगवान समझ आनेवाले संकटपूर्ण पलों की “पदचाप “को अनसुना कर ज़ुल्म करता चला गया।
जब अन्याय दुनियाँ मे गहराया तो प्राकृति भी अपना रौद्र रूप दिखलाने को मजबूर हुई है।जानवरों के रूपसे आकर जीवन के लिये विकराल बनी।
“ हो स्वार्थ के वशीभूत ये मानव
है खुद को ही भूल गया
अमर चिरंतन आत्मतत्व को
विस्मृत कर ये , डोल गया “
इस बीते वक्त से सबक़ ले और आने वाले समय के लिये मृगतृष्णा की दौड़ ख़त्म कर जीवन में नव ऊर्जा कासंचार करे।यूँ भी सोचें तो वरदान बने हैं , ये लाकडाउन के संकट के लम्हें।हम सबके लिये तो क्यूँ ना एकनये जीवन के आयाम को खूबसूरत सा अंजाम दे।इस कोरोना की दुख पदचाप की ध्वनि को सुन्दर जीवनका राग बना डालें।
“जीओ और जीने दो “को जीवन का महामन्त्र बना डाले।