प्यार के रूप अनेक
प्यार के रूप अनेक
कह दो एक बार सजना..
कितना है प्यार सजना..
पर हाय रे भोले भण्डारी,, आँखे बंद किए जाने किस दुनिया में विचरण कर रहे हैं,,, अरे भई,, हम अपने भोले भण्डारी की बात कर रहे हैं,,अब आप सोचेंगे की हम इन्हें क्यों शामिल कर रहे हैं,,
बताते हैं,, बताते हैं,,, जरा भूमिका तो बने...
समझ नहीं आता कि प्यार को नंबर के हिसाब से कैसे क्रम दें.
जानू तुम ही मेरा पहला और आखिरी प्यार हो,, कहने वाले लड़के और लड़कियों की तो बल्ले बल्ले है ये विषय देखकर...
आज दूसरा कल तीसरा और,,,,,,,,, गिनती तो है,,, कभी रुकती है भला,,
दूसरा प्यार से मतलब ये थोड़ी न होता है कि एक के बाद किसी दूसरे से प्यार हो तो वो दूसरा प्यार कहलाये...
अरे भई,,, जिस से आप प्यार करते हैं उसे ही नए नए रोल देते जाइए... लाइन लग जाएगी दूसरे तीसरे और आगे आगे आगे,,,,,
वैसे ये आइडिया हमे श्रीमान जी से मिला था.. और ये एकदम सच बता रहे हैं,,, वो पढ़ेंगे तो कहेंगे कि,, बड़ी खतरनाक होती जा रही हो, सारी पोल पट्टी खोले जा रही हो...
वो बाद में देखेंगे,, पहले उनकी कारस्तानी बताते हैं...
खुराफाती में तो उनकी कोई बराबरी कर ले,, नामुमकिन है...
हम लोग नये नये साथी बने थे, तब कि बात है,, एक दिन ना जाने क्या सूझी उन्हें,,, धोबी बनकर तशरीफ ले आए..
हम देखते ही रह गए... ये क्या हुलिया बना रखा है आपने????
बहन जी,, कपड़ा लत्ता दे दो,, धो देते हैं...
गुस्सा तो बहुत आया संबोधन सुनकर..
ये क्या कहे जा रहे हैं आप.. कुछ भी तो मत कहिये न..
अरे बहन जी,, क्या गलत कह रहे हैं,, अभी प्रोफेसर साहब जाते जाते कह गए कि आपके पास आकर कपड़ा ले जाएं धोने के वास्ते,, जल्दी से दे दीजिए,, और भी घर जाना है..
हे शिव,, बस भी करिए प्लीज़,,, हम हाथ जोड़ते हैं आपके..
अरे अरे बहन जी....
सबसे पहले तो ये संबोधन बंद करिए आप, हमने जरा गुस्से से कहा..
तो फिर क्या कहें आपको???बड़ी मासूमियत और गम्भीरता लिए उन्होंने पूछा..
अब तक हम समझ चुके थे कि ये कमर कस कर तैयार हैं हमें परेशान करने के लिए.. तो हम भी जरा उनकी बोली बोलने लगे...
देखो भैया....
मेमसाब,,,,, भैया मत बोलिए.. तुरन्त हमारे शब्द का रिएक्शन आया..
बमुश्किल अपनी हँसी को दबा कर हमने पूछा...
तो क्या कहें...
रामू नाम है हमारा.. वही कहिये..
अब तक अपने कैरेक्टर से टस से मस नहीं हुए थे ये...
अच्छा, रामू.....
साहब ने क्या कहा..??
जी, वो बोले रहे की घर जाकर मेम साब से कपड़ा ले जाओ...
बस इतना ही बोले????
जी,, बस इतना ही...
उनके कपड़े ही दूँ या मेरे भी....
हमारी इस बात ने उन्हें थोड़ा सा,, बिल्कुल जरा सा परेशान किया,,, क्योंकि उन्हें अब अंदाज लग चुका था कि हम क्या कर सकते हैं...फिर भी खुद को सम्भाल कर उन्होंने कहा...
साहब ने ऐसा तो नहीं कहा है,,, पर आप चाहतीं हैं तो ठीक है....
ओह अच्छा,,,
चलो अंदर...
काहे मेम साब???
कपड़े दूंगी न,,,
नहीं जी,,, हम यहीं बैठते हैं, आप ला दो...
देखो रामू,,, अंदर चलो वर्ना साहब को बता दूंगी की तुम आए ही नहीं थे कपड़े लेने... फिर तुम उनका गुस्सा जानते ही हो..
जनाब कैरेक्टर से बाहर निकलने को कतई तैयार नहीं थे..
नहीं मेम साब,, आप साहब के कपड़े ही दे दो, हम तो अंदर नहीं आयेंगे...
अच्छा ठीक है,, हम यहीं दे देते हैं अपने कपड़े... कहते हुए हमने अपना दुपट्टा निकाला ही था कि धोबी जी उठ गए...
ओये नकचढी,,, ये क्या कर रही हो....
क्यों जी,,, बड़े धोबी बने बैठे थे, अब क्या हुआ....
मत पूछो यार,, कहते हुए इन्होंने कस कर गले से लगा लिया... अब विस्तार तो नहीं दे सकते हम इस धोबी और हमारे मिलन की... पर उसके बाद...... हमारा दूसरा प्यार धोबी तीसरा माली चौथा टेलर मास्टर,,, और यूं गिनती बढ़ती रही..
कुछ दिन पहले ही इन्होंने याद किया कि काफी दिनों से माली धोबी और टेलर नहीं आया...
हम ने कहा,,, हमें भी उनकी बहुत याद आ रही है...
प्यार के अनगिनत स्वरूप होते हैं... हर रूप में आपका प्यार आपके सामने होता है... नंबर कम पड़ सकते हैं पर प्यार के रूप नहीं.. तो बस अपने साथी के स्वरूप को बदलिए और नंबर बढ़ाते रहिए...
राधा भी तो कान्हा को यदाकदा गोपियों की तरह सजाया करतीं थीं...