रोमा
रोमा
अभी-अभी बारिश हो कर चुकी थी और शाम भीगी भीगी सी हो कर और भी सुहानी हो गई थी। रोड के दोनों तरफ खड़े वृक्षों से अभी थोड़ी थोड़ी पानी की बूंदे टपक रही थी। रोमा जे बी आर पार्क की तरफ तेजी से बढ़ी जा रही थी। आज अमर का फोन आया था वह उससे कुछ जरूरी बात करने की बात कर रहा था ।वह क्या जरूरी बात थी या उसने नहीं बताई थी ।इसी कारण रोमा थोड़ी परेशान सी थी।
रोमा बीएससी फाइनल की छात्रा थी जो हमेशा अच्छे अंक लेकर पास होती रही थी।उसके पापा एक ऑफिस में एकाउंटेंट थे ।रोमा की एक और छोटी बहन थी और वह क्लास 12th की स्टूडेंट थी।
कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही अमर से उसकी मुलाकात कॉलेज के सामने वाले रेस्टोरेंट में हुई थी। अमर सुंदर सजीला 6 फुट का जिम जाने से बने मस्कुलर शरीर बाला गौर वर्ण का लड़का था। जिसकी तीखी नाक ईरानियों सा गोरा रंग और बोलचाल में उर्दू से सजे लखनवी अंदाज, जो बहुत लियाकत का लहजा रखता था,उसे आम इंसानों से अलग ही स्पेशल बनाते थे
उसके गले से निकले सूफियानी गाने के स्वर हर किसी का मन को मोह लेते थे। महंगी गाड़ी और महंगे वस्त्रों से सजा वह राजकुमार अपने महंगे सेंट की खुशबू से रोमा को अनजाने ही आकृष्ट कर गया था।
उसकी लच्छेदार मीठी मीठी बातें रोमा को कब उसके करीब और करीब ले आईं, रोमा को पता ही नहीं चला।
उसने रोमा को बताया था कि वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में सेलिंग एजेंट है जो बड़े-बड़े आर्डर लेकर उनकी कंपनी का सामान दुकानों के थोक डिस्ट्रीब्यूटर्स को सप्लाई कर देता है। वह रोमा पर बहुत पैसा खर्च करता था ।उसे यहां वहां हर जगह अपनी कार से घुमाया करता था।
रोमा उसकी संगत में अपने आप को मानो आसमान पर उड़ता हुआ पाती थी ।उसके पापा उसे जो चीजें नहीं दे पाए थे, वह हाई सोसाइटी की सारी अच्छी वस्तुएं सारे सुख उसे अमर ने दे रखे थे। उसके एक इशारे पर वह काफी महंगी वस्तु भी उसे ऐसे उपलब्ध करा देता था जैसे उन वस्तुओं की कोई कीमत ही न हो।
एक दो बार रोमा ने उससे अपने घर आने को भी कहा ताकि वह उसके मम्मी पापा और बहन से मिल सके।
पर हर बार बड़ी खूबसूरती से उसने बहाने बनाकर उसके घर आने से मना कर दिया ।उसका कहना था की उसके घर आने के बाद रोमा के मम्मी पापा शायद फिर कभी उससे मिलने भी न दें ।इसलिए वह रिस्क नहीं लेना चाहता ।
रोमा ने अमर से कई बार उसके मम्मी पापा परिवार के बारे में पूछा था। हर बार उसने यही जवाब दिया था कि तुम्हें मुझसे वास्ता रखना चाहिए ना कि मेरे मम्मी पापा से। मेरे अमीर मम्मी पापा कभी नहीं चाहेंगे कि मैं एक तुम जैसी मध्यमवर्गीय लड़की से संबंध रखूं।
वैसे मैं लखनऊ के अलीगंज का रहने वाला हूं और मेरे पापा वहां के एक बहुत बड़े बिजनेसमैन है।
रोमा ने अमर की बातों पर पूरा यकीन कर लिया था और उसने सिर्फ उसका किराए वाला फ्लैट देखा था जब वहां ले जाकर अमर ने उससे पहली बार जिस्मानी संबंध बनाए थे। अमर की संगत में तब से रोमा को अलग ही आनंद आने लगा था।
रोमा 5 फिट 6 इंच की मध्यमवर्ग शरीर की गोरी चिट्टी लड़की थी ।उसका थोड़ा सा लंबोतरा भरा भरा चेहरा, गालों पर पढ़ते डिंपल ,कमान सी तनी भौंहें,और हिरनी सी सुंदर आंखें तथा गुलाब की पंखुड़ी से सुंदर होंठ, गाल पर छूटा सा काला तिल, लंबी ग्रीवा और कमर तक नहीं सी लहराती चोटी उसे अप्रतिम सुंदरता प्रदान करते थे।
अमर के ही विचारों में डूबी हुई रोमा पार्क में जा पहुंची जहां पर अमर उसका इंतजार कर रहा था ।
रोमा ने परेशान से अमर को देखा और पूछा "ऐसा क्या जरूरी काम पड़ गया था जो तुमने मुझे शाम को यहां बुलाया है"
परेशान से अमर ने कहा "मेरा ट्रांसफर दिल्ली हो गया है। मैं परसों दिल्ली के लिए चला जाऊंगा। जहां मुझे अपनी ज्वाइनिंग रिपोर्ट देनी है। "
"रोमा मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता क्योंकि तुम ही मेरी जिंदगी हो। तुम ही मेरी आशिकी हो।क्या तुम मुझसे विवाह करोगी ?"
रोमा की तो मानो मन की कली कली खिल गई। वह इतनी खुशियां एक साथ पाने पर बौरा सी गई और बोली "हां तुम आ जाओ !घर आकर पापा से बात करो और मैं भी तुम्हारा सपोर्ट करूंगी ।मैं तुमसे विवाह करने के लिए तैयार हूं।"
अमर ने कहा "नहीं नहीं !!मैं पापा के पास नहीं आ रहा हूं!!! क्या तुम मुझसे किसी मंदिर में विवाह करना चाहोगी। क्योंकि मुझे नहीं लगता की तुम्हारे पापा दूसरी जाति में अपनी बेटी की शादी करेंगे। मैं ठाकुर हूं और तुम ब्राह्मण ।यह विवाह अपने पैरंट की मर्जी से से संभव ही नहीं है।
"क्या तुम घर से भाग कर मुझसे विवाह करने के लिए तैयार हो"
अमर की शराफत और उसके अमीरी से भरे व्यक्तित्व से प्रभावित रोमा ने विना और विचार किए हुए तुरंत अपनी सहमति दे दे दी। फिर बिना घर वालों को बताएं वह 15 दिन तक अपना सामान और जेवर इकट्ठा करती रही घर से उसने कुछ कैश भी चोरी से ले लिया।
उन दोनों ने पद्रह दिन बाद घर से भागकर चुपचाप भोपाल के आर्य समाज मंदिर में जाकर विधि विधान से विवाह कर लिया। जिसके नियमानुसार विवाह के सबूत के तौर पर फोटोग्राफी भी हुई और लिखा पढ़ी भी हुई।
आर्य समाज के रजिस्टर में अमर ने अपना पता लखनऊ का लिखबाया ,जिसमें पिता का नाम श्री जवाहर जी लिखबाया तथा रोमा ने अपने घर का पता वही लिखवाया जो उसका वास्तविक पता था।
रोमा क्योंकि माता-पिता की मर्जी के खिलाफ चुपचाप भाग कर अमर के साथ आ गई थी इसलिए आर्य समाज मंदिर में विवाह करने के बाद वह दोनों एसी फर्स्ट क्लास से ट्रेन में बैठ कर भोपाल से दिल्ली पहुंच गए।
क्रमशः शेष भाग २ में