Kishan Negi

Romance

5.0  

Kishan Negi

Romance

वान्या द पहाड़न गर्ल

वान्या द पहाड़न गर्ल

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ये कहानी उत्तराखण्ड की ऊंची चोटियों पर बसे गांव की एक चुलबुले स्वभाव की लड़की वान्या की है। अपने सपनों को लेकर ये बहुत ही जिद्दी और जुनूनी है। सपनों की ऊंची उड़ान भरकर वान्या दिल्ली आती है। कहानी बहुत ही रोमांचक और प्रेरणा दायक है। क्या वान्या के सपने पूरे होंगे? क्या उसको कामयाबी मिलेगी? क्या उसकी जिद्द उसे मंजिल तक पहुंचाएगी? ये सब जानने के लिए प्रिय पाठकों से अनुरोध है कि कहानी को अन्त जरूर पढ़ें और अपने सुझाव दें। चलो कहानी शुरु करते हैं।


"वान्या, तुझे कितनी बार समझाया है कि अपनी गाय को हमारे खेतों की तरफ़ मत चराया कर। धान की फ़सल बर्बाद कर दी है तेरी गाय ने लेकिन तू सुनती कहाँ है।" 


वान्या, "अरे नंदी काकी, लाली (गाय का नाम) को भूख लगी होगी तो थोड़ा-सा धान खा लिया होगा। गुस्सा क्यों होती हो धान तो फिर उग जायेगा।" 


नंदी काकी, "काकी से ज़ुबान लड़ाती है। देख आज़ तेरी माँ से तेरी शिकायत करती हूँ। जंगली सुवरों ने पहले ही नाक में दम कर रक्खा है बाक़ी कसर तेरी लाली ने पूरी कर दी है।" 


वान्या, "लेकिन काकी तुम्हारे खेत के धान तो लाली ने खाए हैं फिर शिकायत मेरी क्यों। शिकायत ही करनी है तो लाली की करो मेरी नहीं। वैसे भी तुम्हारी शिकायत से लाली को कोई फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं है क्योंकि माँ लाली को मुझसे भी अधिक प्यार करती है।" वान्या की सरलता और मासूमियत पर नंदी काकी को भी हंसी आ गई। नंदी काकी की बातों को अनसुना करके वान्या लाली को हांकते हुए वहाँ से निकल पड़ी। 


उत्तराखंड के चमोली जिले की ऊंची पहाड़ी पर एक छोटा-सा गाँव धनोली बसा हुआ है जो चारों तरफ़ से देवदार और चीड़ के जंगलों से घिरा हुआ है। बुरांश के लाल रंग के फूल यहाँ की प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं। तैरते हुए बादलों के बीच बर्फ से ढकी हुई ऊंची-ऊंची पर्वतमालाएँ मन को मोह लेती हैं। पर्वतों का आकर्षण सदैव अदभुत होता है। देवस्वरूप व पूजनीय पर्वत विस्मयकारी व सौंदर्य से भरपूर होते हैं और सैर-सपाटे के लिए आकर्षित करते हैं। 


यहाँ पर दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव जंतु पाए जाते हैं। यहाँ के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और हरी भरी छटा देखते ही बनती है। पतली घुमावदार सड़कें, हरे-भरे पेड़, दूर तक नज़र आती ऊंची-नीची पहाड़ियाँ, एक ओर दूर नज़र आते बर्फ से ढंके सफेद पहाड़, दूसरी ओर पहाड़ों की गोद में बने छोटे-छोटे घरों से बसे गांव और गांवों में रहने वाले भोले भाले लोग।


वान्या इसी गाँव की एक छोटी बच्ची है जो स्वभाव से थोड़ी चुलबुल और थोड़ी-सी बातूनी है लेकिन मिलनसार भी है। गाँव के सभी बच्चे इसकी संगत में रहकर बचपन का भरपूर आनंद लेते हैं। शिक्षा के नाम पर गाँव में एक प्राथमिक पाठशाला है किंतु आगे की पढ़ाई के लिए ऊबड़ खाबड़ पथरीली पगडंडियों से गुजरकर गाँव से पांच किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इसलिए गाँव के लोग अपनी बच्चियों को इतनी दूर भेजने से कतराते हैं। 


वान्या एक बहुत ही साधारण परिवार से आती है। उसके पिता सुबेदार हरीश पांडे कारगिल युद्ध में शहीद हो चुके थे। परिवार में अब उसकी माँ और छोटा भाई विष्णु थे। उसके पिता की अंतिम ईच्छा थी कि उनके दोनों बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करके घर का नाम रोशन करें। 


गांव से प्राथमिक शिक्षा पूरी करके वान्या आगे की पढ़ाई भी जारी रखना चाहती थी। उसकी माँ दमयंती भी चाहती थी की वान्या को पढ़ा लिखा कर अपने स्वर्गीय पति सुबेदार हरीश पांडे की अंतिम ईच्छा को पूरी करे लेकिन कैसे। गाँव से इतनी दूर पढ़ने के लिए सिर्फ़ लड़के ही जाते थे तो वान्या किसके साथ जायेगी, बस यही चिंता वान्या की माँ दमयंती को दिन रात सता रही थी। 


बचपन से ही वान्या को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था इसलिए पढ़ाई में गाँव की दूसरी लड़कियों से ज़्यादा होशियार थी। गाँव के प्राथमिक पाठशाला के हेड मास्टर नंदा बल्लभ जोशी उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे। हेड मास्टर जी वान्या के फ़ौजी पिता के बचपन के अच्छे मित्र होने के कारण हमेशा चाहते थे कि वान्या आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखे। 


वान्या भी अपने फ़ौजी पिता की तरह जिद्दी थी तो उसने भी मन में ठान लिया था चाहे कुछ भी हो जाए अपनी पढ़ाई के जुनून को विराम नहीं देगी। गाँव के कुछ बुजुर्गों ने भी दमयंती और वान्या के इस फैसले का कड़ा विरोध किया। गाँव के प्राथमिक पाठशाला के हेड मास्टर नंदा बल्लभ जोशी जी ने भी गांव वालों को बेटियों की शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया। लेकिन कहते हैं न कि यदि होंसलों की उड़ान ऊंची हो तो आसमान को भी झुककर ज़मीन पर उतरना ही पड़ता है। 


अन्ततोगत्वा वान्या की जिद्द और जुनून के आगे गाँव वालों को झुकना ही पड़ा। वान्या की हठ और जुनून ने गाँव वालों के मन और मस्तिष्क में एक नई उमंग और ऊर्जा का संचार कर दिया था जिस कारण गाँव की बेटियों के लिए उच्च शिक्षा के कपाट खुल चुके थे। वान्या के साथ अब गाँव की दूसरी बच्चियाँ भी आगे की पढ़ाई के लिए गाँव से पांच किलोमीटर दूर जाने लगी। 


उत्तराखंड के गाँवों में आज़ भी ये दिनचर्या है कि स्कूल से आने के बाद भी लड़कियों को घर व खेती के कामों में घरवालों का हाथ बंटाना पड़ता है। इसे उनकी मजबूरी कहा जाय या उनकी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा मगर ये हक़ीक़त है। गाँव की दूसरी बेटियों की तरह वान्या को भी स्कूल से लौटने के बाद गाय व बकरियाँ चराने जंगल ले जाना पड़ता था। कभी गागर उठाकर नदी से पानी लाना तो कभी खेतों में माँ दमयंती का हाथ बंटाना। क्योंकि पढ़ाई का समय रात को ही मिलता था तो देर रात तक दिल लगाकर पढ़ाई करती। 


एक तरफ़ समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था तो दूसरी तरफ़ वान्या भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास कर रही थी। जून का महीना था, आज़ दसवीं बोर्ड की परीक्षा परिणाम की घोषणा होनी थी। दसवीं बोर्ड की परीक्षा वान्या ने न केवल अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की बल्कि पूरे चमोली जिले में प्रथम स्थान हासिल किया था। उसकी इस सफलता पर पूरा गाँव गर्व महसूस कर रहा था। 


वान्या की सफ़लता की ख़बर जब वान्या के पुराने हेड मास्टर नंदा बल्लभ जोशी जी के कानों में गूंजी तो खुशियों की भागीरथी में डुबकी लगाए सीधे वान्या से मिलने उसके घर जा पहुँचे। 


घर पर वान्या की माँ दमयंती को देखते ही कहा, "भाभी जी प्रणाम। बेटी वान्या की सफ़लता पर आपको बहुत-बहुत बधाई। वान्या बेटी कहीं नज़र नहीं आ रही है, जंगल घास काटने गई है क्या?" 


दमयंती, "मास्टर जी आपको भी बहुत-बहुत बधाई। ये सब आपकी ही शिक्षा का परिणाम है। यदि समय पर आपका साथ न मिला होता तो वान्या की पढ़ाई लिखाई तो बहुत पहले ही छूट गई होती।" 


वान्या जो अभी तक गौशाला में गाय को घास डाल रही थी, हेड मास्टर जी की आवाज़ सुनते ही दौड़ कर बाहर आई। आते ही हेड मास्टर जी के चरणों में झुककर प्रणाम किया और उनसे लिपट कर फफक-फफक कर रोने लगी। ये आंसू मात्र आंसू नहीं एक शिष्या के नयनों से झरते वह मोती थे जो गुरु शिष्य की परंपरा को आगे बढ़ा रहे थे। हेड मास्टर जी अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो बैठे और वान्या को आशीर्वाद देते हुए उनकी आंखों से भी टिप-टिप आंसू टपकने लगे। 


टपकते आंसुओं को साफ़ करते हुए हेड मास्टर जी ने वान्या से पूछा, "वान्या, अब आगे क्या करने की सोची है?" 


वान्या, "मास्टर जी, परिणाम आने के बाद बस इसी उलझन में हूँ कि आगे कौन से विषय चुनूं। डॉक्टर या इंजीनियर बनने की ओर मेरा कोई ख़ास रुझान नहीं है, अब आप ही कोई विकल्प बताओ।" 


सिर खुजाते हुए हेड मास्टर जी, "वान्या, तुम्हारी बातों से ऐसा लगता है कि विज्ञान विषय में तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं है तो अब दो ही विकल्प बचते हैं, ह्यूमैनिटी और कॉमर्स। अब तुमको निर्णय लेना है कि ह्यूमैनिटी और कॉमर्स में से किसे चुनना है।" 


वान्या, "मास्टर जी, पिताजी हमेशा कहा करते थे कि उनकी बेटी दूसरों से हटकर कुछ अलग करेगी। मेरी इच्छा भी यही है कि कुछ ऐसा करूं जिसे करने में मुझे भी आनन्द की अनुभूति हो।" 


वान्या के मुख से कुछ अलग करने की जिद्द सुनकर एक बार तो हेड मास्टर जी भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए थे लेकिन उनको ये बात भली भांति पता थी कि बचपन से ही वान्या को मुश्किल रास्तों पर चलना ज़्यादा आसान लगता था। ये जिद्दी लड़की एक बार जो ठान लेती है उसे करके ही दम लेती है। खतरों से खेलना मानो इसका शौक है। इतने में वान्या की माँ दमयंती हेड मास्टर जी के लिए चाय बनाकर ले आई। 


फिर एक लंबी सांस लेते हुए हेड मास्टर जी बोले, "बेटा, दिल्ली में मेरा भतीजा राघव सरकारी बैंक में अधिकारी है और दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही उसने बी कॉम भी की है। उससे बात करके मैं दो दिन बाद फिर तुमसे मिलता हूँ।" अपनी बात ख़त्म करके हेड मास्टर जी निकल पड़े। 


चमोली ज़िला के कलेक्टर दीपक रावत जी को जब पता चला कि धनोली गाँव के एक साधारण किसान परिवार में जन्मी वान्या नाम की लड़की ने दसवीं की परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम स्थान हासिल किया हैं तो एक बार उससे मिलने को मन हुआ। कलेक्टर साहब को जब ये भी मालूम हुआ कि वान्या के पिता कारगिल युद्ध में टाइगर हिल को दुश्मन के कब्जे से आज़ाद कराते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे तो उनका मन बहुत भावुक हो गया था। 


इतवार का दिन था, पहाड़ों की बर्फीली चोटियों से ठंडी हवाएँ चलकर वातावरण को गुदगुदा रही थी। कलेक्टर दीपक रावत जी अपने सरकारी आवास से निकल कर वान्या से मिलने धनोली गाँव की तरफ़ निकल पड़े। गाँव में रहने वाली वान्या की सहेली पदमा दौड़कर वान्या के घर गई और बताया कि कोई उससे मिलने आया है। उस वक़्त वान्या गौशाला से गोबर निकाल रही थी, उसके दोनों हाथ गोबर में सने हुए थे। 


जैसे ही कलेक्टर साहब की नज़र वान्या पर पड़ी तो मुस्कराए बिना न रह सके। इतने में वान्या की माँ भी बाहर आंगन में आ चुकी थी। कलेक्टर साहब अपना परिचय देते हुए आंगन की दीवार पर बैठ गए। गोबर में सने अपने हाथ धोकर वान्या भी कलेक्टर के पास बैठ गई। वान्या के हाथ में मिठाई का पैकेट थमाते हुए उसे आशीर्वाद दिया। 


इसी दौरान वान्या की माँ दमयंती ने कलेक्टर साहब को चाय का कप थमाते हुए उनका आभार व्यक्त किया। कुछ देर तक वान्या की पढ़ाई के बारे में चर्चा होती रही। वान्या की बात करने की बेबाक शैली से कलेक्टर साहब बहुत ही प्रभावित थे। अन्त में कलेक्टर साहब ने वान्या से कहा कि वह उसकी क्या मदद कर सकते हैं। 


उत्सुकता भरी नज़रों से वान्या ने कहा, "सर, जैसा मैंने बताया कि विज्ञान विषय में मेरी कोई रुचि नहीं है तो आप बताओ मैं अब कौन-सा विषय चुनूं।" 


क्योंकि कलेक्टर साहब स्वयं दिल्ली के जे एन यू से पढ़ाई करके आई.ए.एस बने थे तो उनको हर विषय की सटीक जानकारी थी। वान्या से बातें करके इतना तो समझ चुके थे कि ये बच्ची ज़िन्दगी की चुनौतियों से घबराने वाली नहीं है। अंततः वान्या को कॉमर्स विषय लेने की सलाह देते हुए कहा कि बी.कॉम. की पढ़ाई पूरी होते ही जी जान से चार्टर्ड अकाउंटेंट की परीक्षा की तैयारी में जुट जाना और अर्जुन की तरह अपने इस लक्ष्य पर नजरें टिकाए रखना। इसके बाद कलेक्टर साहब वहाँ से चल पड़े। 


कलेक्टर दीपक रावत की बातों से प्रेरित हो कर अब चार्टर्ड अकाउंटेंसी को ही वान्या ने अपना पहला और अंतिम लक्ष्य बनाया। इसी मार्ग पर चलकर अपना भविष्य संवारने की योजना बनाई। क्योंकि उसके पिता देश के लिए शहीद हुए थे तो भारतीय सेना के कोटे से उसका दाखिला दिल्ली कैंट स्थित केंद्रीय विद्यालय में ग्यारहवीं कक्षा में कॉमर्स सेक्शन में हो गया था। स्कूल के गर्ल्स हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई करती थी। 


केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई के दौरान वान्या के रागिनी, रजत और दुष्यंत जैसे कुछ अच्छे दोस्त बने जो चार्टेड अकाउंटेंट बनना चाहते थे। इन सबने तय किया कि जब सभी एक ही क्षेत्र में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं तो फिर क्यों न एक ही कॉलेज में दाखिला लिया जाए। केंद्रीय विद्यालय से बारहवीं पास करने के बाद इन सभी दोस्तों का दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में बी कॉम (ऑनर्स) में दाखिला हो गया। 


कॉलेज में वान्या का पहला दिन था, हल्के धानी रंग का सूट पहने अपने कॉलेज के लिए निकल पड़ी। नया कॉलेज, नए साथी, नया सत्र के साथ कॉलेज में आने वाली छात्राएँ व छात्र पूरे उत्साह में दिखे। स्कूल का अनुशासित जीवन को पीछे छोड़कर वान्या को भी नई आज़ादी का अनुभव हो रहा था। नई ऊर्जा और नए उत्साह के साथ कॉलेज में पहले दिन आने वाले छात्र छात्राएँ अपने आपको इस नए कॉलेज के लिए नींव का पत्थर बनकर आने वाले छात्रों के लिए मिशाल बनना चाहते है। 


एक कॉलेज किसी भी छात्र जीवन में एक नई शुरुआत है। स्कूल के बहुत अनुशासित जीवन के बाद कॉलेज आता है। यह हमें स्वतंत्रता के साथ-साथ जिम्मेदारी की भावना भी प्रदान करता है। हम अचानक यह सोचना शुरू कर देते हैं कि हम वास्तव में बड़े हो चुके हैं और अब हम कुछ भी कर सकते हैं। हम एक स्वतंत्र पक्षी की तरह महसूस करते हैं।


जैसे ही वान्या कॉलेज के मुख्य द्वार पर पहुँची तो प्रथम अनुभव ये हुआ कि वहाँ का वातावरण व परिवेश काफ़ी ताज़गी भरा था। चारों तरफ़ नए जोश और नई ऊर्जा के सरोवर में नहाए लडक़े-लड़कियों की भीड़-सी उमड़ रही थी। उनकी हंसी और ठहाके कॉलेज के प्रांगण को गुंजायमान कर रहे थे जो इशारा कर रहा था कि किसी देश का कैशोर्य यौवन की तरफ़ क़दम बढ़ाता कुलांचें भर रहा था। मुस्कानों से सभी के चेहरे गुलाब की नव पंखुड़ियों की भांति खिलखिला रहे थे।


कॉलेज कैम्पस (प्रांगण) में क़दम रखते ही वान्या का हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था। ख़्याल आ रहा था कि यहाँ का वातावरण कैसा होगा, कक्षा में सहपाठियों तथा प्राध्यापकों से कैसा तालमेल रहेगा आदि अनेक प्रकार के भाव अन्तर्मन को आंदोलित कर रहे थे। बड़ी संख्या में छात्रों का आगमन हो रहा था। प्राय: सभी छात्र एक-दूसरे से अपरिचित थे। सभी एक-दूसरे को उत्सुकतापूर्ण मुद्रा में देख रहे थे। 


कॉलेज के अंदर प्रवेश करते ही वान्या अपने स्कूल के साथियों को तलाश ही रही थी कि तभी पीछे से किसीने उसका नाम लेकर पुकारा। उसने मुड़कर देखा तो सामने से रजत और दामिनी आते हुए दिखाई दिए। 


तभी वान्या ने कहा, "यार रजत, दुष्यंत कहीं भी नज़र नहीं आ रहा है। क्या तुम लोगों ने देखा है उसे।" 


मुस्कराते हुए दामिनी ने कहा, "अरे बेचैन क्यों होती है तेरा देवदास आता ही होगा।" 


इतने में झूमता हुआ दुष्यंत आया और बोला, "मैं तुम लोगों को ही ढूँढ़ रहा था।" 


वान्या पर तंज कसते हुए दामिनी ने कहा, "शैतान का नाम लिया और शैतान हाज़िर। वान्या तेरा देवदास तेरे सामने खड़ा है तनिक मुस्करा तो दे।" 


वान्या, "देख दामिनी, आज़ कॉलेज का पहला दिन है हंसी मज़ाक करने के लिए तेरे पास अभी पूरे तीन साल हैं, कुछ समझी क्या।" इतने में सामने से कुछ सीनियर छात्र छात्राओं की एक टोली उनके पास आकर ठहर गई। वान्या और उसके साथी समझ गए थे कि अब उनकी भी रैगिंग होने वाली है। 


टोली की एक छात्रा, "दोस्तो घबराओ मत। हम तुम्हारी रैगिंग करने नहीं बल्कि अपने नए दोस्तों का स्वागत करने आए हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस प्रतिष्ठित कॉलेज में तुम सबका स्वागत है।" 


टोली का दूसरा लड़का, "इस कॉलेज का ये रिवाज़ है कि कॉलेज में नए छात्रों का हम गुजाब का फूल देकर अभिवादन करते हैं।“ फिर सबने वान्या, दामिनी, दुष्यंत और रजत के हाथों में लाल रंग का गुलाब थमा दिया। उनमें से एक लड़की, जिसका नाम रश्मि था, ने मुस्कराते हुए वान्या की ओर देखा और कहा," तुम्हारा क्या नाम है, सूरत से तो एकदम पहाड़ों की रहने वाली लगती हो। " 


वान्या ने जवाब दिया, "बिल्कुल ठीक पहचाना तुमने। मैं उत्तराखंड की रहने वाली हूँ।" 


रागिनी, "तो ठीक है आज़ से हम तुमको पहाड़न गर्ल नाम से पुकारेंगे।" रागिनी की बात सुनकर वतावरण ज़ोर के ठहाकों से गूंज उठा। इस प्रकार वान्या को आज़ एक नया नाम मिल गया था "द पहाड़न गर्ल"। इसके बाद सभी साथी कैंटीन में चाय पीने चले गए। कॉलेज में प्रथम दिन का अनुभव वान्या के लिए अत्यन्त उत्साहवर्द्धक एवं आनन्दपूर्ण रहा। यह उसके जीवन के चिरस्मरणीय क्षण थे। 


धीरे धीरे वान्या और उसके सभी साथी कॉलेज के नए माहौल में ढल चुके थे। उनका अधिकतर समय कॉलेज लाइब्रेरी में कटता था। आज़ टैक्सेशन के प्रोफेसर अविनाश जैन छुट्टी पर थे तो सभी साथी कॉलेज गार्डन में बैठकर अपने पाठ्यक्रम पर चर्चा कर रहे थे। 


वान्या, "दो महीने बाद परीक्षा होने वाली हैं इसलिए हमें गंभीरता से पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित करना चाहिए।" 


रजत, "पहाड़न् गर्ल, यार जब देखो सिर्फ़ पढ़ाई की बात करती है। यार कालेज आए हैं तो थोड़ी मौज मस्ती भी होनी चाहिए। क्यों रागिनी ठीक कहा है न मैंने?" 


वान्या की तरफ़ देखते हुए रागिनी ने जवाब दिया, "हाँ यार बात तो तेरी सही है। कॉलेज के बाद फिर कहाँ ये आज़ादी, ये मौज मस्ती, ये लड़कपन के दिन।" 


रागिनी की आंखों में घूरते हुए वान्या ने कहा, "रागिनी मैं जानती हूँ तू ये सब मुझे चिढ़ाने के लिए कर रही है लेकिन तुम सब मेरी एक बात ध्यान से सुनो, यहाँ हम मौज मस्ती नहीं बल्कि अपने सुनहरे भविष्य की बुनियाद रखने आए हैं।" 


रजत, "अरे पहाड़न, मैं तो बस मज़ाक कर रहा था और तू दिल पर ले बैठी।" 


वान्या, "देख रजत, तू जानता है कि कॉलेज के बाद हम सबका एक ही लक्ष्य है चार्टेड एकाउंटेंट बनना। तेरा क्या इरादा बदल गया तो फैमिली बिजनेस में चला जायेगा। ज़रा हमारे बारे में भी सोच।" 


दुष्यंत जो अभी तक शांतचित मन से सबकी बातें सुन रहा था, रजत को देखते हुए बोला, "वान्या सही तो कह रही है कि हमें अपनी पढ़ाई पर अधिक ध्यान देना चाहिए।" 


रागिनी, "वान्या, यदि तेरे अमृत प्रवचन ख़त्म हो गए हों तो कैंटीन चलते हैं।" और फिर सभी साथी कैंटीन में चाय पीने चले गए। 


रजत एक सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखता था। दिल्ली के चांदनी चौक में साड़ियों के उनके तीन शो रूम थे। कॉलेज में अक्सर मर्सिडीज कार में आता था। उसे पता था कि यदि सी. ए. नहीं हो पाई तो फैमिली बिजनेस संभालेगा इसलिए वह पढ़ाई को इतनी गंभीरता से नहीं ले रहा था। हर दम मौज मस्ती और घूमने फिरने की बातें किया करता था। 


रागिनी के पिता भारतीय सेना में थे तो वह अपने भविष्य के बारे में अधिक सतर्क थी। शायद यही कारण था कि वान्या और रागिनी की आपस में ख़ूब जमती थी। लेकिन इधर कुछ दिनों से रागिनी को महसूस हो रहा था कि रजत वान्या को लेकर कुछ ज़्यादा ही संजीदा हो रहा था। उसने तत्काल इस बारे में वान्या से बात करना उचित समझा। 


आज़ क्लास ख़त्म होने के बाद रागिनी ने वान्या का हाथ पकड़ा और उसे कॉलेज गार्डन में चलने को कहा। दोनों गार्डन के मखमली घास पर बैठ गए।


बैठते ही वान्या ने कहा, "रागिनी मुझे यहाँ क्यों लेकर आई है?" 


रागिनी, "वान्या, रजत के बारे में तेरा क्या ख़्याल है?" 


वान्या, "अच्छा लड़का है, बिजनेस फैमिली से आता है बस पढ़ाई में थोड़ा गंभीर नहीं है। मगर तू ये सब मुझसे क्यों पूछ रही है?" 


रागिनी, "मुझे लगता है रजत तेरे बारे में कुछ ज़्यादा ही गंभीर है। दोस्ती अपनी जगह है और रिश्ते अपनी जगह। हम दोनों बहुत ही साधारण परिवार से हैं और दोनों का लक्ष्य भी एक ही है।" 


वान्या, "लेकिन बुझे ऐसा लगता नहीं है। अगर तू कहती है तो मैं आज़ ही इस बारे में उससे बात करती हूँ।" 


कुछ ही देर में कहीं से घूमते हुए रजत और दुष्यंत भी वहाँ पहुँच जाते हैं। आते ही रजत कहता है, "क्या बात है आज़ तो वान्या द पहाड़न गर्ल मूंह फुलाए बैठी है। सब ठीक तो है न।" 


रजत की बात काटते हुए दुष्यंत ने कहा, "रागिनी तुझे कुछ किताबें खरीदनी हैं न। चल नई सड़क चलते हैं मुझे भी अकाउंटेंसी और इकोनॉनिक्स की किताबें खरीदनी हैं।" दुष्यंत की मोटर साइकिल में बैठकर दोनों चांदनी चौक के पास नई सड़क निकल गए। रजत वहीं वान्या के बगल में बैठ गया। 


मौके का सही फायदा उठाते हुए वान्या ने रजत से कहा, "रजत, सच-सच बताना कि तू मेरे बारे में क्या सोचता है!" 


वान्या का प्रश्न सुनकर रजत का चेहरा झुक गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बताए वह उससे बेइंतेहा मोहब्बत करता है। उसकी आंखों के सामने असमंजस के काले बादल मंडराने लगे थे। एक अजीब-सी कशमकश भीतर ही भीतर मचल रही थी। समुद्री तूफान की लहरों में मानो ज़िन्दगी की कश्ती डगमगा रही थी। 


लंबी चुप्पी को विराम देते हुए वान्या ने आगे कहा, "रजत, बेशक तू मुझे कुछ मत बता लेकिन मुझे लेकर तेरे मन में उमड़ रहे चक्रवात की रफ़्तार और उसकी तीव्रता को मैं भली भांति समझती हूँ। यार ये इश्क़ और मोहब्बत की बाते सुनने में तो बहुत रोमांच करने वाली लगती हैं लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि वास्तविकता से इनका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है।" 


रुआंसे स्वर में रजत ने जवाब दिया, "वान्या, सच में मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ लेकिन कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं किया। मैं तेरे शारीरिक आकर्षण से नहीं बल्कि ज़िन्दगी को लेकर तेरा जो नज़रिया उससे प्रभावित हूँ।" 


वान्या, "मुझे ख़ुशी है कि तू अपने दोस्तों से इतनी मोहब्बत करता है लेकिन इसके सिवा कुछ और भी है यार ज़िन्दगी में करने के लिए। तुझे पता है कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते ही हमें अपने लक्ष्य को भी भेदना है और उसके लिए हमें अनवरत प्रयास करने होंगे। ईश्क मोहब्बत के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है यार। क्या ख़्याल है तेरा?" 


धीमे स्वर में रजत ने कहा, "वान्या, मैं तेरी हर बात से सहमत हूँ लेकिन ये भी तो सच है कि हमसफर के बिना ज़िन्दगी का सफ़र अधूरा है।" 


वान्या, "तेरी और मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि में ज़मीन आसमान का अंतर है और दोनों का लालन पालन भी अलग-अलग परिवेश में हुआ है। कहाँ तुम एक शिक्षित व सम्पन्न परिवार से हो और कहाँ मैं एक साधारण किसान परिवार से हूँ। इसलिए हमारी जिम्मेदारियाँ भी अलग हैं। कुछ समझे मेरे देवदास।" 


रजत, "यार हमारी दोस्ती में ये सब बातें निरर्थक हैं। जब दिलों में एक दूसरे के लिए सम्मान की भावना हो तो ये रूढ़िवादी परम्परा और दकियानुसी सोच की कोई जगह नहीं बचती।" 


वान्या, "रजत, एक बात आज़ मैं तुझसे स्पष्ट कहती हूँ। मैं एक बहुत ही साधारण परिवार से सम्बंध रखती हूँ। जब मैं बहुत छोटी थी तो सर से पिता का साया छिन गया था। उनका सपना था कि ज़िन्दगी में कुछ अलग करूं इसीलिए मैंने चार्टेड एकाउंटेंट बनने का रास्ता चुना। गाँव से जब दिल्ली आई थी तो मन में पुछ सपने थे। मेरी माँ को मुझसे बहुत उम्मीदें हैं जिनको पूरा करने का मैंने संकल्प लिया है।" 


रजत, "यार तू मुझे ग़लत मत समझना। मेरे मन में जो कुछ भी था मैंने कह दिया। अपने परिवार और लक्ष्य के प्रति तेरी प्रतिबद्धता और ईमानदारी ने आज़ मेरी भी आंखें खोल दी हैं। सच में तेरी जैसी पहाड़न दोस्त पा कर गर्व महसूस होता है। आज़ मैं भी तुझे वचन देता हूँ कि तेरे लक्ष्य की राह में कभी बाधा नहीं बनूंगा। एक सच्चे दोस्त होने के नाते हर सुख दुख में इस पहाड़न् का साथ निभाऊंगा।" अपनी बात ख़त्म करते ही रजत का गला भर आया था और आंखों से मोती टपक रहे थे। 


वान्या ने अपने दुपट्टे से उसके आंसूओं को साफ़ किया और मुस्कराते हुए कहा, "देवदास, तेरी आंखों में ये आंसूं क्यों। पगले मुझे भी रुलाने का इरादा है क्या। चल बाहर चलकर आज़ तुझे गोलगप्पे खिलाती हूँ।" फिर दोनों कॉलेज कैंपस से बाहर भोला राम के गोलगप्पों का लुत्फ उठाने निकल पड़े। 


दो दिन बाद होली का त्यौहार था। वान्या और रागिनी किताबों का बैग लटकाए मेन गेट से अंदर आ ही रहे थे कि देखते हैं कॉलेज के कुछ मनचले सीनियर लड़के हाथों में गुलाल लिए लड़कियों को जबरदस्ती गुलाल लगाने का प्रयास कर रहे थे। जो लड़की गुलाल लगाने से इंकार करती उस पर फब्तियाँ कसते। 


वान्या और रागिनी जैसे ही उधर से गुजर रही थी तो एक लड़के ने फब्ती कसते हुए कहा, "पहाड़न मैडम, गुलाल तो लगवाती जाओ।" 


इतना सुनते ही वान्या पीछे की ओर मुड़ी और रागिनी से कहा, "चल इन मजनुओं की ख़बर लेते हैं।" रागिनी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश कि मगर वान्या तो जैसे अपनी ही जिद्द पर अड़ी थी।


उन लड़कों के पास जाकर बोली, "क्या कहा मुझे पहाड़न मैडम। हाँ हूँ तो तुमको क्या। पहाड़ों में पैदा हुई हूँ तो पहाड़न कहलाने में लज्जा कैसी। पहाड़न कहलाने में मुझे कोई ऐतराज नहीं है, ऐतराज है तो तुम्हारे अंदाज़ और नीयत से।" 


वान्या ने एक लड़के के हाथ से गुलाल लेकर सभी को गुलाल लगाते हुए कहा, "होली की शुभ कामनाएँ। अब तो खुश हो न।" 


उस टोली में से एक लड़के ने कहा, "मैडम हमें माफ़ करना, हमें ऐसा नहीं बोलना चाहिए था।" 


वान्या, "ठीक है आज़ से हम दोस्त हुए, मिलाओ हाथ। अब हमारा मूंह ताकते रहोगे या हमें भी गुलाल लगाओगे।" सभी लड़कों ने रागिनी और वान्या को भी गुलाल लगा कर होली की शुभ कामनाएँ दी।


लेकिन जाने से पहले वान्या ने उन लड़कों से कहा, "ये आशिक बाजी छोड़ो और पढ़ाई लिखाई में ध्यान लगाओ।" फिर रागिनी का हाथ पकड़ कर मुस्कराते हुए वहाँ से अपने क्लास रूम की तरफ़ निकल गई। वान्या की बात करने की शैली और साहस देखकर सीनियर लड़के अचंभित थे। अब तक वान्या पूरे कॉलेज में पहाड़न गर्ल के नाम से लोक-प्रिय हो चुकी थी। 


कॉलेज के तीन साल कब और कैसे बीत गए किसीको पता ही नहीं चला। पारिवारिक दवाब और मजबूरियों के कारण रजत ने सी. ए. बनने का विचार त्याग दिया और पूरा ध्यान अपने फैमिली बिजनेस पर केंद्रित करने लगा। दूसरी तरफ़ वान्या, रागिनी और दुष्यंत सी. ए. की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए लक्ष्मी नगर से कोचिंग लेने लगे। 


आज़ प्रवेश परीक्षा का परिणाम आया और तीनों को इसमें सफलता मिली थी। करोल बाग में रजत के मामा की अपनी चार्टेड एकाउंटेंट फर्म थी। अपने मामा से बात करके तीनों का इंटर्नशिप का इंतज़ाम भी कर दिया था। अब तीनों दोस्त सी. ए. ग्रुप एक और ग्रुप दो की तैयारी में जुट गए। रागिनी और वान्या तो दोनों ग्रुप में पहले ही प्रयास में सफल हो गए लेकिन दुष्यंत को कोई सफ़लता नहीं मिली। इसके बाद दुष्यंत बैंक अधिकारी की परीक्षा की तैयारी में जुट गया। दुष्यंत आज़ एक सरकारी बैंक में अधिकारी है। 


इतवार का दिन था, दुष्यन्त किसी ख़ास काम से चांदनी चौक आया हुआ था तो बाज़ार में घूमते हुए उसे रजत मिल गया। दुष्यंत ने रजत को जब बताया कि कुछ दिन पहले ही सड़क दुर्घटना में वान्या के पांव की हड्डी टूट गई है तो रजत बेचैन हो गया। अपनी मर्सिडीज कार में दुष्यन्त को बैठाकर तुरंत वान्या से मिलने राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल पहुँचा। 


रजत को देखते ही वान्या की खुशियाँ आसमान छूने लगी थी। रजत ने फुलों का गुलदस्ता वान्या को देते हुए कहा, "अब कैसी है हमारी पहाड़न दोस्त।" 


वान्या, "अरे रजत तू यहाँ! आंखों को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा यार कि तू मेरे सामने खड़ा है। तुझे किसने बताया कि मैं हॉस्पिटल में हूँ।" 


रजत, "आज़ जब दुष्यन्त ने बताया कि सड़क दुर्घटना में तेरे पांव में काफ़ी चोट आई है तो दौड़ा-दौड़ा चला आया। यार तेरी बहुत चिंता हो रही है मुझे।" 


वान्या, "चल झूठे कहीं के। चिंता होती तो मेरा एक्सीडेंट ही नहीं होता। जाने क्यों ऐसा लगता है कि तू मुझे भूल गया था। शायद इसीलिए ऊपर वाले ने मेरा एक्सीडेंट करवा दिया ताकि तू मुझसे मिल सके।" 


वान्या की भावपूर्ण बातें सुनकर रजत की आंखें भर आई थी। सोच रहा था कि कैसे बताए कि वह आज़ भी उसे बहुत याद करता है। वान्या को दिए अपने वचन उसे आज़ भी याद हैं जब उसने कहा था कि हर सुख दुख की घड़ी में वह उसके साथ खड़ा रहेगा। कुछ दिनों के बाद हॉस्पिटल से वान्या को छुट्टी मिल गई थी।


रागिनी और वान्या लक्ष्मी नगर में किराए के मकान में पेइंग गेस्ट बनकर साथ-साथ रहती थी। वान्या के ठीक होने तक रजत ने वान्या के लिए एक फुल टाईम घरेलू नौकरानी का भी इंतज़ाम कर दिया था। एक्सीडेंट होने के कारण वान्या इस बार-सी. ए. फाइनल ग्रुप की परीक्षा देने से वंचित रह गई थी जिसका उसे बहुत मलाल था। 


पूरी तरह ठीक होने के बाद वान्या एक बार फिर से सी. ए. फाइनल की तैयारी में रात दिन जुट गई। तीन महीने बाद जब सी. ए. फाइनल का परिणाम आया तो वान्या और रागिनी के पांव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। आज़ दोनों ही दोस्त चार्टर्ड अकाउंटेंट बन चुके थे। ये ख़बर जब वान्या ने गाँव में अपनी माँ दमयंती को दी तो उसकी माँ ने पूरे गाँव में मिठाई बांटी। धनोली गाँव आज़ वान्या की सफलता पर गर्व महसूस कर रहा था। 


कुछ ही दिनों बाद वान्या और रागिनी को गुरुग्राम में अलग-अलग बहुराष्ट्रीय कंपनियों में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी। गुरुग्राम में ही रजत के नाम एक दो कमरे का फ़्लैट था जो खाली पड़ा था। रजत के दवाब के कारण वान्या और रागिनी रहने के लिए इसी फ़्लैट में शिफ्ट हो गए। वान्या मन ही मन सोच रही थी कि क्या वह कभी रजत के अहसानों का ऋण चुका पायेगी, शायद कभी नहीं। कहते हैं अगर सपनों को जिद्द और जुनून के खाद पानी से सींच कर जिन्दा रखा जाए तो एक दिन सफलता अवश्य मिलती है। ये साबित करके दिखाया उत्तराखंड की चुलबुली लड़की वान्या ने। कॉलेज में उसके साथी सही तो कहते थे "वान्या द पहाड़न गर्ल"।



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