रीति रिवाज
रीति रिवाज
"बेटा मयंक देखो बहू के मायके से उसके मम्मी पापा आये हैं। बहू को लेकर जल्दी नीचे आओ।"
मयंक की माँ कमला जी ने बेटे को आवाज दे अपनी बहू नैना के मम्मी पापा को ड्रॉइंग रूम में बिठाया। और खुद उनके चाय नाश्ते का इंतजाम करने रसोई में चली गई।
कमला जी की बहू नैना ने अभी कुछ दिन पहले ही एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया है। इसलिये अपनी बेटी की बेटी को देखने का मोह उसके माँ-बाप को यहाँ खींच लाया। नहीं तो दो साल हो गये नैना की शादी को अभी तक उसके माँ बाप एक बार भी उसकी ससुराल नहीं आये थे।जब भी जरूरत होती नैना के भाई भाभी को ही भेज देते थे।क्योंकि उनकी नजरों में बेटी की ससुराल में "माँ, पापा नहीं जाते।जब तक मयंक नैना को लेकर उसके मम्मी पापा से मिलवाने लाया, और वो लोग नैना और उसकी बेटी को लाड़ कर रहे थे।तब - तक नैना की सास ने अपने समधी , समधिन के सामने कई प्रकार के नास्तो से टेवल सजा दी । और गर्मा गरम चाय लेकर उनसे प्रेम पूर्वक कुछ खाने का आग्रह करने लगी।
पर ये क्या नैना के मम्मी, पापा चाय नास्ता तो छोड़ो बेटी के घर का पानी भी पीने को तैयार नहीं थे। उनके विचारों के अनुसार....."बेटी के घर पर पानी पीना भी पाप है। "तभी मयंक झूठा गुस्सा दिखाते हुए अपने सास, ससुर से बोला....
"क्या मम्मी, पापा आप लोग मुझे अपना नहीं समझते तभी तो मेरे साथ शादी होने से आपने अपनी बेटी को भी पराया कर दिया। इसीलिये आप हमारे घर कुछ खा पी नहीं रहे।"
"नहीं बेटा आप तो हमारे दामाद हो, और अपनी बेटी को हम पराया कैसे समझ सकते है। पर ये रीति तो सदियों से चली आ रही है । हम उसे कैसे बदल सकते है? "
नैना के माता पिता नैना को प्यार करते हुये बोले।
तभी नैना की सास मुस्कराते हुये बोली. ....
" समधी जी क्या आप बहू के मायके का भी कुछ नहीं खाते पीते है "?
" नैना के पापा ने बड़ी ही शान से कहा... "खाते है समधिन जी !! क्योंकि वो तो मेरी बहू है..... "
तभी कमला जी बीच में टोकते हुये बोली..... "और मयंक आपका अपना दामाद। सोचिये वैसे तो हर जगह हम बेटियों को बराबरी का अधिकार देने की बात करते है ।और हम ही शादी के बाद बेटियों को पराया कर देते है। जैसे आपने अपनी बहू को अपना बना लिया वैसे ही दामाद को भी अपना बना लीजिये।और इस घर को दामाद का घर नहीं अपनी बेटी का घर मान लीजिये। ताकि जैसे आप अपने बहू बेटे के साथ में बेफिक्र होकर रहते है। वैसे ही अपनी बेटी के पास निश्चिन्त होकर कभी भी आ- जा सकें। "
तभी मयंक ने एक लड्डू उठाकर अपने सास, ससुर को खिलाते हुये कहा..... "इस बदलाव की खुशी में मुँह मीठा कीजिये "!
नैना के मम्मी, पापा ने काँपते हाथों से लड्डू उठा लिया और सजल नेत्रों से कमला जी और अपने दामाद की और देखते हुए अपने सदियों से चले आ रहे विचारों की आहुति देकर अपनी बेटी के साथ दामाद को भी अपना बना लिया।
वहीं अपनी बेटी को गोदी में लिये बैठी नैना की इतनी अच्छी सास और पति को पाकर खुशी से आँख भर आई। जिस बात को वो अपने मम्मी, पापा को शादी के बाद से समझाने की कोशिश कर रही थी, वही बात इन लोगों ने कितनी सरलता और प्यार से समझा दी थी। अब उसके मम्मी, पापा कभी भी उससे मिलने आ सकते है , ये सोच कर ही उसका मन मयूर नाचने लगा था।